Friday 28 August 2015

भाई बहनें ऐसे भी होते हैं


1
तू
सोचे
व्यापार
जेब तौले
बोझ बन्धन
रक्षा का सूता
अभागी बहना
फिर तू न कहना
बन्द होते आँखें मैया
मुख क्यों नहीं मोड़े भैया
~~
हो
मूढ़
कहता
सूता बंध
पोंका मोह का
पोहना अंह का
चौमासा है निरभ्र
दुर्गति रिश्ता का करे
~~
2

कहते सुनते शर्म भी शर्मसार हो
लिखते भी जीवट जी बेहाल हो

उच्च जाति , धनाढ्य , शिक्षित , कुलीन की परिभाषा की धज्जियाँ उड़ाती कथा है .... बहू , पत्नी , भाभी को तो छोड़ें ....... एक स्त्री को .... मरणासन्न या यूँ कहें मरा ही समझ कर.... परिवार घर से दूर ..... सड़क पर फेक चले गए ..... वो स्त्री कैसे होश में आई ; अरे ऐसी स्त्रियों की साँसें बड़ी बेशर्म जीवट होती है , कैसे अपनों के पास पहुँची , या यूँ कहें कैसे पहुँचाई गई ..... कैसे वर्षों मानसिक पीड़ा से गुजरी ..... कैसे फिर सम्भली ... कैसे अपने पैरों पर खड़ी हो कर अकेले जीवन यापन कर रही है अभी भी ..... ये जानने से ज्यादा जरूरी हैं ; ये जानना कि वो मरणासन्न स्थिति में पहुँची कैसे , कारण था सगे भाई बहन में नाजायज सम्बन्ध और घर को चाहिए था केवल एक वारिस ..... जो संजोग से पैदा भी हुआ बेटा ..... 

भाई बहनें ऎसे भी होते हैं



उड़ेगी बिटिया






 हाँ नहीं तो और क्या

द+हे+ज
द(विशेषण)=दाता
ज(विशेषण)=उत्पन्न करने वाला 
😜😘

दहेज के जन्मदाता हम
पालनकर्ता हम
तो सामूल मिटाने वाला कौन होगा

हो चुका जो हो चुका
चूक तो बहुत हुई
चूका तो बहुत मौका
सुधरने सुधारने का जोश चढ़ा है
तो मौका है खा लो ना सौगन्ध
ना दोगे ना लोगे दहेज
कोर्ट मैरेज का कानून बना है
शुरुआत मैं कर चुकी
सब क्यों चूके मौक़ा
ना सताये समाजिक रूतबा
लोग क्या कहेंगे ...... लोगों का तो काम ही है कहना
कोरी बातें जितना करवा लो
लम्बी लम्बी डींगे हांकवा लो
करने का वक़्त आयेगा तो
बगले झँकवा लो
बेटे की माँ को बेटे के जन्म से ही उसकी शादी का
शौक का नशा चढ़ा रहता है
तो बेटी की अम्मा तो गुड़िया की शादी शादी खेलती
आत्मजा में अपने सपने संजोये रहती है
डर लगेगी बिटिया कैसे ब्याही जायेगी
डर को दफन करो
मचलेगी बिटिया
उड़ेगी बिटिया

हाँ नहीं तो और क्या




यशोधरा

दहेज का दोष दूँ या माँ बाप के मनोरोग का या लड़की के जुझारू ना होने का
मेरे एक परिचित की दूसरी शादी अपने से दस साल छोटी खूबसूरत लड़की से होती है ...... शादी का तौहफा अपने तीन छोटे छोटे बच्चे देता है जो उसकी पहली पत्नी के सन्तान होते हैं ..... एक दो साल सब ठीक ठाक रहा ; ऐसा मुझे अनुमान है , हम एक मकान में ही रहते थे तब ..... दूसरी शादी के दो तीन साल के बाद एक दिन अचानक वो मर्द नामक जीव गायब हो गया .......
 तीन बच्चों की परवरिश करती वो स्त्री आज भी अपने पति का इंतजार कर रही है 23 साल से

