"नमस्कार राष्ट्रीय संयोजक महोदय! 49897 यानी लगभग पचास हजार सदस्यों वाली आपकी संस्था अपनी 13 वीं वर्षगाँठ मना चुकी है। ५० हजार कलमकारों को एक मंच पर लाना। ७५००० किलोमीटर से अधिक की साहित्यिक यात्रा का किया जाना। उसके लिए और आज होने वाले 'एक शाम माँ के नाम' के ३०२५ वें कार्यक्रम की बधाई स्वीकार करें।"
"नमस्कार के संग आपका बहुत-बहुत धन्यवाद पत्रकार महोदय।"
"राष्ट्रीय साहित्यिक कार्यक्रम में देखा यही गया है कि श्रोता कम होते हैं। वही व्यक्ति साहित्यिक कार्यक्रम में सम्मिलित होना चाहते हैं जिन्हें रचना पाठ करने के लिए अवसर मिल सके। मंचासीन हो जाएँ तो सोने पर सुहागा। इस कार्यक्रम की ऐसी कोई विशेष बात जिसे साहित्य और समाज हित/अहित की हो साझा करना उचित हो।"
"है न! एक प्रतिभागी का औडियो में जानकारी पूछा जाना!"
"कैसी जानकारी"
"उनका कहना था कि आप के द्वारा हमें किस रूप में आमंत्रित किया जा रहा है श्रोता के रूप में या स्पर्धा प्रतिभागी के रूप में। क्या हमलोग अब प्रतिद्वंद्वी प्रतिभागी बनने के योग्य हैं या आने वाली नयी पीढ़ी के बीच स्पर्धा होनी चाहिए!
मेरे पास एक और अति आवश्यक महत्त्वपूर्ण कार्य आ गया है। आपके बताये निर्णय पर मुझे भी चयन करना होगा कि मेरे लिए ज्यादा लाभकारी कौन सा है।"
"ओह्ह्ह,उन्हें चयन करना है कौन ज्यादा लाभकारी है! ऐसे-ऐसे व्यापारी! आयोजक से ऐसी बात कर लेना बौनेपन की निशानी है। ऐसे साहित्यिक दीमक ही बढ़ रहे हैं! अफसोस के साथ विदा होते हैं कि हमारे राज्य की यात्रा में आपको ऐसे अनुभव हुए।