Thursday, 9 January 2025

1. मुबश्शिरा — 2. मुबश्शिरा

 01.

"क्या दूसरी शादी कर लेने के बारे में नहीं सोच रही हो?" सुई भी गिरती तो शोर गूँज जाता। जैसे आग लगने पर अलार्म बज जाता है। पहली भेंट और ऐसा प्रश्न ! महिलाओं की गोष्ठी थी। दूर से आने के कारण रत्ना अपनी बेटी के साथ, समय से थोड़ा पहले आ गई थी। परिचय होने के दौरान पता चला कि बेटी विधवा है। और उसके दो बच्चे भी हैं। और इसी से मिला मेज़बान का बाउंसर प्रश्न !

     "नहीं आंटी ! सुख लिखा होता तो एक का साथ लम्बा चलता।" रत्ना की बेटी की आवाज कहीं गहरे कुएँ से आती लग रही थी।

      "दो बच्चों के साथ अपनाने के लिए कोई मिले भी तो…?" रत्ना ने कहा।

      "ज़माना बहुत बदल गया है। आजकल बहुत आसानी से बच्चों के साथ अपना लेने वाले पुरुष बहुत मिल जाते हैं!" मेज़बान काउंसलर की भूमिका अपना रही थी।

      "फरिश्ते हर ज़माने में मिला करते थे। आज भी मिला करते हैं। लेकिन फ़रिश्तों की संख्या हर ज़माने में दूज के चाँद-सी ही होती है।" रत्ना की सहेली ने कहा।

      "अगर शादी के बाद फ़रिश्ता ना निकला तो ताड़ से गिरकर खजूर में अटक जाने वाली बात हो जाएगी।...और कहीं की नहीं रहेगी मेरी बेटी…!" रत्ना का स्वर बेहद मर्माहत था।

      "और नहीं तो क्या…! आजकल तो कुँवारियों की संख्या बढ़ रही है। शादी के बाद के हज़ार झंझटों से बचने के लिए?" रत्ना की सहेली ने कहा।

      "और अगर मैं आप लोगों की सारी आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करूँ और अपनी माँ की कही बातों को सच साबित करने का वादा करूँ तो क्या आप मुझे एक मौक़ा देंगी?" चाय की ट्रे लाते हुए मेज़बान के बेटे ने पूछा। 

      पुनः सन्नाटे के साम्राज्य ने जड़ जमा ली।

02.

"जोमाटो से विष्णु को धोखा मिला। उस दिन से मैंने भी जोमाटो से कुछ मँगवाना छोड़ ही दिया था। आज पहाड़-सी मजबूरी थी।शंकित मन से मुझे जोमाटो को ही ऑर्डर करना पड़ा।"

      "विष्णु के साथ तुमने जो धोखा किया, उसमें कितने का घाटा लगा था विष्णु को? जिसके विरोध में विष्णु ने तुम्हें जो घाटा लगाने के मौके देखे?" मैंने जोमाटो वाले से पूछ ही लिया। 

       जोमाटो वाले को मानो साँप सूँघ गया वाह कुछ देर तो बोला ही नहीं! फिर जोर देकर पूछा तो बताने लगा--"धोखा तो धोखा होता है। चाहे एक रुपये का हो या एक लाख का? जाड़े के दिन थे। विष्णु से खाने का ऑर्डर मिला। रात का बचा हुआ बासी खाना था। उसे मैंने तड़का लगाया और भिजवा दिया। पैसा देने के दौरान, विष्णु के अकाउंट में जितना रुपया था, सारा का सारा मेरे अकाउंट में चला गया। विष्णु मचल कर रह गया।"

       "तुम्हारे दाँत खट्टी करने के बदले, ऐसे हालात में, मैंने पुनः तुम्हें ऑर्डर किया। जो कि मुझे नहीं करना चाहिए था। इसी को कहते हैं, कुल्हाड़ी पर पैर डाल देना? लेकिन मैंने कुल्हाड़ी पर पैर डाला, क्योंकि मैं समझना चाहती थी, कि तुम-में-कुछ परिवर्तन हुआ है, कि नहीं।"

       अब आत्म-संदेह में फँसा जोमाटो वाला असहज मालूम पड़ रहा था। और मैं अपनी साँसें रोके, गरम ईंटों पर बिल्ली की तरह डिलीवरी बॉय जब तक नहीं आया था घर-बाहर चहलक़दमी कर रही थी..!डिलीवरी बॉय आया तो उसे देख मैंने सब-कुछ भुला दिया। मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। जब देखा, डिलीवरी बॉय एक विकलांग था…! अच्छा हुआ जो जोमाटो से सामान मँगवाई, क्यों खेत खाये गदहा, मार खाए जुलाहा!


Monday, 6 January 2025

उजाले में करू

 


“आज अनेक दिनों के बाद क़ैद से सूरज निकला था! तुम छत पर बैठे धूप का आनन्द ले रहे थे! कमान से छूटे तीर की तरह अचानक तेजी से दौड़ते हुए कहाँ चले गए थे?"

"पड़ोस के छात्रावास के हाते से आते शोर के कारण देखने चला गया था! कैसा शोर है…?”

"कैसा शोर था?"

"लड़कियों का दो दल आपस में ही सर-फुटव्वल करने में भीषण घायल हो रही थीं…! एक ही लड़का, अनेक लड़कियों को अपने प्रेम-बिसात का मोहरा बनाए हुए है…! कितनी मूर्ख-अंधी होती हैं लड़कियाँ…!"

"सच कहा! मूर्ख-अंधी लड़कियाँ ही होती हैं। इसलिए तो दलदल में डूब जाती हैं!"

"और जिगोलो उसकी भी छोड़ो,  नेक्रोफ़ीलिया के बारे में तुम दोनों की क्या राय है?"

"विमर्श लैंगिक विभेद पर बात नहीं होनी चाहिए…!" दोनों ने नजरें चुराते हुए बेहद धीमी आवाज में फुसफुसाया।

"ओ! अच्छा! तो तुमदोनों विमर्श कर रहे थे…! लगता है तुमदोनों के पास मनुष्यता संबंधित विषयों की कमी हो गयी है!"

उसकी बातें सुनकर उनदोनों की खिलखिलाहट वाली हँसी शोर मचा गई। एक ने कहा, "तुम्हारी बातें सुनकर मुझे लगता है कि तुम्हारे पास मनुष्यता के बारे में बहुत कुछ कहने को है!"

उस तीसरे ने मुस्कराते हुए कहा, "हाँ, हमारे पास बहुत कुछ है जो हम कहना चाहते हैं! न! न! सिर्फ कहना नहीं हमें करना होगा, जिससे यह लिंग-पक्षपाती रूढ़ियों और पूर्वाग्रही विचारों से समाज मुक्त हो सके…!”