क्या वो यशोधरा है 
बच्चें कैसे पूछें

कहती है चेटी
तू नानी की बेटी

~~~~~
~~~~~~~ किसी ने कहा
जिस घर में बेटी दी जाती है ; उसके भरण पोषण का खर्चा , पूरी जिंदगी वो घर उठाता है तो दहेज स्वाभाविक चीज है
_____________________ भरण पोषण घर तो पहले भी नहीं उठाता था ...... आँख खुलने से लेकर आँख बन्द होने तक मुफ़्त की नौकरानी धोबिन नर्स मिलती थी ...... अब तो पकाने से लेकर कमाने वाली भी मिलती है
~~~~~~~ किसी ने कहा
हम अपने लिए कुछ थोड़े ना मांग रहे जो दे रहे अपनी बेटी को ख़ुशी खुशी दे रहे हैं
___________________ कुछ बेटियाँ अपवाद होती हैं जो मांग मांग कर जबरदस्ती अपना दहेज तैयार करवाती हैं ....
अपवाद को छोड़ दें तो दहेज देने में कितने माँ बाप खुश होते हैं
_______ दहेज को बेटी को दिया तोहफा का नाम मत दीजिये
~~~~~~~ किसी ने कहा
पिता के अर्जित धन में से जो दहेज मिल जाता है ; वही तो बेटी को मिल पाता है , सब तो बेटों को ही तो मिलता है
___________ पिता के अर्जित धन में से बेटियों को भी मिले ये तो कानून में भी है ..... पिता की जिम्मेदारियों को बेटियाँ भी उठाये ये भी कानून हैं ...... कितने ससुराल वाले सहयोग करते कि बेटियाँ आजादी से वो जिम्मेदारी पूरा कर सके
__________ तब तो केवल बेटों की ओर समाज देखता और बहुओं को जिम्मेदारियों को याद दिलाया जाता है ..... क्यों नहीं बेटियाँ आकर भाभियों को राहत का पल देती हैं
__________ अपवाद नहीं देखना मुझे

Thursday 27 August 2015

कन्या पढ़ेंगी भी और उड़ेंगी भी



बात बहुत पुरानी है ..... पर लिखना जरूरी है .....  तब हम रक्सौल में रहते थे ..... मेरे ससुर जी व्यापार मंडल के मैनेजर और मेरे बड़े भैया की सिंचाई विभाग में इंजीनियर की नौकरी वहाँ थी ...... बड़े भैया के बॉस थे ; जिनके घर पहली संतान बेटी हुई , दादी और पिता का व्यवहार उस नन्हीं सी जान और उसकी माता के प्रति अच्छा नहीं था ...... घर में ना पैसों की कमी थी ना लड़कियों की संख्या ज्यादा थी ........ सिंचाई विभाग में कार्य करने वालों के घर में नोटों का बिस्तर होता है ...... बरसात के समय झांगा से बहार कर घर नोट लाते हैं लोग ....
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ संजोग से उस समय मैं गर्भवती थी ; किसी ने मुझसे मजाक में कहा :-  सोच लीजिये , आपको जो लड़की हुई ............ मेरा जबाब था :- सोचे वो , जो गाय को शेरनी बनते नहीं देखें हैं .......
सब आवाक ...... कहने वाले का मजाक ही था , क्योंकि हमारे घर में लड़का लड़की में कोई फर्क कभी नहीं रहा .... मेरी ननद को एक ही लड़की है और उनकी परवरिश किसी लड़के से कम नहीं हुई है ......

जिसने भी बिल्ली को जनते देखा है , उसके गुर्राने से वाकिफ  होंगे ........ अपने पर माँ आ जाये तो हर बाधा को दूर कर सकती है ........ कन्या भ्रूण में हत्या की पूरी जिम्मेदारी एक स्त्री की मैं मानती हूँ ...... 

__________ एक छत के लिए कितना सहती है स्त्रियाँ
जिस छत के नीचे मान सम्मान अधिकार सुरक्षित नहीं , किस काम की ऐसी छत
___________ छोड़ देना आसान नहीं तो नामुमकिन भी नहीं ऎसी छत
__________ गिरते बिलखते सम्भलते ऊंचाइयों को छूते देखी हूँ , बहुत सी स्त्रियों को ऐसी छत से विलग होकर ......

