कोई नहीं पढ़ पाता मेरे अन्दर की ख़ामोशी ....
पति-पत्नी का रिश्ता काफी मधुर होता ....
मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गई
दोनों जहाँ में हमारी मोहब्बत हो जाए मशहूर
दिल - दिमाग की रस्साकस्सी को छोड़
मित्रता का हाथ बढ़ा ,प्रीत की अल्पनाएं सजाई
क्षणिक भावों का परिणाम ,मनभावन की काल्पनिक उड़ान ,
मादक - मीठी - मनोहर महक तन-बदन को महका गई
पत्थर की लकीरें , मेरे स्वप्न बने नहीं ,
ऐतिहासिक परम्पराओं और दकियानुसी पृष्ठभूमि के
रिवाज़ों के साथ की मनमानी
उनके महत्वाकाँक्षाओं के गिद्ध ने
मेरे आकाँक्षाओं के मयूर को नोच डाला
मेघ बन सैलाब लाना मुझे आता नहीं ,
जुबां की ताकत , खून में उबाल लाती नहीं
अविनीत निगाहें भी टटोलती अवश जीवन ,
अविकल चाहतें , नृत्य करते नहीं ,ग़म की , ख़िज़ाँ की रुत पर
प्रतीक्षा से ऊबी स्मृतियाँ सिसक- सिसक रोई
हसरतों का सलोना झोंका अब गुदगुदाती नहीं
कविता के मृदंग साथी बनतें नहीं
अब मैं गुनगुनाती नहीं ....
शिखर से टकरा फिर नीर बन मिट्टी से मिलती .... !!
मिट्टी अमिट बड़ी अनमोल होती ,
मैं मिट्टी में लोट - पोट कर बड़ी होती ,
बचपन छोड़ जवानी माँगती ,
मिट्टी में घरौंदे बनाकर सच का घर बनाने के सपने सजाती .... !!
पहली बारिश की बुँदे मिट्टी का हाल-चाल जानने आती ,
मिट्टी मिलन से निकली सौंधी खुशबु इत्र को मात देती ,