"दंग रह जाती हूँ, इस उम्र में भी सासु-माँ घर का सारा काम कर लेती हैं..! अपने शौक पूरा करने के लिए हौसला रखती हैं... दस लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है! जब से वे हमारे पास रहने आई हैं.. मुझे तो मायके में रहने का सुख मिलने लगा है। शायद मायके से भी ज्यादा...। दादी-सासु जी और सासु-माँ को कभी साथ नहीं देख पायी। दादी-सासु जी भी इतना ही सहयोगी रही होंगी तभी न...," देर रात कार्यालय से लौटी नैनी अपने पति प्रभास से बोली।
"आओ अभी मेरी माँ से उनकी बहू होने के किस्से सुन लो.. जबतक मेरी नानी जीवित रही तभी तक मेरी माँ रानी रही..!"प्रभास नैनी को लेकर अपनी माँ के कमरे में पहुँच गया। उसकी माँ प्रतियोगिता में भेजने के लिए लघुकथा लेखन में उलझी हुई थी।
"बताइये न माँ जब आप बहू थीं तब क्या आपको इतना ही सुख था, जितना मुझे मिल रहा है ?" नैनी ने सास से पूछा।
"मेरी सासु-माँ की सासु-माँ सौतेली थीं.. वो ज़माना भी बहुत अलग था..! हमारे ज़माने कुछ अलग हुए लेकिन शिक्षा की कमी तो रही...। दर्द देने वाली पुरानी बातों को याद करने से खुद के ही जख्म हरे करने पड़ते हैं। मैं पूरी शिक्षित हूँ यह कैसे साबित हो सकेगा..। बदलते युग के साथ बेटियों का युग बदलना चाहिए। पहले बेटियाँ रोटी पकाती तो थीं खा नहीं पाती थी आज बेटियाँ रोटियाँ कमा लेती हैं... खाती पिज्जा बर्गर हैं। हर पीढ़ी में बेटियों की जिंदगी कंटीली झाड़ में खिले गुलाब सी होती है... और मैं एक बेटी को मिले कंटीली झाड़ को हटाने की कोशिश करती हूँ।" प्रभास को अपनी माँ बेहद खूबसूरत लग रही थीं।
"चलो माँ आज बाहर से आइसक्रीम खाने चलते हैं..।" प्रभास अपनी नम आँखें सबसे छुपाने में कामयाब रहता है।