सभी कन्याओं को ढ़ेरों आआशीष के संग अशेष शुभकामनायें

~~~~|~~~~~|~~~~~

आस की प्यास
हौसले की थपकी
कहो माता मैं हूँ ना
सुरक्षित हो
पढ़ेगी भी बिटिया
उड़ेगी ही बेटियाँ

~~~~~

हम सब कहें न
हम हैं न
है न



Saturday 22 August 2015

ह न त



ह न त

समय बदलता ही है ....... पति के कलाई और उँगलियों पर दवाई मलती करमजली सोच रही थी ...... अब हमेशा दर्द और झुनझुनी से उसके पति बहुत परेशान रहते हैं ..... एक समय ऐसा था कि उनके झापड़ से लोग डरते थे ..... चटाक हुआ कि नीला लाल हुआ वो जगह ..... अपने टूटी कान की बाली व कान से बहते पानी और फूटते फूटती बची आँखें कहाँ भूल पाई है आज तक करमजली

ह न त

भूलना ही आसान कहाँ होता है ......
यादों से धूल झड़ना मुश्किल कहाँ होता है ......

ह न त

किसी ने सच कहा है
वक्त वक्त की बात हैं
जल में नाव में गाडी
तो
थल पे गाडी पे नाव

ह न त

Wednesday 19 August 2015

मनुहार पाती









पूजनीय भैया
                   सादर प्रणाम

यहाँ सब कुशल है । आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है आप लोग भी सकुशल होंगे ।
                                 दोनों भाभी व बाबू से बात हुई तो मैं अति उत्साह में बोली कि इस बार मैं किसी को राखी नहीं भेजूंगी ।। शनिवार दिन है ; बैंक आधे दिन का होता है तो राखी के कारण वो आधा दिन भी छुट्टी में , छोटे भैया की छुट्टी । आप इसी साल रिटायर्ड किये हैं तो छुट्टी ही छुट्टी । बाबू टूर ले लेगा ; दूसरे दिन रविवार तो किसी को कोई समस्या नहीं , आसानी से आना हो सकता है ।
                                जब से होश सम्भाली हूँ ; राखी और जन्मदिन हर्षोल्लास से मनाती आई हूँ लेकिन दोनों एक दिन कभी नहीं मनाई , पड़ा ही नहीं न किसी साल एक दिन ही । इस साल एक दिन पड़ने से अति उत्साहित हूँ ; एकदम छोटी सी बेबी फिर जीने लगी है , उम्र का क्या वो तो भूलने में लगी है ।
                                                    जैसे जैसे दिन नजदीक आने लगे सोच बचपने पर हावी होने लगे ; अगले पल का ठिकाना नहीं ; सावन का मौसम तबीयत किसी की खराब हो सकती है । ये तो जबरदस्ती हो गई न विवश करना ; वो भी इमोशनल ब्लैकमेलिंग । ब्याही बहना का एक हद होता है , भाभी का कुछ प्रोग्राम हो सकता है । किसी कारणवश कोई भाई ना आ पाये और मैं राखी भी न भेजूं तो तब अफसोस का क्या फायदा होगा ।
                                       राखी भेज रही हूँ लेकिन नाउम्मीद नहीं हूँ । प्रतीक्षा तो नैनों को रहती है , आस में दिल होता है । कमबख्त दिमाग बहुत सोचता है ।
             
                   व्यग्र बहना
                ले अक्षत व डोरी
                   ताके ड्योढ़ी

सबको यथायोग्य प्रणामाशीष बोल देंगे मेरी ओर से

                                आशीष की आकांक्षी
                        आपकी छोटी बहना
         
                    बेबी



जिसकी शंका थी वही हुआ न
छोटे भैया का फोन आया ; उनकी बदली होने वाली है तो वे शायद ना आ सकें
 दिल दिमाग की जंग में जीत दिमाग की हो तो बात दिमाग की मान लेनी चाहिए
है न