एक और

खाली घोंसला—

वैध स्थायी निवासी (ग्रीन कार्ड होल्डर) माँ की भौं टेढ़ी।

माँ ग्रीन कार्ड होल्डर हो गई है

Tuesday, 31 December 2024

दोहरी मार

अप्रैल २०२४ में सुगर लैंड/ह्यूस्टन जाने का टिकट कट रहा था तो वापसी की बात चली। १५ दिसम्बर को बेटे को बैंगलोर पहुँचने का टिकट था। वह हर साल दिसम्बर में आता है और जनवरी में वापस जाता है तथा फरवरी तक में पुनः दिसम्बर में आने का टिकट कटवा कर रख लेता है! जब हमें दिसम्बर में आना ही है तो हमलोग ४ दिसम्बर के महोत्सव के लिए १ दिसम्बर को पटना आ जाते हैं और फिर १२ दिसम्बर को बैंगलोर आ जाएँगे। तय दिन हमलोग जैसे १ दिसम्बर को पटना पहुँचे तो ख़बर आयी मेरी भाभी का देहांत हो गया। भागे-भागे मायके के गाँव पहुँचे। एक-एक पल काटना मुश्किल उससे ज़्यादा मुश्किल निर्णय कि दाह-संस्कार के पहले मुझे अकेले पटना निकल जाना है। आज भी परम्परा है कि दाह संस्कार के बाद बिना श्राद्धकर्म बीते देहरी नहीं छोड़ी जा सकती…! नहीं जाने से प्रलय नहीं आ जाता लेकिन अपने ही स्वभाव की दवा नहीं होती! देश के कोने-कोने से सभी को आमंत्रित कर ख़ुद नहीं उपस्थित होना स्व की नजरों में ग़लत लग रहा था! हिम्मत बटोरकर निकल चली। किसी के नजरों में देखने का साहस नहीं हो रहा था। भतीजा सब को सामने से हटाना कितना कठिन था यह शब्दों से नहीं अभिव्यक्त हो सकता था! २ दिसंबर की देर रात तक पटना पहुँच जाने के बाद हिम्मत नहीं किया किसी को फ़ोन कर हाल पुनः लिया जाये! ३ दिसंबर को आगन्तुक आमंत्रित अतिथियों के संग पटनासिटी गुरुद्वारा और हरिहर सोनपुर मंदिर घुमाने का कार्यक्रम था-सभी के संग मेरी उपस्थिति थी मेरी मानसिक-शारीरिक अवस्थाएं मेरे मन के साथ विद्रोह करने बावजूद साथ देने के लिए बेबस! शाम तक घर वापस हुई। घर में अकेले होने के बाद पानी तक पीने की इच्छा नही! ४ दिसंबर को आयोजन स्थल पहुँची तो म ग स म के राष्ट्रीय संयोजक महोदय पहले पहुँच चुके थे और स्थल पर ३ दिसम्बर को शादी स्थल होने से बिदाई के बाद : उजड़ा गुलिस्ता मातम की स्थिति बिखरा सामान और स्थल का कर्मचारी यह मानने के लिए तैयार नहीं कि उस समय से वहाँ कोई साहित्यिक महोत्सव आयोजित होने के लिए बुकिंग है और आधे घण्टे में पूरे देश से आए साहित्यकारों की उपस्थिति होने वाली है । हमारा जो दीप था उसको उठा ले गया। राष्ट्रीय संयोजक महोदय उससे दीप निकलवा कर लाए तो वह जिद पर अड़ गया कि आपलोग कमरे से बाहर निकल जाइए ताला बन्द करेंगे। चार बजे से आइएगा। बिहार में शराब बंदी का ढोंग है। वह कर्मचारी पूरे नशे में था उससे बात हो ही नहीं पा रही थी। किसी शराबी के पास खड़ा होना मुझे कभी पसन्द नहीं रहा और उस दिन की मेरी मजबूरी कि मैं उसे समझाने का प्रयास करूँ! केवल विवशता थी कि मैं अतिथियों को आमंत्रित कर बैठी थी! दिमाग़ में चल रहा था कि यह दोहरी मार किस कारण से सहना पड़ रहा है…! विषय समझने के बाद सोचना शुरू हुआ। सोचते रहे, ऐसा क्या है जिसे बदलना चाहिए…! स्वयं की कमियों को बदलना चाहिए या समाज में फैली विसंगतियों-कुरीतियों को! सोचने-विचारने के बाद लगा समाज को बदलने से आसान है स्वयं को बदल लेना। अब उम्र के इस पड़ाव पर स्वयं में बदलाव…! बूढ़ा सुग्गा पोस मानेगा क्या…! फिर सोचने लगी मुझमें ऐसी क्या बात है जो बदल लेनी चाहिए। वैसे आदत-स्वभाव-हस्ताक्षर कहाँ बदलाव पाते हैं! फिर भी आकलन करने पर लगा मेरी जो आदत बन गई है-समय के महत्त्व को समझने की, घड़ी की सुई बाद में अपने निर्धारित स्थान पर पहुँचती है मैं उससे बहुत पहले अपने निर्धारित स्थान पर पहुँच जाती हूँ। कभी-कभी ताला बंद रहता है। कभी दूसरों की घूरती निगाहों से बचने की जो कोशिश करती हूँ उससे मुझे क्या लाभ मिलता है। कभी दरी-कालीन बिछाने वाले, कुर्सी -मेज़-सोफा लगाने वाले, गुलदान-फूल-झालर सजाने वाले, इस किनारे से उस किनारे तक बचकर निकलने वालों की जब मुखाकृति आधुनिक चित्रकारी सी बनती हैं तो नासमझदार होने का अभिनय करने में मुझे क्या आनन्द आता है! जब मुझे कोई आमन्त्रित करता तो मैं उससे सही समय पूछती हूँ तो उसका/उनका हकलाना मुझे क्यों मुस्कुराने पर बेबस करता है! नाहक रटते रहते हैं कि

“जल की तरह पल होते हैं : बह जाते हैं”

“अपने समय को बर्बाद करने से आप अपने जीवन को बर्बाद कर रहे हैं।"

“बीता हुआ कल एक रद्द किया हुआ चेक है; कल एक बचत खाता है; आज नकदी है– इसका बुद्धिमानी से उपयोग करें।”

 "जो समय का सम्मान करता है, समय भी उसका सम्मान करता है।"

“कल का काम आज करो और आज का अभी।"

अपने जैसा समय की पाबंदी दूसरों से वही उम्मीद करने लगती हूँ तो क्यों नहीं मुझे अनुचित लगता है! उन्हें क्यों चेताती रहती हूँ , “समय की अच्छी बात यह है कि हर किसी को सब कुछ समझने का मौका देता है, साथ में अपना और पराया कौन हैं यह देखने को मिलता हैं।”

उलटे दूसरे मुझसे लचीला होने की बात करते हैं तो क्यों मुझे झुँझलाहट होती है…! परीक्षक से बेहतर है परीक्षार्थी जिन्हें कहा गया था वे तो बहुत कम समय के लिए परीक्षा भवन में थे! उन्हीं का देश है। भारत अंग्रेजों का देश थोड़े न है! भारतीयों के पास समय की बहुलता है। निर्धारित समय से दो-तीन घंटे का विलंब हो जाने से कौन सा गठरी कोई उठा ले जाएगा। रात अपनी बात अपनी विलंब होने का कोई क्यों ग़म करे! मुझे ख़ुद को बदलने में देरी बिलकुल नहीं करनी चाहिए! न! न! समाज को बदलने के बारे में सपने में भी सोचना बड़ा अपराध होगा! जिस राज्य की वासी हूँ उस राज्य में शराबबंदी है। अगर मुझ में विलम्ब से पहुँचने की आदत होती तो किसी शराबी से भेंट नहीं होती और न मुझे उससे उलझना पड़ता और ना मैं अपने राज्य की शिकायत कर रही होती। शिकायत करनी बहुत बुरी बात है। सत्य नहीं बोलना चाहिए मुझे अपनी इस आदत को भी बदल लेनी चाहिए। सत्य बोलना भी अपराध होता जा रहा है! इन आदतों के कारण कितना नाम पड़ा मेरा खड़ूस, हिटलर! भला! हिटलर की आत्मा होगी मेरे आस-पास तो क्या सोचती होगी। मुझे बिलकुल बदल जाना चाहिए! जाते दिसम्बर में ख़ुद में बदलाव लाने की पूरी कोशिश करने का वादा ख़ुद से ख़ुद करती हूँ!

