"तुम दोनों बेहद चिंतित दिख रहे हो क्या बात है?" बेटे-बहू से लावण्या ने पूछा।
"मेरा बहुत खास दोस्त कल भारत जा रहा है माँ..,"
"मैं समझ नहीं पा रही हूँ तो इसमें तुमलोगों के परेशान होने की क्या बात है?"
"माँ वह हमेशा के लिए भारत जा रहा है..,"
"इस भयावह काल में उसकी भी नौकरी चली गयी..!"
"नहीं, माँ! उसे कम्पनी वाले पदोन्नति देकर भारत भेज रहे हैं..,"
"यह तो सुनहला अवसर है उसके लिए। पुनः अपने देश में व अपनों के बीच होगा। भारत में उसका कौन-कौन हैं, कितने भाई-बहन हैं?"
"वह अबोध था तभी उसके पिता गुज़र गए.., उससे एक छोटा भाई है। उनकी माँ शिक्षिका की नौकरी कर परवरिश की।"
"क्या उसकी माँ छोटे भाई के साथ रहती हैं ?"
"दोनों भाई प्रवासी हैं।"
"तुमलोगों के पौधे से प्रेम करते हुए देखती हूँ तो बहुत अच्छा लगता है। पौधों में फूल लगते देख तुमलोगों के आँखों की चमक देखते बनती है। जब तुमलोगों के लगाए पौधे पेड़ होंगे तो क्या तुमलोग उनकी छाया में बैठना नहीं चाहोगे या फल नहीं खाओगे?"
"मेरी माँ मेरे दोस्त की माँ के लिए बेहद हर्षित है!"
बेहद सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति दी !
ReplyDeleteवंदन संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 27 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर सार्थक एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर मन को छूती अभिव्यक्ति दी।
ReplyDeleteसादर प्रणाम
सुन्दर
ReplyDeleteकोमल भावनाओं से भरी सुन्दर अभिव्यक्ति, सरल शब्दों में आप बहुत सुन्दर लिखती हैं - - नमन सह।
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
ReplyDeleteमन को छू लेने वाली अभिव्यक्ति। सच है बच्चे पैसे कमाने के लिए प्रवासी हो जाएँ पर बूढ़े माता पिता तो उनकी छाया को टीआरएस ही जाते हैं. सच कहूँ तो कमाने के लिए विदेश जाने की कोई आवश्यकता भी नहीं, काम तो यहां भी हैं, हम यहां रह कर कमायें तो अपने परिवार को भी सुख देंगे और हमारे देश की उन्नति भी होगी।
सुंदर लघुकथा के लिए हृदय से आभार व सादर नमन।
आदरणीया विभा रानी जी, नमस्ते 👏!बहुत सुंदर, मर्मस्पर्शी लघुकथा।हृदय तल से साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
ReplyDeleteदिल को छूती कथा।
ReplyDelete