Sunday 24 January 2021

बालिका दिवस

 राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है। इस दिन ही इन्दिरा गाँधी को भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला था।

 
पार्वती -अनसुइया माता का प्रतीक
दुर्गा शक्ति का प्रतीक
सरस्वती , ज्ञान का प्रतीक
लक्ष्मी , धन का प्रतीक
सीता , मंदोदरी, रुकमणी भार्या का प्रतीक
मीरा , राधा प्रेम का प्रतीक
गंगा  , पवित्रता का प्रतीक

 प्रतीक चिह्नों के अनुसरण का
सीख देते-देते बालिकाओं को
पत्थर बनना सिखला देते हैं
तुम कठपुतली हो
तुम्हारा एक दायरा है
लक्ष्मण रेखा खींच जतला देते हैं।

कन्या पक्ष वर पक्ष से अनुरोध करे
बेटी का पिता खड़ा कर जोड़े
बारात बराती का सेवा सत्कार
वर ढ़ाई दिन का बादशाह 
भ्रूण हत्या मिटाना नहीं चाहते
दान दहेज मिटाना नहीं मानते
बहू को बेटी बस
कह देने के लिए कह देते हैं।

मेरे बुजुर्ग मांसाहार नहीं खाते
तुम मांसाहार मत पकाओ
उसे आदेश सुना देते हैं।
बिना आँगन ड्योढ़ी का छत दिया
सहमे सिकुड़े रहने में मत किया
अधिकार की तुलना कर्त्तव्य
कई गुणा देते हैं।





Saturday 23 January 2021

अक्षम्य

"सुनो! तुम जबाब क्यों नहीं दे रही हो? मैं तुमसे कई बार पूछ चुका हूँ, क्या ऐसा हो सकता है कि किसी भारतीय को गोबर का पता नहीं हो ?"

"क्या जबाब दूँ मेरे घर में ही ऐसा हो सकेगा.. मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी..!"

"आप दोनों आपस में ही बात कर रहे हैं और मुझे मेरे ही कमरे में कैद कर तथा मुझे ही कुछ बता नहीं रहे हैं। क्या मुझे कोई कुछ बतायेंगे?"

"क्या तुम कुछ ऑर्डर पर मंगवाए थे?"अंततः पिता ने पुत्र से ही पूछा।

"हाँ! मैं अमेजन से 'काऊ डंग केक' मंगवाया था। 50% डिस्काउंट पर दो सौ में लगभग पाँच इंच के गोलाकार 12 पीस आया था। परन्तु उसका स्वाद बहुत अजीब था और मेरा पेट भी खराब हो गया। मैं अमेजन के फीड बैक में बताते हुए लिखा भी है कि अगली बार थोड़ा करारा भी बनाकर बेचे।"बेटे की आवाज सुन पिता को अपनी माँ की याद बहुत आने लगी।

"जब से तुम पिता बने हो मेरे पास अकेले आते हो.. इच्छा होती है मेरा पोता गाय का ताजा दूध पीता। तुम जिस तरह गाय को दुहते समय ही फौव्वारे से पी लेते थे। बछड़े से खेलता।"

अपनी माँ के कहने पर हर बार वह कहता," यह हाइजेनिक नहीं है।"

"आप कहाँ खो गए? मैं अपनी गलती स्वीकार तो करती हूँ। लेकिन उन एक सौ पैतालीस लोगों को क्या कहूँ जिन्होंने एमोजन को दिए इसके फीडबैक को पसन्द किया और इसे सही ठहराते हुए शाबासी दिया..।




Thursday 21 January 2021

खुश हैं

*Enjoy the* हमारा सौभाग्य हम साँस ले रहे हैं धन्यवाद वक्त का उस परम शक्ति का

इक्कीस वाँ दिन *21st day of* 
इक्कीसवें साल *21st year of* 
इक्कीसवीं सदी *21st century.* 

21-01-2021

जिसने स्वेद का स्वाद नहीं चखा उसके लिए सफलता सपना ही होगा। समय पर संयम रखे और -साधना का श्रमी हो तो सपना पूरा करने का शिद्दत स्वयं संग जुट जाता है।
लालबहादुर शास्त्री जी ने एक बार कहा था कि "मेहनत तो प्रार्थना करने के समान है।"
निरुद्योगी अपना भाग्य कैसे बदल सकता है, चाहे कितना भी समय व्यतीत होता जाए। 
छाँव का स्वाद तब पता चलता है जब स्वेद बहता चले।
अब उद्योग को सफल होने में और स्वेद की नदी बनने में कुछ समय तो जरूर लग जाता है उतने समय के लिए जो धैर्य चाहिए और परिणामस्वरूप पाए फल को भाग्य से पाया मान लिया जाए या श्रमी होने का फल ।
लेकिन हाँ साँसों की डोर, जन्म-मृत्यु, आकस्मिक दुर्घटना के लिए कोई तो एक शक्ति है जो भाग्य रचता है।
अविष्कार से गूंगे-बहरे-अंधे का भी भाग्य बदल दिया गया है । अलग-अलग कर्म पर अलग-अलग भाग्य को आजमाया जा सकता है। प्रयोग होते रहे हैं.. प्रयोग होते रहेंगे।
हमारा वादा झूठा कब निकलता है, जब हम असक्षम होते हैं।
जब हममें असक्षमता है यह हमें विदित है कि हम पूरा नहीं कर सकते तो क्यों वादा करना!
उस स्थिति में विनम्रतापूर्वक किया गया इन्कार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है।
हमारे इन्कार करने से समय का बचत होने पर आसानी से दूसरा मार्ग ढूँढ़ लिया जा सकता है। और आपस के सम्बन्ध को बिगड़ने से भी बचाया जा सकता है।