Friday, 22 November 2024

प्रघटना


“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चलते हैं! वे अमेरिका में विद्या धाम चलाती हैं यह हमारे लिए हर्ष और गर्व की बात है…!” माँ, बेटे को सन्देश देती है।

करोना काल से ही वर्क फ्रॉम होम के लिए माइक्रोसॉफ्ट टीम्स आल रांउडर ऐप्स में शामिल हैं जो ऑडियो-वीडियो कम्यूनिकेशन का बेहतरीन जरिया है जिसके कारण अधिकतर कार्यदिवस को माँ-बेटे की बातचीत व्हाट्सऐप्प चैट के ज़रिए हो पाती है।
“बेहद खेद है माँ! उस दिन मेरा, मेरे बॉस के साथ बाहर जाने का प्रोग्राम है! स्थगित नहीं कर सकता क्योंकि एक विद्यालय में प्रवक्ता का दायित्व भी लिया हूँ! तुम्हें सूचित करने ही वाला था।” बेटे का संदेश आता है।
“अरे! यह तो बेहद खुशी की बात है। तुम बिना किसी उलझन में पड़े अपने दायित्व को निभाओ! मैं आयोजन का मना कर देती हूँ!” माँ पुनः संदेश देती है और कवयित्री को फोन करती है-
“…”
“बेहद खेद के साथ, रविवार की भेंट गोष्ठी को स्थगित करना पड़ रहा है!”
“…”
“चूँकि बिना बेटे के सहारे के हमलोग यहाँ अपाहिज हो जाते हैं! हमें डॉलर समझ में नहीं आता है, नेट पैक समाप्त होगा…”
“…”
“आपसे मिलना, हमारे लिए भी अत्यंत खुशी की बात होती। दरअसल मेरे पति बिना बेटे के कहीं जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं।”
“…”
“हाँ उनकी उम्र ज़्यादा नहीं! बीमारी का उम्र से कोई सरोकार भी नहीं होता…! उन्हें गिर जाने का भय बना रहता है…!”
“…”
“उनका मस्तिष्क उनके अंगों को निर्देश देने में विफल होता है…! हमलोग ऑन लाइन वर्चुअल गोष्ठी आयोजित कर सकते हैं। समय ने साथ दिया तो अगली बार आने पर भेंट होगी!”
“…”
“आह्ह! अब आपकी बात को कैसे टाला जा सकता है! इस अव्यवहारिक काल में कहाँ किसी को इतनी फुरसत है कि अपने स्वार्थ के वर्तुल से बाहर निकल सके..! जब आप सभी समस्याओं के हल लेकर आयेंगी तो हम तितली ढूँढने अवश्य निकलेंगे!

Saturday, 16 November 2024

पुनर्योग

“भाभी घर में राम का विरोध करती हैं और बाहर के कार्यक्रम में राम भक्ति पर कविता सुनाती हैं !” अट्टाहास करते हुए देवर ने कहा।

 “ना तो मैं घर में राम का विरोध करती हूँ और ना बाहर राम भक्ति की कविता पढ़ती हूँ। आप पुनः चुग़ली में सिद्ध होने की कोशिश कर रहे हैं..,” भाभी ने कहा।

“अख़बार में जो लिखा है सारी दुनिया तो वही मानेगी…” देवर ने कहा।

 “आज की दुनिया फेसबुक ब्लॉग ट्विटर पर भी है जहाँ और घर में राम विग्रह में हो रहे आडम्बर पर सवाल करती हूँ! आज एक सवाल आपसे से भी जब सीता की अग्नि परीक्षा हो चुकी थी तो साक्षी देवर भाभी को वन में छोड़ने क्यों गए, जैसे किसी भी मामूली बात से कलह में भी आप मेरे मायके चले जाते रहे मेरे पिता-भाई को बुलाकर लाने….,” भाभी ने पूछा।

“भाई से मिले आज्ञा का पालन करना था और राम को अपना राजा पक्ष को प्रबल करना था…! मैं आपके पिता भाई को अनेकों बार बुलाकर लाया लेकिन आप एक बार भी गयीं नहीं न?”देवर ने कहा।

 “बोगनविलिया जो होना था, वैसे भी सीता की तरह जाकर नहीं लौटना कहाँ सम्भव था…!”

Thursday, 31 October 2024

मनाजीताभ


विदेशों में रहने वाले भारतीय किसी भी आयोजन को शनिवार/रविवार को मनाते हैं…। दीपोत्सव के पर्वमाला शुरू होने के ठीक पहले वाले शनिवार को तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन और राहुल शर्मा संतूर वादक (प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा के पुत्र) का संगीत समारोह और रविवार को दीपोत्सव में जाने और आनन्दित होने की चर्चा पति और पुत्र के मध्य चल रही थी। चर्चा में रुकावट डालते हुए मुख्य-द्वार की घंटी की मधुर ध्वनि से किसी के आने की सूचना मिलते पुत्र ने एक बेहद प्यारे शिशु के संग दम्पति का स्वागत करते हुए बैठक में ही ले आया। पुत्र और दम्पति के मध्य चल रहे बातचीत से लग रहा था कि कुछ पुरानी अच्छी मित्रता है। परिचय करवाते हुए पुत्र ने बताया भी कि वह जब कुछ वर्षों पहले यहाँ रहने आया तो उनके पड़ोस में रहता था। कुछ वर्षों के लिए दूसरे शहर में जाने के बाद भी सम्पर्क बना रहा और वापिस आने के बाद तो दोस्ती गहरी हो गयी। दीवाली की शुभकामनाएँ देने आया है। माता-पिता बेहद ख़ुश हो रहे थे कि परदेश में दोस्त परिवार मिल गया है! शनिवार की छुट्टी का सदुपयोग करते हुए उस दम्पति को किसी और मित्र के घर भी जाना था। उनके जाने के बाद, “भारत के किस शहर का रहने वाले हैं?” पिता ने पूछा।“पंजाब का कोई शहर बताया था। अभी याद नहीं आ रहा।” पुत्र ने कहा।“पंजाबी बड़े सजे-सँवरे रंगीन पोशाकों में अच्छे लगते हैं। तुम्हारा मित्र तो थोड़ा रंगीन शर्ट डाले हुए था। उसकी पत्नी श्वेत शर्ट-पैंट पहने त्योहार का कोई उमंग ही नहीं झलक रहा था!” पिता ने कहा।“आप भी न! ज़माना बदल गया है…!” माता ने कहा।“चाहे ज़माना कितना भी बदले ‘अप रूपी भोजन’…,” पिता ने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया।“चलिए हमलोग कार्यक्रम में चलें। आया-गया मेरा मित्र पाकिस्तानी है…!” पुत्र ने कहा।

 शुभ दीपावली

Wednesday, 21 August 2024

काली घटा

क्या देशव्यापी ठप हो जाने जाने से निदान मिल जाता है?” रवि ने पूछा!

