Friday 28 April 2017

उपचार...



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रक्षा-बंधन के दिन रीमा राखी और मिठाई का डिब्बा लेकर सबेरे ही सबेरे केदार बाबु के घर पहुँच गई... राखी और मिठाई का डिब्बा एक मेज पर रखकर , केदार बाबु का चरण-स्पर्श किया । इतने में दुसरे कमरे से निकलकर उनकी पत्नी आई तो रीमा ने उनका भी चरण-स्पर्श किया।
"मैंने आपको पहचाना नहीं" केदार बाबु की पत्नी ने कहा।
"भैया ने आपको मेरे बारे में कुछ नहीं बतलाया ! क्यों भैया आपने ऐसा क्यों किया ? मैं इनकी छोटी बहन हूँ... आप मेरी भाभी हैं"।
"क्यों जी ! आपकी कोई कोई छोटी बहन भी है ! आपने कभी मुझे बतलाया नहीं "
ये सब सुनकर केदार बाबु स्तब्ध रह गये । उनकी दशा यूँ हुई मानो काटो तो खून नहीं...
"भाभी पहले मैं भैया को राखी बाँध लूँ । फिर बैठ कर आराम से बातें करेंगे"।
केदार बाबु के पास कोई चारा नहीं था ,उन्होंने अपने सिर पर रुमाल रखा और अपनी दाहिनी कलाई रीमा के सामने बढ़ा दी
                      राखी बाँधकर रीमा ने मिठाई का एक टुकड़ा केदार बाबु के मुँह में डाल दिया और कहा "भैया! मेरी उम्र भी आपको लग जाए"
इतना सुनकर शर्म और अपमान से घूंटते हुए केदार बाबु के आँखों से आँसू निकल आये
यह देखकर केदार बाबु की पत्नी ने कहा "अरे! आपदोनों भाई-बहन में इतना प्रेम है और मुझे पता तक नहीं "!
"भाभी हमदोनों तो एक ही विद्यालय में पढ़ाते हैं और मध्यांतर(टिफिन) में अक्सर एक साथ खाना खाते हैं "
"मगर ये तो कभी भी मध्यांतर भोजन डिब्बा तो ले ही नहीं जाते हैं "केदार बाबु की पत्नी ने कहा
"मैं जो लाती हूँ! फिर ये क्यों लाते..."
उधर केदार बाबु के आँखों से आँसू थम ही नहीं रहे थे और ये वे मन में सोच रहे थे कि "मैं लोगों से आज तक रीमा और अपने बारे में प्रेमालाप की झूठी बातें फैलता रहा वो अपने मन में बोल रहे थे कि "धिक्कार है मुझ पर !
रीमा सोच रही थी दो सहेलियों से मिला सुझाव

पहली सहेली  "मुँह पर चप्पल मारो"
दूसरी सहेली "घर जाकर राखी बाँध आओ"

तब तक केदार बाबु की पत्नी चाय नाश्ता का इंतजाम कर लाते हुए बोली " रोते हुए ही रहोगे कि बहन को कुछ नेग-वेग भी दोगे!


Wednesday 12 April 2017

कृष्ण सुदामा



अपने घनिष्ट मित्र नंदनी के पार्थिव शरीर, अग्नि को सौंप कर सतीश अपने भावों को यादों का खाद पानी दे सींच रहा
उसकी बिटिया की शादी अचानक से तैय हो गई जल्दबाज़ी में लाखों का इंतज़ाम करना था ... समय ने उसे आखिर सीखा ही दिया कि 
लेखन के राजा/रानी को लक्ष्मी का साथ नहीं मिलता ना ही सगे रिश्तेदार क़रीब आना चाहते हैं
दिन क़रीब आता जा रहा था और चिंता बढ़ती जा रही थी। .... एक दिन वो अपने कमरे में बैठा था कि नंदनी उससे मिलने आई उदासी में घिरे मित्र को देख। .... चिंता का कारण जान गई । ... बिना रक़म भरे हस्ताक्षर कर चेक थमाते हुए बोली कि बैंक में रखा रक़म मिट्टी ही है। जब दोस्त के काम ना आए जितना है, सब निकाल लेना और बिटिया की शादी धूम-धाम से कर , अपनी मुस्कुराहट वापस ले आना। 
बिटिया की शादी के कई महीनों के बाद। ... सतीष जब रक़म वापस करने लगा तो नंदनी बोली
क्या रक़म तुम्हारे हाथों में दी थी?
ना हाथ में दी थी ना हाथ में लूँगी!
जहाँ से लिए थे वहीं रख आओ। .... फिर किसी के काम आ जाएँगे"

