सूर्य के क्रोध की कुदृष्टि से ,
कोपमार्जित हुई धरा ....
यूँ लगा किसी माँ का
जवान बेटा मरा ....
भू पर दरारे ही दरारे अटी ....
जननी की जैसे कलेजा फटी ....
टकटकी लगाये आसमान में ,
अपने - अपने खेतों से ,
यही खयाल आता है ....
किसानों के मन में बार बार ....
कब दिखेंगे वे पानी वाले बादल ....
किसानों की फसल ही नहीं झुलस रही ,
किसानों के अन्तर मन में कल्पनाओं की
लहलहाती सपनों में भी आग लगी ....
पहली बारिश की फुहारें की बूंदें ....
बाँझ की गोद में शीशु की किलकारियां गूंजें ....
गहरे अर्थों में केवल वर्षा न होकर किसानो के
आस(उम्मीद) ,आती जाती सांस है .... धरती में डाले
अनाजों के बीज अंकुरित होंगे और फिर फसलों के उगने के
साथ ही चारों तरफ हरियाली छा जाएगी ....
धरती के आंचल खुशियों से भर जाएंगे ....
किसानों के घर-आँगन धन्य-धान से सज जायेगें .... !!
अथाह विचलित दृश्य .... सारी धरती कोपभाजन हुई ...
ReplyDeleteएक एक बूंद इसे दुलराएगी, फिर धरती मुस्काएगी
धरती के आंचल खुशियों से भर जाएंगे ....
ReplyDeleteकिसानों के घर-आँगन धन्य-धान से सज जायेगें ....
बेहतरीन अभिव्यक्ति,बहुत सुंदर रचना,,,,, ,
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
बहुत बढ़िया आंटी!
ReplyDeleteसादर
सुन्दर बिम्ब
ReplyDeleteबधाई मैम
बेहतरीन अभिव्यक्ति..
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