कुछ ही दिनों पहले रवि की माँ बेहद गम्भीररूप से बीमार पड़ी थीं। कुछ दिनों तक वेंटिलेटर पर रहना पड़ा था। आज वह अपनी माँ को पुनः जाँच के लिए अस्पताल लेकर गया था तो पाया कि सभी हड़ताल पर हैं।

 “सांप्रदायिक हिंसा, पैशाचिक कुकर्म अब यह सब समाज में बढ़ती घटनाओं पर क्या हमलोग मौन होकर अपने-अपने दायित्व को पूरा करते रहें! चुप रहने वाले अक्सर अनजाने ही सही अपराधी का हौसला बन जाते हैं, चुप्पी का सन्नाटा एक तरह से अपराधियों का साथ देना ही तो हुआ।”

“आपलोग भगवान होने के भूमिका में होते हैं! अपनी भूमिका पर गौर करें! यह सुधार में कैसा बदला है एक मौत की प्रतिक्रिया में हजारों को मौत के मुँह में धकेल देना। बदला ले लेने से समाज का भला होता है या बदलाव के आ जाने से?”
“लगता है अभी आप ज्ञान परोसने के मनोस्थिति में हैं, चलिए हम भी फ़ुरसत में हैं शुरू कीजिए आप अपना परबचन।” 
“किसी अपराध को वर्ग, लिंग, जाति, प्रान्त, संप्रदाय में बाँट कर नहीं देखना होगा। लोकतंत्र में पैशाचिकतंत्र को पैर पसारने से रोकने का प्रयास करना होगा!” 
“यानी बदलाव चाहने वाले को ख़ुद सड़क पर नहीं आना है, परदे में रहकर अपराध की योजना बनाने वाले को सड़क पर लाने का प्रबन्ध करना है।”
 “जी हाँ! सदैव याद रखना है, काली घटा छायी, हौसले की रुत आयी! सिर्फ हंगामा खड़ा करना तेरा मकसद नहीं तेरी कोशिश हो कि यह सूरत बदलनी चाहिए…,”

जयप्रकाश ‘विलक्षण’ :- बहुत बढ़िया!
वास्तव में चिकित्सा और अन्य सार्वजानिक सेवाओं में इस प्रकार की हड़ताल का विकल्प अपनाना सही नहीं है क्योंकि ऐसा करने पर लाखों निर्दोषों को सजा मिलती है।

लेकिन समस्या यह है कि ऐसा किए बिना किसी के कान पर जूँ भी नहीं रेंगती। 

भारत की सबसे बड़ी समस्या है, मूल कारणों से दूर भागना। सेक्स एजुकेशन के नाम पर अभी भी भारत निचले पायदान पर है। जबकि वर्तमान में बच्चों के लिए इसकी बहुत आवश्यकता है, ताकि संगी-साथी या गलत लोग उन्हें भटका न सकें। जाने क्यों हमारे यहाँ प्राकृतिक क्रियाओं के विषय में खुलकर बात करने से क्यों परहेज किया जाता है, जबकि बच्चे पैदा करने में हमने विश्व रिकॉर्ड बना दिए हैं और उसी का कुपरिणाम है कि आज हम इस मामले में सर्वोच्च शिखर पर हैं। लेकिन बात करने में शर्म आती है। इस परहेज के कारण हर साल लाखों बच्चियाँ, महिलाएँ खतरनाक बीमारियों का शिकार हो रही हैं। जीवन भर दुःख भोगती हैं। लाखों की दवाएँ खा जाती हैं और अंत में गर्भाशय निकलवाने पर मजबूर होती हैं। लाखों महिलाएँ यौन अपराधों का शिकार होती हैं। मनुष्य की प्रवृति है कि जिस विषय को उससे दूर किया जाता है, वह उसी की ओर उन्मुख होता है। 

इसके लिए स्कूलों में विशेष सत्र चलाए जा सकते हैं। थोड़ा-बहुत प्रयास हो भी रहा है, किंतु पर्याप्त नहीं है।

वैसे बात केवल एक अपराध की नहीं है सभी अपराधों की है और उसके लिए अपराधी के मन में कानून का डर जरूरी है।

उदाहरण के लिए ऐसा क्यों है कि दुबई, कतर आदि मुस्लिम देशों में सोने से, नोटों से भरी गाड़ी रोड पर खड़ी होती है और किसी की हिम्मत नहीं होती कि उसे छू भी सके?

कुछ तो है, जो वहाँ हो गया, और हम महान संस्कृति वाले नहीं कर सके। हम कब कोशिश करेंगे कि प्राचीन का फिजूल गुणगान करने के स्थान पर काम ऐसे करें कि हमारा देश सचमुच महान बन जाए।

और इसके लिए सबसे पहले अपने गिरेबान में झाँकना पड़ेगा कि अपने देश को स्वस्थ खुशहाल और महान बनाने के लिए हम अपने स्तर पर क्या कर रहे हैं।

Thursday, 25 July 2024

सुनामी

सुना है तुम बेहद क्रोधित हो…! समझा करो मोटा अर्थ के असामी के नख़रे उठाने ही पड़ते हैं…!”

 “समय के पहले से उपस्थित साहित्यकार, राजनीति के नेताओं की असफल प्रतीक्षा करें तो क्रोध कम, क्षोभ ज़्यादा होता है…। जो अर्थ मिला है वह हक़ से मिला है। बैंक हो, सरकारी कार्यालय हो या कोई भी विभाग हो वहाँ साहित्य के लिए ‘धन का पूल’ (फंड) होता ही होता है। उचित पात्र तक ना पहुँचे यह अलग मसला है। उचित पात्र को मिल जाए तो ऋण नहीं हो जाता है! ऋण है तो फिर चुकाना पड़ेगा…! चुकाने का कोई सोचता है क्या?”

 “तुम्हारा कहना सही है लेकिन निरंकुश शासन में किया क्या जा सकता है…!”
“विरोध के स्वर को सशक्त किया जा सकता है, निरंकुश को जताया जा सकता है, अपने को ‘कुकरी’ ना समझें, जिसे पैरों पर नभ टिके होने का भरम हो जाता है…,” 
“तुम ही समझ जाओ, बूँद की औक़ात ही कितनी…,”
 “चातक-सीप के लिए बूँद होना स्वीकार है…! सागर में समा गयी बूँद होना क़ुबूल है! सूरज सोखेगा, बादल में बदलेगा फिर खेत, खलिहान, नहर, कुँआ, पोखर, नदी, सागर में उलीच देगा…! कभी-कभी बादल फट जाता है! सैलाब आ जाता है…! हाथी के नाक में चींटी की जैसी, आँख में पड़े रेत के कण सी औक़ात…! दो-चार और उदाहरण दे दूँ क्या…!”
“अच्छा छोड़ो! चलो, अब पेट में चूहों की कबड्डी शुरू हो गयी है…!”
“भोजन में पूड़ी-सब्ज़ी तो होगी ही! चना की घुघनी मिल जाये,”
“तो तुम्हारी मनोस्थिति बदल जाये! चना की घुघनी 
(सामग्री :— 1 कटोरी भीगा हुआ काला चना, 1 प्याज़ कटा हुआ, 2 टमाटर कटा हुआ, 1 टुकड़ा अदरक, 2-4 हरी मिर्च, 1/2 छोटा चम्मच ज़ीरा, 2 तेज पत्ता, नमक स्वादानुसार, 1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला, 1/2 छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर, थोड़ा सा हरा धनिया कटा हुआ, 2-3 चम्मच सरसों का तेल
पकाने का निर्देश : — चने में नमक डालकर उबाल लें। अदरक, हरी मिर्च, प्याज़ और टमाटर को मिक्सी में पिस लें।
—एक पैन में तेल गरम करें और ज़ीरा चटकाये, तेज पत्ता और अदरक, हरी मिर्च, प्याज़ टमाटर का पेस्ट डालें। सारे मसाले डालकर भून ले और उबले चने डालकर अच्छे से पानी सूखा लें। तैयार है काला चना घुघनी।) तुम्हें कितना पसन्द है…!”
“मुझे चना की घुघनी बेहद पसन्द है। अंकुरित भीगा हुआ चना सुबह खाली पेट खाने से पाचन तंत्र, बीपी, इम्यूनिटी पावर, वजन कम, हड्डी मजबूत, खून की कमी, एनर्जी बूस्टर इत्यादि कई बीमारियों में बेहद लाभ मिलते हैं। मेरी सासूजी को भी बेहद पसन्द था! आजीवन वो सुबह के नाश्ते में एक कड़ाही में थोड़े पानी में बिना फुलाये चना को उबाल लेतीं, जब पानी सूखने के कगार पर होता तो उसमें नमक, कटी हरी मिर्च, कटा प्याज, थोड़ा सरसों का तेल डालकर भून लेतीं और भुने चूड़े के संग खाती थीं।”
“बढ़िया! चना की घुघनी तो नहीं है, छोला और पूरी-सब्जी, चावल है।”
“जो सब्जी उपलब्ध है वह ख़राब हो रही है, पूरी सूखकर पापड़ हो रही है! अच्छा यह बताओ, भोजन समय से आ गया था फिर सारा कार्यक्रम ख़त्म कर के चार बजे भोजन करवाने का क्या कारण रहा होगा…!”
“हाँ। वही सही होता। सदस्यों की रचना का पाठ भी बाक़ी है।”
“सदस्यों की रचना का पाठ कहाँ होना है…!”
“सदस्यों के उत्थान पर इतना शोर और जलसा और सदस्य केवल भीड़ का हिस्सा…”
“सदस्य ताली बजाने वाली भीड़!”

