Tuesday 19 June 2012

पति-पत्नी का रिश्ता काफी मधुर होता ....


                                       


कोई नहीं पढ़ पाता मेरे अन्दर की ख़ामोशी ....

पति-पत्नी का रिश्ता काफी मधुर होता ....

मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गई  

दोनों जहाँ में हमारी मोहब्बत हो जाए मशहूर

दिल - दिमाग की रस्साकस्सी को छोड़

मित्रता का हाथ  बढ़ा ,प्रीत की अल्पनाएं सजाई  

क्षणिक  भावों का परिणाम ,मनभावन की काल्पनिक उड़ान ,

मादक -  मीठी - मनोहर महक तन-बदन को महका गई  

पत्थर की लकीरें , मेरे स्वप्न  बने नहीं ,

ऐतिहासिक  परम्पराओं और दकियानुसी पृष्ठभूमि के

 रिवाज़ों के साथ की मनमानी 

उनके महत्वाकाँक्षाओं के गिद्ध ने 

मेरे आकाँक्षाओं के मयूर को नोच डाला

मेघ बन सैलाब लाना मुझे आता नहीं ,

जुबां की ताकत , खून में उबाल लाती नहीं  

अविनीत निगाहें भी टटोलती अवश जीवन ,

अविकल चाहतें , नृत्य  करते नहीं ,ग़म की , ख़िज़ाँ की रुत पर 

प्रतीक्षा से ऊबी स्मृतियाँ सिसक- सिसक रोई  

हसरतों का सलोना झोंका अब गुदगुदाती नहीं 

कविता के मृदंग  साथी बनतें नहीं 

अब मैं गुनगुनाती नहीं .... 

                                       


Monday 18 June 2012

ऐतिहासिक वृत्तान्त



ऐतिहासिक वृत्तान्त को कविता का रूप देती ,  

मैं गुनगुनाती-मतवाली बुलबुल बन जाती .... 

इधर डोलती उधर डोलती सबका मन मोह लेती ....

स्तब्ध निगाहें ,नि:शब्द जुबां नहीं देख  पाती ,

एक भूखे आदमी के हाथ का कौर ,

चीरती है सारे जहां की ख़ामोशी ....

दिल के भीतर मनोभावों का , 

तहलका मचता ,

हलचल का शोर होता ....

कैसे ढूढ़ें नित - नित ,

नयी - नयी सुगम राहें ....

सुनहला प्रीत की सुनहली सी आहट ,

सदा जीवन को दमकाती रहे ....

सलोना मौसम मेघ के आने से होगा ....

मानसून के आते रुत बदल जायेगी ....

तप्त दिन हसीन मादक चाँदनी रात में ढल जायेगी ....

स्वप्न की स्मृतियाँ श्रृंगार कर लेगीं ....

गुदगुदाती कविता की मृदंग बजेगें ....    

मधुर सुहावन अति मनभावन ,

मन मयूर का नृत्य होगा ....

समय की पथरीली पृष्ठभूमि भी खिंचति हैं ,थोड़ी सी चिंता की लकीरें ....


काल्पनिक चमत्कृति  हो .... धरा पर पानी की क्षणिक निशानी न हो ....

Thursday 14 June 2012

# रवि की आशिकी नीर से #



    




रवि की आशिकी नीर से होती ,

वशीभूत हो रूप बदल मेघ बन जाती  .... ,

शिखर से टकरा फिर नीर बन मिट्टी से मिलती .... !!

मिट्टी अमिट बड़ी अनमोल होती ,

मैं मिट्टी में लोट - पोट कर बड़ी होती ,

बचपन छोड़ जवानी माँगती ,

मिट्टी में घरौंदे बनाकर सच का घर बनाने के सपने सजाती .... !!

पहली बारिश की बुँदे मिट्टी का हाल-चाल जानने आती ,

मिट्टी मिलन से निकली सौंधी खुशबु इत्र को मात देती ,

सौंधी खुशबु नयी ताजगी , नया उत्साह जगा जाती ,

जलज पैदा कर जल में चाँद का अक्स गिला दिखलाती ,

थकान से उपजी असजता का एहसास मिटा जाती ,

बिखरे हुए घर को दोबारा व्यवस्थित करने का हिम्मत पैदा कर जाती ,

मीठे - मीठे सपनो की काल्पनिक दुनिया में जाने की उम्मीद दिखा जाती ,

आंधी से ऊपर उड़े धुल को मिट्टी में मिलाती हमारी स्मरण-शक्ति तेज करती ,

....... निरर्थक का कोई वजूद नहीं होता .... कहीं कोई स्थान नहीं मिलता .......

जब-जब पहली बारिश की बुँदे मिट्टी का हाल-चाल जानने आती ..... !!