01.
माँ गौर करे
ग्वाले का ठिठकना–
पुष्ट सरसों 
02.
प्रेम की पाती
माझे कोर से बाँधे–
संक्रांति काल
03.
ज्योत्स्ना के घेरे
सजनी पत्र लिखे–
आम का कल्ला


Monday 18 January 2021

चिन्तन

  जो सदैव

नीम का दातुन

उपयोग करते हैं

उनपर विष का

असर नहीं होता है

–फिर क्यों स्वभाव विषैला हो गया

अक्सर सोचती गुम रहती हूँ..

गाँव के हमारे घरों में जेठ-जेठानी, ननद-देवर , जेठ तथा ननद के बच्चों यहाँ तक जो बुजुर्ग सेवक होते थे उनको भी आप कहने की प्रथा थी । बच्चे भी संस्कार में आप-तुम कहने का भेद पाते थे... ।

समय के साथ बदलाव होता गया...। गाँव से शहर , शहर से महानगर की ओर बढ़ते गए कदम..! बुजुर्ग को गाँव में धरोहर छोड़ आये तो संग संस्कार भी तो छूट गया। पलट कर जबाब दे देना ज्यादा आसान होता गया। 

नाकारात्मक विचार वालों के लिए सामान्य बातों पर भी क्रोध ही प्रतिक्रिया होती है। प्रत्येक घटना के साथ उनका रोष असन्तोष और बढ़ता ही चलता है। 

नकारात्मक विचार वालों के क्रोध की रेखा पत्थरों पर पड़ी गहरी एवं मोटी रेखा सी उत्कीर्ण होती जाती है

–अक्षमता है। अगर क्षमा करने में विफल हैं उन्हें जिनसे गलत व्यवहार मिला हो। ऐसे लोग उद्विग्न और चिड़चिड़े भी रहते हैं।

–अक्सर सबने देखा होगा रेत के घरौंदे और रेत पर लिखे नाम तथा पैरों के उकेरे निशान..., सकारात्मक विचार वाले अपने मन में निराशा व क्रोध को वैसे ही टिकने देते हैं। बदलते पल में अच्छे समय की एक लहर, क्षमा की एक पहल, पश्चाताप की एक झलक जब दोषी की तरफ से दिखने लगती है। वे शीघ्रताशीघ्र ही सबकुछ भूलाकर अपने सामान्य प्रसन्नता की स्थिति में लौट आने में प्रयत्नशील दिखलाई देते हैं। अतः मन का सन्तोष सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है।

–:–

01. बहू चुन्नी से

गुड़ की गन्ध मिले–

उत्तरायण

02. पक्षी बच्चों को 

नीड़ से पेड़ कोचे -

स्निग्ध शिरीष

03. स्मित के संग

मित्र हाथ दबाये–

या

एक दूजे को

मित्र केहुनियाएँ–

कुंद की वेणी


Tuesday 12 January 2021

केला की सब्जी

 


"कआ ईया आज बनी?"

"हाँ ! बाबू बनी.. ! काहे ना बनी... जरूरए बनी।"

ईया यानी मेरी दादी।

बाबू में उनका कोई पोता हो सकता था। पोतियों के लिए कोई गुंजाइश-सम्भावना दूर-दूर नहीं दिखलाई देता था क्यों कि वे पैदाइशी कर्मचारी समझी जाती थी। यह अलग बात थी कि उस ज़माने में भी मैं अपने को पोते से कम नहीं समझती थी। इसलिए दादी से मेरी बनी नहीं कभी। लेकिन दादी की कर्मठता को आज भी नमन/सलाम करते हुए अनुकरण करने की कोशिश करती हूँ।

 जब मैं ग्यारवीं की परीक्षा दी तो अनेक भैया-दीदी की शादी हो गयी थी। तब वो ज़माना था कि सास-माँ बहू-बेटी की प्रसव वेदना संग-संग चला करती थी। एक साल में जन्म लिए पाँच-सात बच्चों की टोली होती थी.. उसमें चचरे ममेरे फुफेरे भाई-बहनों के संग चाचा मामा भी होते थे।