Wednesday, 17 July 2024

ज्ञानमीमांसा : अनरसा

 “पिछले चालीस वर्षों से मैं अपनी पत्नी को अपने साथ लेकर जाता था! अब ये मुझे अपने साथ लेकर चल रही हैं!” बिहार के गया जी में साहित्यिक यात्रा के क्रम में देश के कोने-कोने से एकत्रित हुए साहित्यकारों के सम्मुख, विदाई सत्र में गोखले मुख़ातिब थे!

 “महोदय! हमारी माँ पहले भी आपकी अनुगामिनी थीं और आज भी उन्हें हमलोगों ने आपकी अनुगामिनी बने ही देखा! इस तुषार के बच्चे को देखिए अपनी पत्नी से तलाक़ ले रहा है!” 

“तलाक़ लेने का प्रस्ताव मैंने नहीं रखा था…! हाँ नहीं तो!”

 “चलो मान लिया कि तलाक़ का प्रस्ताव तुमने नहीं रखा लेकिन पत्नी को खर्च करने के लिए रुपया नहीं देना पड़े इसलिए तुमने नौकरी से सेवानिवृत्ति ही ले लिया…!”

“हाँ! ना रहेगा बाँस और ना बज सकेगी बाँसुरी..!”

“आजकल जितने महीने शादी के चोंचलें चलते हैं उतने महीने शादी ही नहीं चलती है…!”

“हाँ! हाँ! अब बताओ कौन कितना सही और कौन कितना ग़लत? हमने माँ को भूटान यात्रा के क्रम में जिस तरह महोदय का ख़्याल रखते देखा! और आँखों के सामने से माँ के ओझल होते, महोदय को परेशान होते देखा गया! इश्क़ के उफान का उदाहरण इनदोनों के जज़्बात को नमन करता हूँ।”

 “सुनो तुषार! दोशीज़ा के लिए थोड़ी सी फ़िकर और थोड़ी सी क़दर : रिश्तों पर दिख जाता है गहरा असर…!”

 “गया जी को केवल मोक्षधाम के लिए नहीं जाना जाता है। यहाँ का तिलकुट {भागलपुर के कतरनी चूड़ा और गया के तिलकुट का अब भी कहीं दूसरा जोड़ नहीं! (सामग्री : 8 —500 ग्राम तिल, 400 ग्राम गुड़ / गुड़ पाउडर, 250 भूना खोया, मुट्ठी भर भूना हुआ काजू का टुकड़ा (ड्राई रोस्ट) 1. सबसे पहले तिल को सूखा भून लेना है हल्का सा सुनहरा। 2. अब अगर आपने साबुत गुड़ लिया है तो पहले उसको टुकड़ों में तोड़ ले गुड को कुटेंगे तो वो काफी अच्छे से टूट जायेगा मै तो गुड़ का पाउडर ही ले रही हूँ जो आजकल आराम से बाज़ार में मिल जाता है। 3. अब थोड़ा-थोड़ा गुड़ और तिल को साथ में मिक्सर/ब्लेंडर में धीरे धीरे पीस लें ध्यान रहे तिल का तापमान गरम से गुनगुना तक हो, ठंडा नहीं। 4. खोया मिला ले और अब इसमें सूखा भूना काजू टुकड़ा भी मिला लें। वैसे ये पूरी तरह से वैकल्पिक भी है।) आइये पूरी तैयार है सीधी सरल किन्तु बहुत ही स्वादिष्ट और सेहतमंद सर्दियों की मिठाई। उसे आकार तो हम-आप अपनी-अपनी मर्ज़ी से दे लेंगे…!} भी प्रसिद्ध है तो क्या आपलोग जानते हैं कि गया जी की एक और मिठाई लोगों की जुबान पर खूब चढ़ती है। जी हाँ! आपने सही पहचाना, बात कर रहा हूँ यहाँ की ही प्रसिद्ध अनरसा की।

चावल का अनरसा {2 कटोरी चावल आवश्यकतानुसार घी/तेल तलने के लिये 1.1/2 कटोरी चीनी मावा -सौ ग्राम तिल आवश्यकता के अनुसार दूध पकाने की विधि 1. सबसे पहले चावल को तीन दिनों के लिये भिगोकर रखना है और रोज़ पानी को बदलते रहना है 2. तीन दिनों के बाद चावल को अच्छे से धोकर सूखा लेना है। पंखें के नीचे कपड़े पर फैलाकर। चावल को मिक्सर जार में डालकर बारीक पीस लेना है और छलनी से छान लेना है… 3. अब आधा कप चीनी को भी बारीक पीसकर छान लेना और एक पैन में एक कप चीनी आधा कप पानी डालकर एक तार की चाशनी बना लेना है 4. अब चावल के आटा और खौलते चाशनी को मिला लेना है 5. अब दो चम्मच दूध डालकर आटा गुथ लेना है और दो घंटे के लिये सेट होने के लिये रख देना है 6. अब आटे और आधा मावा को मसल-मसलकर चिकना कर लेना है उसके लिये 5 मिनट तक मसले और अब छोटी-छोटी लोई बना लेना है 7. आधा मावा में चीनी का पाउडर मिला कर भरावन के लिये गोली बनाना है। 8. ⁠अब एक लोई को हाथों से दबा कर थोड़ा सा गोल बेल लेना है और उसमें मावा की गोली को भर लेना है। और सभी अनरसा ऐसे ही बना लेना है 9. ⁠एक अनरसा के बॉल को हल्का चिपटाकर एक तरफ तिल चिपका लेना है 10. ⁠अब एक कड़ाही में घी/तेल गरम कर लें और धीमी आँच पर अनरसे को तल लेना है, अनरसा को एक ही तरफ से ही सेंका जाता है 11. ⁠सभी अनरसो को एक जाली पर रखते जाये ताकी अतिरिक्त घी/तेल निकल जाये} स्‍वाद का जादू ऐसा कि गया जी आने वाले अनरसा लेकर ही लौटते हैं। ज़ुबान भी थोड़ी मीठी रखनी चाहिए…!”