Wednesday 13 June 2012

सूरज या आग का गोला





सूरज , आग का गोला दीखता ,
दूर - दूर बादल नजर नहीं आता ,
तन-मन दहकता ,पलक झपकता ,
मॉनसून आया , लो हो गई बरसात.... !!



                     
                           

....(छोटी सखी - छोटी बहन - बेटियाँ पुकार सुनो)....
इसमें कमी ,लिट्टी - चोखा का लगता ,
चाय-चुस्की ,गर्म - गर्म पकौडा कोई देता ....
ख़ुद बना , खाना , अच्छा नहीं लगता ,
मॉनसून आया , लो हो गई बरसात.... !!

          



       आखें बार बार खिड़की के बाहर झांकती ,
                        धूप निकलने का , इंतज़ार करती ,
                       न लग जाए आचार में फंफूदी ,डराता ,
                         मॉनसून आया , लो हो गई बरसात.... !!


 जब - जब न्यूज़ पेपर गीला हाथ लगता , 
ऐहतियात से पलट - पलट पढ़ना पड़ता ,
भुट्टों की सोंधी महक मन को ललचाता ,
मॉनसून आया , लो हो गई बरसात.... !!         


प्रकृति के सभी स्वरूप देखने - सुनने ,
महसूस करने में प्रिय लगते .....
लेकिन किन्हीं कारणों से उत्पन्न प्राकृतिक
उथल-पुथल हमें हिला देती , उथल-पुथल में ही जन -जीवन को
प्राकृतिक प्रकोप को सहना पड़ता ....
आने वाले वर्षों में और न जाने कहां-कितना होगा विनाश....
सुनामी लाता मॉनसून आया , लो हो गई बरसात.... !!

Tuesday 12 June 2012

* कोपमार्जित हुई धरा *



                                 





सूर्य के क्रोध की कुदृष्टि से ,

कोपमार्जित हुई धरा .... 

यूँ लगा किसी माँ का 

जवान बेटा मरा ....

भू पर दरारे ही दरारे अटी ....

जननी की जैसे कलेजा फटी ....

टकटकी लगाये आसमान में ,

अपने - अपने खेतों  से ,

यही खयाल आता है ....

किसानों के  मन में बार बार ....

कब दिखेंगे वे पानी वाले बादल ....

किसानों की फसल ही नहीं झुलस रही ,

किसानों के अन्तर मन में कल्पनाओं की

लहलहाती सपनों में भी आग लगी ....

पहली बारिश की फुहारें की बूंदें ....

बाँझ की गोद में शीशु की किलकारियां गूंजें ....

गहरे अर्थों में केवल वर्षा न होकर किसानो के

आस(उम्मीद) ,आती जाती सांस है .... धरती में डाले 

अनाजों के बीज अंकुरित होंगे और फिर फसलों के उगने के

साथ ही चारों तरफ हरियाली छा जाएगी ....

धरती के आंचल खुशियों से भर जाएंगे ....

किसानों के घर-आँगन धन्य-धान से सज जायेगें .... !!



Monday 11 June 2012

* धरा का आलिंगन *






वसंत के मोहक

वातावरण में ,

धरती हंसती ,

खेलती जवान हुई ,

ग्रीष्म की आहट के

साथ-साथ धरा का

यौवन तपना शुरू हुआ ,

जेठ का महीना

जलाता-तड़पाता

उर्वर एवं

उपजाऊ बना जाता ,

बादल आषाढ़ का

उमड़ता - घुमड़ता

प्यार जता जाता ,

प्रकृति के सारे

बंधनों को तोड़ता ,

पृथ्वी को सुहागन

बना जाता ....

नए - नए

कोपलों का

इन्तजार होता ....

मॉनसून जब
धरा का 

आलिंगन

करने आता ....

Saturday 9 June 2012

 संप्रेषण  , केवल  शब्दों  से  नहीं  होता  ,
           जिस  तरह  से शब्द  बोले  जाते  हैं  ,
    चेहरे के  भाव  से भी  संप्रेषण होता है…. !!

# विषम परिस्थितियों में #



            







विषम परिस्थितियों में ,
किसी अपने के ....
पीठ पर थपथपाता ,
स्नेहिल हथेली की थाप ....
बेकारी - लाचारी ....
बेबसी -असंतुष्टि ....
असहायता - साधनहीनता में ,
शांति दे जाता .... 
कम कर जाता ,
मानसिक अस्थिरता ....
बनाए रखता ,
स्वाभिमानी हठधर्मिता ....
तो .........................
सख्ती अपने लोगो पर ,
शासित कर संकुचित करती है ....
बेरुखी अपने लोगों की ,
जब बेक़रार करती हैं ....
तल्खिया अपनों की ,
मनोबल को  तार - तार करती हैं ,
तब .................................... 
प्यार की अजब - गजब , 
ख़ुमारी उतारता चला जाता है .... !!

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...