Friday 14 August 2015

वन्दे मातरम जय हिन्द



वन्दे मातरम 

India Indian जो कहना है कहो फिरंगियों के कहने का हमें क्या परवाह
 हमें तो हिंद हिंदी का मान अभिमान हमेशा से रहा और हमेशा रहेगा

उड़ाई नींद देश के हालात , जनी चिंता गहराई है
जश्ने आजादी उजड़ी मांग सूनी कोख ने दिलाई है
नहीं सोच पाते मुख पोते स्याही कैसे मिटा पायेंगे
कुछ अपने स्वार्थवश धर्म जाति की राख उड़ाई है

~~~~~~~~~~~~~~~ 

जश्ने आजादी ने जलेबी याद दिलाई है 
पापा काश आप लौट सकते 


दुष्टान्न त्यागें
हिन्द मिट्टी का नशा
दुश्मनी भूलें
~~ 
टंटा करते 
छिपकली फतिंगा -
पाक हिन्द से 

चाहत-बेड़े में साधिकारजो खड़ी होती
किस्मत ,लकिरों से यूँ ना लड़ी होती
तरसते रह गए एक सालिम मिलते
न तपिश औ न असुअन झड़ी होती

~~
हर हिन्दू विवेकानन्द और हर मुस्लिम हो कलाम
हो जाए न कमाल का हिन्द
खूबसूरत सपना है
स्वप्न ही तो हम हिन्दुस्तानियों की ताकत है

जय हिन्द 

~~~~~~~~~~~~~~
अंकुर झाँके
जनित्री विहँसती
शिशु दुलारे 

Wednesday 12 August 2015

संग्रह





चाहत के बेड़े में जो खड़ी होती
हाथ-लकिरों से यूँ ना लड़ी होती
तरसते रह गए एक सालिम मिलते
न तपिश औ न असुअन झड़ी होती
....

बचना ऐसे मेहमाँ से
खुद राजा बन बैठता मेजमाँ पर रजा चलाता है
गुलाम खुद के घर में रंक टुकड़ो में बाँट बनाता है
..
क से कुबेर क से कंगाल कहो है न वश की बात
मेहमाँ न रहे बसे ज्यादा दिन जो बाहर औकात
..
जुबान नहीं होते तो जंग नहीं होते मान ली बात
घुटन से निजात कैसे मिलते सहे जो ना जाए घात
....
छोटे छोटे टांको से 
दर्द की तुरपाई की
खिलखिलाहट पैच
दरके की भरपाई की




Sunday 2 August 2015

मित्रता दिवस की बधाई

1
बादल बदला के लिए नहीं तरसते
एक समान सरी व मरु में हैं बरसते
मित्रता यूँ होना चाहिए हम समझते
2
अच्छाइयों का कद्र वे नहीं करते जो खुद अच्छे नहीं होते
अहंकार अभिमान स्वाभिमान का अंतर नासमझ नहीं समझते
मोम को आंच पर चढ़ा कर हैं आकार देते 
3
कुंदन फोन की अपनी सहेली पुष्पा को ; फोन पुष्पा के पति उठाये
हेल्लो हाँ आप कौन ?
 कुंदन
कौन कुंदन
कुंदन फोन पटक दी
बाद में पति के बताने पर कि कुंदन का फोन आया था ; पुष्पा कुंदन को फोन की
हेल्लो
मैं पुष्पा
कौन पुष्पा ; आज के बाद कभी मुझसे कोई बात नहीं करना , तुम अपने पति को मेरा परिचय नहीं दी थी 
अरे मेरी बात तो सुनो
फोन कट चुका था फिर कभी कुंदन पुष्पा का फोन नहीं उठाई वो कहाँ है उसका पता पुष्पा कैसे ढूंढे और बताये उसके पति याद नहीं रख सके इसमें उसका क्या कसूर
कुंदन का फोन नम्बर पुष्पा अपने पति के दोस्त की पत्नी के माध्यम से उनकी फुफेरी बहन के द्वारा खोज निकाली थी ...... कुंदन उस गांव में तब टीचर थी ..... बाद में वो उस गांव को छोड़ कर चली गई

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...