Wednesday, 3 July 2024

पटी दरारें

आग पर चढ़े बर्त्तन में खौलते अदहन में खुदबुदाते चावल सी नहीं होती स्त्रियाँ कि अँगूठे और तर्जनी के बीच एक दाने को मसल कर अंदाज़ा लगा लिया जाता है, चलो सारे चावल पक गए होंगे : अब भात तैयार हो गया…! वैसे भी! उस तरह देखने के बाद भी चावल का स्तर कुछ चावल अधपके रह ही जाते हैं…! स्वतंत्रता से एक कदम आगे ही होती स्वच्छंदता : विनाश की ओर बढ़ जाती हैं स्त्रियाँ! लेकिन दोष केवल स्त्रियों का भी नहीं होता है...। यह ढूँढ़ना सबसे आसान है दूसरे को क्या करना चाहिए। सबसे कठिन है यह ढूँढ़ना मुझे क्या करना चाहिए…। आगे की कहानी कुछ यूँ है, अगुआ की मेहरबानी से पुष्पा की शादी तय हो गयी थी। दोनों पक्षों की बड़ाई को बढ़ा-चढ़ा कर बताना उसका धर्म था। अगुवा अपने कार्य में कुशल था। वैसे कुछ बातें सच भी थी, जैसे कि पुष्पा सारे कार्य करने में दक्ष है-खाना अच्छा बनाती है, कढ़ाई बुनाई-सिलाई अच्छा कर लेती है। अपने कपड़े ख़ुद सिलती है। लेकिन शादी में सिलाई मशीन नहीं मिलने के कारण उलाहने मिलते। कोई ना कोई शब्दों से कोंच देता। उसकी शादी के पाँच वर्षों के बाद उससे बड़े भाई की शादी में उसे सिलाई मशीन नेग में मिल गया। बिहसती हुई सिलाई मशीन लेकर ससुराल आयी। विदाई में मिले माठ (— भइ जो मिठाई कही न जाई। सुख मेलत खत जाय बिलाई। मतलड़ छाल और मरकोरी। माठ पिराँके और वुँदौरी ।— जायसी (शब्द॰)। विशेष— मैदे की एक मोटी और बड़ी पूरी पकाकर शक्कर के पाग में उसे पाग लेते हैं। इसी को माठ कहते हैं। यही मिठाई जब छोटे आकार में बनाई जाती है, तब उसे 'मठरी' वा 'टिकिया' कहते हैं। मठरी नमकीन भी बनाई जाती है। बिहार में वर पक्ष से वधू के घर माठ आता-जाता है।)-लड्डू-खाजा-गाजा-खुरमा-बालूशाही से ससुर जी को प्रसन्न करने का बहाना बना रही थी। घर में बने मिठाई का स्वाद ही अलग होता है। आसानी से बनाया जा सकता हैं। बालूशाही खाने में एकदम खस्ता होती है। यह बाहर से हल्की कठोर और अंदर से एकदम मुलायम होती है। बालूशाही मुँह में रखते ही पिघल जाती है। जानें कैसे बनती है बालूशाही...। बालूशाही बनाने की सामग्री:

मैदा- 2 कप

घी- 1/2 कप

बेकिंग पाउडर- 1 छोटी चम्मच

मावा- 1/4 कप

पिस्ते- 10-12 बारीक कटे

बादाम- 3 बारीक कटे

काजू- 3 बारीक कटे

पाउडर चीनी- 2 टेबल स्पून

चीनी- 2 कप, चाशनी बनाने के लिए

इलायची पाउडर- 1/2 छोटी चम्मच

घी- तलने के लिए

एक बड़े बर्तन में 2 कप चीनी और 1 कप पानी डालकर उसको गैस पर रख दें। चाशनी को एक तार बनने तक पकाएं। अब उसे ठंडा होने तक रख दीजिए, लेकिन ढँककर रखी जाएगी ताकि हल्की गरम भी रहे। बालूशाही इसमें ही डुबाकर निकाला जाएगा।

विधि :– मैदा को एक बर्तन में लें, इसमें बेकिंग पाउडर, घी डालकर मिक्स कर फ्रिज के ठंडे पानी से गूंथ लें, लेकिन पूरी तरह मसल-मसल कर रोटी की तरह नहीं मिलाना है और उसको 10-15 मिनिट के लिए ढक्कर रखें। स्टफिंग बनाने के लिए पैन को गैस पर रखें और इसमें मावा डालें। मावा को भूनकर एक बर्तन में रखें। मावा ठंडा हो जाने पर 2 बड़े चम्मच पाउडर चीनी, बारीक कटे काजू, बादाम, थोडा़ सा इलायची पाउडर मिलाकर रख लीजिए।

गुथे मैदे से छोटी-छोटी लोइया बनाएं। एक-एक लोई को कटोरी का आकार देते हुए गोल करें, बीच में 1/2 छोटी चम्मच मावा स्टफिंग डालकर मैदे को चारों ओर से उठाते हुए स्टफिंग को बंद करें। ऐसे ही सारी बालूशाही बनाएं। तलने के लिये कढ़ाई में घी डालकर धीमी आंच पर हल्का गरम कीजिए। बालूशाही को डालकर हल्की सी ब्राउन होने तक तल लें। जब सब तल जाए तो हल्की गरम चाशनी में डाल-डालकर निकाल लें।