Sunday 9 April 2017

हौसला




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टूटता तारा-
आस पाए युगल
जकड़े हाथ।

><><

हाँ तो क्यूँ कहा जाता उन्हें चोर
हाथ सफाई दिखलाये जादूगर
कर जाता समान इधर का उधर
लालच पैसे का करता मन मैली
देते लेते शब्दों की सुंदरतम थैली
दौड़ उम्दा सृजनता के चक्कर
दो-दो पंक्तियाँ ले यहाँ-वहाँ से
लो कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा
छपास रचना का खजाना जोड़ा
नकल करने में अक्ल से वंचित
सारा ध्यान तो रहा करने में चोरी
जमीं खिसक गई नभ छूना बलज़ोरी

><><

अरे सबसे मिट्टी की तुलना क्यूँ 
वो भी केवल कच्ची मिट्टी से
रिश्ता मिट्टी का क्यूँ होता है 
कुछ हुआ नहीं कि गलने लगता है
पंगा लोगे तो दंगा सहना ही होगा
विमर्श में विवाद उत्पन्न करने का शौक़ 
व्यंग बोलने वाले शौक़ीन 


Saturday 1 April 2017

मिश्रण



चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, मुस्कुराते लोग, लोग खड़े हैं


Hello...aap kya sahrsa se padhi hain kabhi?
पहचान ली क्या ?

Hum mala sinha hain
Section a me the girls high school me
Saharsa me
Tum kya wahi vibha ho
बिलकुल

Jo new colony me rehti thi
Are bah delho tumko khoj liyena
बेहद ख़ुशी हुई
पटना में कहाँ रहती हो ?

Tum apna numbr vejo
स्कूल में ही रमेश नाम कॉलेज खुला न बाद में ?

Borig canal road mai rahte hai
वाह्ह्ह्
मैं अभी बैंगलोर में हूँ बेटा बहू के पास 19 को वापस आयेंगे हमलोग रुकुनपुरा में रहते हैं
मुझे कैसे पहचानी तुम ?

Arey wah
Hum bhi bangalore me hain
Apni beti damaad ke pass aaye hsin
आज ?

Bellandur me
Nahi dedh mahine se hain
कितने बच्चे हैं

2
वाह

Ek beti aur ek beta
बेटा कहाँ है ?

Dono ki shaadi ho gayi hai
वाह्ह्ह्

Beta Delhi me hain Indian Navy me
30 दिसंबर 1972 में हम अलग हुए थे ...आज हम मिले .. फेसबुक से हम मिल गये .... शादी के बाद बेटियों का सरनेम नहीं बदलना चाहिए .... पता नहीं कब कहाँ पुरानी पहचान की जरूरत पड़ जाए ..... माला के लिए मुझे खोजना आसान इसलिए हुआ .... 

यूँ ही

क्षितिज पर
फैली सिंदूरी नदी
श्यामल साँझ में
दस्तक देती तन्हाई
लिखती प्रेमपाती
मनुहार अस्तित्व वेदना
तितली पीछा छोड़
आ भी जाओ कन्हाई

मुक्तक

नभ चेतना भू शून्यों को भर जाती
तंभावती जल मेघ की दरखास्ती
बंद रहे राहों के दरीचों का स्पंदन
प्रस्फुरण प्रेम की डोर की अतिपाती




दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...