"मैंने आपको पहचाना नहीं" केदार बाबु की पत्नी ने कहा।
"भैया ने आपको मेरे बारे में कुछ नहीं बतलाया ! क्यों भैया आपने ऐसा क्यों किया ? मैं इनकी छोटी बहन हूँ... आप मेरी भाभी हैं"।
"क्यों जी ! आपकी कोई कोई छोटी बहन भी है ! आपने कभी मुझे बतलाया नहीं "
ये सब सुनकर केदार बाबु स्तब्ध रह गये । उनकी दशा यूँ हुई मानो काटो तो खून नहीं...
"भाभी पहले मैं भैया को राखी बाँध लूँ । फिर बैठ कर आराम से बातें करेंगे"।
केदार बाबु के पास कोई चारा नहीं था ,उन्होंने अपने सिर पर रुमाल रखा और अपनी दाहिनी कलाई रीमा के सामने बढ़ा दी
राखी बाँधकर रीमा ने मिठाई का एक टुकड़ा केदार बाबु के मुँह में डाल दिया और कहा "भैया! मेरी उम्र भी आपको लग जाए"
इतना सुनकर शर्म और अपमान से घूंटते हुए केदार बाबु के आँखों से आँसू निकल आये
यह देखकर केदार बाबु की पत्नी ने कहा "अरे! आपदोनों भाई-बहन में इतना प्रेम है और मुझे पता तक नहीं "!
"भाभी हमदोनों तो एक ही विद्यालय में पढ़ाते हैं और मध्यांतर(टिफिन) में अक्सर एक साथ खाना खाते हैं "
"मगर ये तो कभी भी मध्यांतर भोजन डिब्बा तो ले ही नहीं जाते हैं "केदार बाबु की पत्नी ने कहा
"मैं जो लाती हूँ! फिर ये क्यों लाते..."
उधर केदार बाबु के आँखों से आँसू थम ही नहीं रहे थे और ये वे मन में सोच रहे थे कि "मैं लोगों से आज तक रीमा और अपने बारे में प्रेमालाप की झूठी बातें फैलता रहा वो अपने मन में बोल रहे थे कि "धिक्कार है मुझ पर !
रीमा सोच रही थी दो सहेलियों से मिला सुझाव
पहली सहेली "मुँह पर चप्पल मारो"
दूसरी सहेली "घर जाकर राखी बाँध आओ"
तब तक केदार बाबु की पत्नी चाय नाश्ता का इंतजाम कर लाते हुए बोली " रोते हुए ही रहोगे कि बहन को कुछ नेग-वेग भी दोगे!