कुछ ही दिनों में उसकी ननद की शादी तय हो गयी तो उसे समझाया गया कि अपना उपहार वो ननद को दे दे। वो तो सास की मशीन पर अपनी कुशलता की परीक्षा पास कर ही चुकी है, (ननद अपने कपड़े भाभी से सिलवाती, पहनकर महाविद्यालय में प्रचार भी करती। प्रधानाध्यापक की बिटिया पक्की सहेली थी। अब सहेली की भाभी के हुनर का आनन्द उसे भी मिलना चाहिए तो उसके भी कपड़े सिलने आये। भाभी का डर से हालत ख़राब। गला काटने में गलती हो जाना स्वाभाविक बात रही। वो तो पूरा कपड़ा था जिससे कुशलता से गलती को सुधार लिया गया। राज का राज आज खोला जा रहा है…।) आगे भी सफलता पाती रहे। पति महोदय ने वादा किया कि शादी के ख़र्चों से उबरते ही पत्नी की पसन्द की सिलाई मशीन ख़रीद देंगे। बड़े भाई हैं अत्यधिक खर्च करना उनका दायित्व बनता है। वो भी सहयोगी होने के ध्येय से ख़ुशी-ख़ुशी अपने ज़िगर के टुकड़े सा सिलाई मशीन ननद को सौंप दी। ननद के लिए तो हाथी शौक़ के लिए पालने वाली सी चीज थी…! बहुत समझा-बुझाकर मशीन से सिलने के लिए एक बार बैठायी गयी थी। ख़ैर! पति महोदय अच्छा वाला जिससे कढ़ाई भी आसानी से हो और सिलाई भी बढ़िया हो सके महँगा वाला सिलाई मशीन ख़रीद देने को कहा गया। वे अनसुना करते रहे तो उनका वादा याद दिलाया गया क्योंकि त्रिया चरित्र आँसू हथियार असर नहीं करता था…! उन्होंने अपना वादा पूरा करने के लिए पुष्पा के सामने शर्त रखी कि “तुम वादा करो कि किसी तरह से भी सिलाई मशीन को आमदनी का माध्यम नहीं बनाया जाएगा।” सपना का अण्डा टूटकर बह गया! क्या करेगी इतना महँगा सिलाई मशीन लेकर…। कोखजाई नहीं होने की टीस उस दिन पुनः हृदय में फफोले बना गयी…! पति अभियन्ता थे, उनके साथ काम करने अनेकों अभियंताओं की पत्नियों का कल्ब खोला गया जिसमें कढ़ाई-सिलाई, वाटिक, बाँधनी, फ़ैब्रिक पेंटिंग, ऑयल पेंटिंग, बालू पेंटिंग, निब पेंटिंग, स्केचिंग इत्यादि तमाम कलाओं को सीखने सिखलाने में अपने को रमा दी। देखने वाले कहते गिनीज़ बुक में नाम दर्ज करवाना है क्या? व्यंग्य रहा हो या खिल्ली उड़ाना, मुस्कुराकर वक्त के बनाये राह पर चल रही थी। पति का जहाँ तबादला होता वहाँ उसका प्रचार पहले पहुँच जाता। पति उसके मुँह पर प्रशंसा नहीं करते लेकिन उसकी कला को उसकी क्षमता को पहचानते तो थे! उसके पति अपने पेशे में बेहद ईमानदार थे तो तबादला भी जल्दी ही जल्दी होता। एक नये शहर में पहुँची तो चमड़े-रेक्सिन के बैग बनाना सीखने का मौक़ा दिखा। वहाँ फार्म भरना था जिसमें आय भरना था। जहाँ सिखाया जाता था वहाँ रहने, नाश्ते-खाने की व्यवस्था थी, सामान ख़रीदने का पैसा मिलता था। उसमें उसके पति के आय के कारण उसका नामांकन नहीं हो सकता था। वह प्रबंधक से मिलने का समय ली और सीखने का मौक़ा माँगी बिना किसी चीज का लाभ लिए। तब उसका नामांकन हो गया। उसी समय वह मोती, पोत, नग जड़े पत्थर से गहना बनाना भी सीख ली। अलग-अलग प्रांतों की महिलाओं से मिलने का जब मौक़ा मिलता तब उस प्रान्त का भोजन बनाना सीख लेती। कुशल महिला बनने में दूरदर्शन भी बहुत सहायक रहा। अनेक कार्यक्रम प्रसारित जो होते सभी को ध्यान से देखती सीखती बनाने का प्रयास करती। मायके से बुनाई मशीन भी उपहार में मिल गया। उसके हाथ से बुनाई का हुनर ज़्यादा पसन्द किए जाते। उसके हाथ का बना भरवा दही बड़ा आह-वाह निकलवा ही लेता!

भरवा दही बड़ा बनाने की सामग्री

250 ग्राम उड़द की दाल

एक मुट्ठी मूंग की धुली दाल

आवश्यकतानुसार सूखे मेवा (काजू,किशमिश, पिस्ता) बारीक काटा हुआ

2 हरी मिर्च कटी हुई

थोड़ा सा हरा धनिया

चुटकी भर सोडा

स्वाद अनुसार नमक

आवश्यकतानुसार तलने के लिए तेल

1/2 किलो दही

1 छोटी कटोरी खट्टी मीठी इमली की चटनी

आवश्यकतानुसार हरी चटनी

थोड़ा जैम

थोड़ा सा अनारदाना

थोड़ा सा हरा धनिया

थोड़ा सा चाट मसाला

थोड़ा सा भुना जीरा पाउडर

स्वाद अनुसार काला नमक

स्वादानुसार भूना लाल मिर्च पाउडर

पकाने का निर्देश : कटी हुई हरी मिर्च, सूखे मेवे, धनिया मिलाकर भरने के लिए

दाल को अच्छे से धो कर 6-8 घंटे के लिए भिगोकर मिक्सर में थोड़ा सा पानी डालकर पेस्ट बना लें इसको हाथों से अच्छे से 5 मिनट तक लगातार फैटे । कुछ घंटे ढँककर छोड़ दें जिससे मिश्रण थोड़ा हल्का हो जाए तब उसमें नमक मीठा सोडा डालकर अच्छे से मिक्स करें और हथेली में हल्का पानी लगाकर थोड़ा पेस्ट रखें उसमें भरावन भरें तथा गर्म तेल में मध्यम आँच पर छोटे-छोटे बड़े तल लें। हल्के गर्म पानी में दही बड़ों को डालते जाएं और आधे घंटे तक भिगोकर रखें। थोड़ा सा दबाकर एक बड़े बर्तन में दही बड़े रखें दही को छलनी में मैश करके छान लें इसमें दो तीन चम्मच पिसी हुई चीनी मिक्स करें और बड़ों के ऊपर डाल दें। इसके ऊपर मीठी चटनी हरी चटनीहरा धनिया, भुना जीरा पाउडर, चाट मसाला, नमक, लाल मिर्च, अनारदाना डालें और सबसे ऊपर जैम सजायें

जिस तरह पुष्पा अपने को तपाती रही बिना कोई मंजिल तय किए चलती रही…, बस! चलती रही, चलती रही! आमदनी की ज़रूरत ही क्या थी!


Monday, 24 June 2024

गुलाबजामुन : ©️नीरजा कृष्णा, पटना


आज रवि की पत्नी मधु की मुँह दिखाई की रस्म होने जा रही है। पास- पड़ोस की महिलाऐं तथा घर की सब बड़ी-बुजुर्ग महिलाऐं एकत्रित हो गई थी। अद्वितीय रूप की मालकिन मधु की सब बलैया ले रही थी। वो सबको बहुत पसंद आई थी। मालती जी मोहित होकर अपनी बहू को निहारे जा रही थी, तभी जो़र का शंखनाद हुआ। सबने चौंक कर दादी जी की ओर देखा, सबके मन में था ...बाप रे ! इस शुभ घड़ी में कौन सा बम फूटेगा? मालती मिन्नत भरी निगाहों से उन्हें देखने लगीं, मानों कह रही हों आज कोई कड़ी बात ना बोलें पर दादी तो दादी है। उन्होंने मालती जी को ही ललकार डाला, “देख बहू! तू तो भोली-भाली है पर ये आजकल की बहुएं बहुत चोखी होशियार होती हैं। तू! बहू, को समझा दे कि हमारे घर में बड़े बुजुर्गों का नाम नहीं लिया जाता है। ये आजकल की छोरियाँ कितनी शान से अपने मरद का नाम भी लेती है। तू  इसे समझा दे.. यहाँ हर टाइम रवि, रवि न चलेगा।"

सब चुप पर रवि की बड़ी दीदी रंजना को मजा़ आने लगा.."दादी! ऐलान भी किया तो अधूरी बात का। अरे पूरी तरह नई बहू को समझाओ 'क्या बोलना है रवि की जगह?"

"हट निगोड़ी! मुझसे ठिठोली कर रही है। आजकल छोरियाँ सब सीखी-पढ़ी हैं! हम लोग तो 'एजी, ओजी, सुनोजी तो' करते थे, सब सुनकर मधु लोटपोट हो गई।

उसी दिन शाम को मधु से रसोई में कुछ बनवाकर रस्म करवाई जानी थी, बुआजी ने बड़े चाव से पूछा ..."मधु ! क्या बना रही हो बेटा?"

"सब तो मम्मी जी ने बनवा ही लिया है ,मैं तो केवल पापा और ताऊजी को चीनी के रस में डुबोने जा रही हूँ। दोनों के ऊपर  आपको सजा दूँगी...।"

बुआजी और दादीजी तो अवाक् देखने लगी..."ये तू क्या अंट-संट बक रही है बेटा! पापा और ताऊ जी के लिए क्या बोल रही है? और उनके ऊपर मुझे सजाएगी, तेरा मतलब क्या है..?"

