Wednesday, 12 April 2017

कृष्ण सुदामा



अपने घनिष्ट मित्र नंदनी के पार्थिव शरीर, अग्नि को सौंप कर सतीश अपने भावों को यादों का खाद पानी दे सींच रहा
उसकी बिटिया की शादी अचानक से तैय हो गई जल्दबाज़ी में लाखों का इंतज़ाम करना था ... समय ने उसे आखिर सीखा ही दिया कि 
लेखन के राजा/रानी को लक्ष्मी का साथ नहीं मिलता ना ही सगे रिश्तेदार क़रीब आना चाहते हैं
दिन क़रीब आता जा रहा था और चिंता बढ़ती जा रही थी। .... एक दिन वो अपने कमरे में बैठा था कि नंदनी उससे मिलने आई उदासी में घिरे मित्र को देख। .... चिंता का कारण जान गई । ... बिना रक़म भरे हस्ताक्षर कर चेक थमाते हुए बोली कि बैंक में रखा रक़म मिट्टी ही है। जब दोस्त के काम ना आए जितना है, सब निकाल लेना और बिटिया की शादी धूम-धाम से कर , अपनी मुस्कुराहट वापस ले आना। 
बिटिया की शादी के कई महीनों के बाद। ... सतीष जब रक़म वापस करने लगा तो नंदनी बोली
क्या रक़म तुम्हारे हाथों में दी थी?
ना हाथ में दी थी ना हाथ में लूँगी!
जहाँ से लिए थे वहीं रख आओ। .... फिर किसी के काम आ जाएँगे"

5 comments:

  1. मेरी दोस्ती मेरा प्यार
    दीदी को शत शत नमन
    सादर

    ReplyDelete
  2. बेहद ख़ुशी हुई
    आपकी टिप्पणी के लिए आभारी हूँ 🙏

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

प्रघटना

“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...