"बुआजी! इसमें ना समझने वाली क्या बात है?  दादी जी की आज्ञा का पालन ही तो कर रही हूँ। मैं गुलाबजामुन बना रही हूँ, ऊपर से केसर डालूँगी...।"

तब सबको समझ में आया कि पापाजी का नाम गुलाबचंद, ताऊजी का नाम जमुना प्रसाद तथा प्यारी बुआजी का नाम केसर देवी है।

©️नीरजा कृष्णा, पटना

गुलाबजामुन : लहालोट

—विभा रानी श्रीवास्तव, पटना

 “शानदार—मज़ेदार—धारदार नीरजा कृष्णा, पटना की लिखी रचना, लेकिन : लेकिन, शीर्षक उस मुक़ाबले में थोड़ा पिछड़ गया! आदरणीया क्या इस रचना का शीर्षक बदलकर और गुलाबजामुन की रेसपी के संग पुस्तक ‘बिहारी व्यंजन : स्वाद कथा’ में शामिल करना चाहेंगी?”

“विभा रानी श्रीवास्तव! कुछ मार्गदर्शन करिए न।”

“नीरजा कृष्णा आदरणीया! : नहले पर दहला : बीस पर बाईस…!”

“विभा रानी श्रीवास्तव! वाह वाह: : ‘बीस पर बाईस’ में नवीनता है, उपयुक्त है! इसे ही रहने दें।”

जी! दादी सास, सास से बीस थी तो पोता बहू को बाईस हो जाना स्वाभाविक था!

सर्दियों में अक्सर कुछ मीठा और गर्मागर्म खाने की लालसा/तीव्र इच्छा होती है। ऐसे में हलवाई की दुकान पर जाने की बजाय आप घर पर ही ये गुलाबजामुन बनाकर मिलावट से बच सकते हैं। आइए बिना देर किए जान लीजिए ये आसान (पाँच लोगों के लिए) रेसिपी।

गुलाबजामुन बनाने के लिए सामग्री :- 

खोया (मावा) - 1 कप

मैदा (आटा) - 1/4 कप

देसी घी - 1/4 चम्मच

इलायची पाउडर - 1 चम्मच

बेकिंग पाउडर - 1/4 चम्मच

चीनी - 1 कप

पानी - 1/4 कप

केसर - 1 चुटकी

गुलाबजामुन बनाने की विधि :- सबसे पहले एक कढ़ाई में घी गरम करें और उसमें मावा डालकर अच्छी तरह भून लें, इसके बाद इसमें बेकिंग पाउडर डाल दें। इसे धीरे-धीरे मिक्स करते हुए गूंथ लें, इसमें आधा चम्मच इलायची पाउडर भी डाल दें। इसके बाद अगर गोल आकार में गुलाबजामुन बनाने हैं तो इनकी छोटी-छोटी गोली बना लें। अब एक तरफ चाशनी तैयार करनी शुरू कर दें। इसमें सबसे पहले कढ़ाई गैस पर रखें और इसमें चीनी और पानी डालें और उबालने दें, इसमें बाकि आधा चम्मच बचा हुआ इलायची पाउडर भी डाल दें और उबलने दें। जब इसमें एक तार बनने लगे तो गैस बंद कर दें। अब तैयार की हुईं गोली से गुलाबजामुन तलने हैं। इसके लिए एक कढ़ाई में घी गर्म कर लें। जब ये अच्छी तरह गर्म हो जाए तो इसमें गुलाबजामुन को डालकर भूरा-कत्थई रंग आने तक तल लें। ध्यान रहे, इस वक्त गैस की लौ माध्यम ही होनी चाहिए। जब ये सब तल जाएं तो इन्हें गर्म चाशनी में डाल दें। इन्हें 1 घंटा इसी चाशनी में भीगने के लिए छोड़ देंगे तो ये खाने के लिए तैयार हो जाएंगे। इन्हें गर्मागर्म ही सर्व करें।

एक विशेष बात ध्यान रखने योग्य :- तलने के पहले गुलाबजामुन के बॉल में एक-एक इलायची दाना भर दिया जाये तो बढ़िया बनता है…। इलायची के दाने पर चीनी की परत होती है जो बाद में गरम होने पर पिघल जाती है और गुलाबजामुन के बीच में गुलठी भी नहीं हो पाती है…।

तथा बिना कुछ और साझा किए, इस कहानी का समापन नहीं हो सकता है…! मेरे घर में अक्सर गुलाबजामुन (मिठाई! फल नहीं! आपको पता होगा गुलाबजामुन फल भी होता है। इस फल का नाम गुलाबजामुन इसलिए रखा गया क्योंकि बताया जाता है कि इसका स्वाद बिलकुल गुलाबजामुन की तरह ही होता है। यह अमरूद की तरह हल्का पीले-हरे रंग का होता है। यह फल पेड़ पर फरवरी में लगना शुरू हो जाता है और अप्रैल- मई तक खाने लायक हो जाता है। इसमें एक बड़ा बीज भी होता है।फल के बीज का सेवन शरीर में नए सेल्स बनाने का काम करता है। इस फल के बीज का पाउडर ब्लड शुगर स्तर को कंट्रोल कर डायबिटीज़ में फायदा पहुँचाता है। जामुन के बीज की तरह। गुलाबजामुन फल के पत्ते के गुण किसी भी तरह की डायबिटीज़ में फायदा पहुँचा सकते हैं। पत्तियों को सुखाना है और फिर इनका पाउडर तैयार कर गुनगुने पानी के साथ पी लेना है। मुख्यत: उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बंगाल, राजस्थान में पाए जाते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत उत्तर पूर्व के कुछ राज्यों में भी कहीं-कहीं मिल जाते हैं।) रहता था। मेरे पति (डॉ. अरुण कुमार श्रीवास्तव) और बेटे (महबूब श्रीवास्तव) को बहुत ही पसन्द था! (था इसलिए कि समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है…) बेटा को जब गुलाबजामुन मिठाई खाने की इच्छा होती, फ्रीज खोलता डिब्बा/बर्त्तन निकालता और पहले गिनती करता। उपयुक्त संख्या को तीन भाग करता, मान लीजिए, , गुलाबजामुन मिठाई संख्या में सोलह है तो तीन हिस्सा करने पर पाँच-पाँच-पाँच और एक अधिक तो झट से वो खा लेता फिर थोड़ी-थोड़ी देर अपने हिस्से का पाँच मिठाई खा लेता। अगर यह बँटवारा सुबह के समय हुआ है तो उसके पिता कार्यालय जा चुके होते और मुझे खाने की इच्छा नहीं तो हमदोनों के हिस्से का दस मिठाई फ्रिज में रखा जाता। दोपहर-शाम में फिर दस का तीन हिस्सा लगता, तीन-तीन-तीन और शेष एक बेटे के हिस्से… यानी बेटे के फिर से चार गुलाबजामुन मिठाई खाने के बाद , रात में ६ बच जाता तो हमतीनों कभी-कभी दो-दो-दो के भागीदार हो जा सकते थे…। नहीं तो…,

1. मुबश्शिरा — 2. मुबश्शिरा

 01. "क्या दूसरी शादी कर लेने के बारे में नहीं सोच रही हो?" सुई भी गिरती तो शोर गूँज जाता। जैसे आग लगने पर अलार्म बज जाता है। पहली...