 दादी के हाथ की बनी कोई सब्जी हो या मछली हो बेहद चटक होती थी यानी हाथ चाटते रह जाओ। 

मैं जबतक बड़ी हुई मेरी दादी काफी वृद्ध हो गयी थीं ठीक से उठना-बैठना-चलना नहीं हो सकता था । लेकिन पोता के लिए  साग सब्जी मछली बनानी हो तो सिलवट पर खुद मसाला पीसने से छौंकने पकाने का सारा काम वे स्वयं करती थीं। बस धोने काटने चलाने में जो थोड़ा बहुत मदद ले लेतीं।

आज उनकी और पापा(ससुर जी) की याद चटक तीखे खाने पर आ गयी। चर्चा चली।

"प्रसाद जी! अपने घर किसी दिन पुनः बुलाइये मछली खाने।"

"जी सर। जरूर।"

प्रसाद जी यानी श्री पारस प्रसाद जी मेरे ससुर और सर उनके बॉस।

मेरी शादी के कुछ महीनों के बाद ही एक दिन अचानक पापा के बॉस उनके कार्यालय में आ गए। पापा घर में हड़बड़ाए से आये और बोले कि "तहरा मछली बनावे आवेला कआ?"

"जी बना लूँगी।"मैँ बोली

"निमन बन जाई नु?" पापा पूछे।

अब बढ़िया बनेगा कि नहीं बनेगा यह कैसे सुनिश्चित कर पाते। परीक्षा में तो ऐसे ही अनुत्तीर्ण होने की पूरी सम्भावना रहती थी। जब तक परिणाम ना आ जाता हाथ पाँव फूले ही रहते। भैया और दादा के आँखों की किरकिरी थी बबूआ की तरह पलती विभा। माँ की मौत के बाद तीन साल चौका पूरी तरह सम्भालने के बाद शादी हुई थी मेरी। लेकिन शादी के बाद मांसाहार सास ही बनाती थीं या शायद कभी ननद। उस दिन वे दोनों घर में नहीं थीं । किसी रिश्तेदारी में गयी हुई थीं। 

पापा मछली ला दिए। मैं पका दी। पापा के बॉस खाना खाने में मछली सधा दिए। और हर कुछ दिनों के बाद पापा से कहते अपनी बहू को कहिए मछली बनाये। हमें भोजन पर बुलाइये भई... ।

रविवार को बेटा ह्यूस्टन गया तो आज दिन के भोजन में चटक सब्जी बनी। माया का कहना कि बिहारी खाने में मुझे सरसों में बनी सब्जी-मछली बेहद पसन्द आती है। पहली बार जब खाई तब से ही फैन हूँ उसकी। सदैव मुझमें युवावस्था बने रहने का कारण कुछ यह यादें हैं। 

आज जो बनी सब्जी

6 कच्चा केला

छील कर टुकड़े कर लेते हैं।

बेसन में नमक हल्दी मिलाकर घोल तैयार कर उसमें केला को मिलाकर पकौड़े की तरह तल लेते हैं।

तीन चम्मच सरसों

आधा चम्मच जीरा

आधा चम्मच गोल काली मिर्च

तीखी हरी मिर्च 9

लहसुन एक बड़ा

एक टमाटर

एक संग पीसकर और पंच फोरन के छौंक में भूनने के बाद एक चम्मच किचनकिंग मसाला मिलाकर ग्रेवी के अनुसार तला केले की पकौड़ा मिला लिए और केले को अच्छी तरह गला लिए क्योंकि सब्जी ठंढी होने पर कोई-कोई केला थोड़ा कड़ा हो जाता है.


Thursday 7 January 2021

आज की चर्चा

खुश होना दुःखी होना मन की स्थिति है..  । मानसिक सुख से बड़ा कोई सुख हो ही नहीं सकता है। मेरे एक रिश्तेदार के पास इतना रुपया था कि वो तकिया तोशक में रखते थे और उनकी पत्नी पहरा देती रहती थीं.. ना दिन को चैन ना रात को नींद।

राजेन्द्र पुरोहित भाई ने बताया कि मारवाड़ी में जैन स्थानक को उपासरा (उपाश्रय) कहते हैं। वहाँ सभी भिक्षुक केशविहीन होते हैं। तो, कोई वस्तु जब किसी स्थान विशेष पर मिलने की संभावना ही न हो, तो कहते हैं "अरे यार, उस पढ़ाकू के पास क्रिकेट का बैट कहाँ ढूंढ रहे हो, उपासरे में कंघी का क्या काम?"

और हम चाहते हैं कि गंजे को कंघी बेच लें।

और अपने लिए सुख प्राप्ति का साधन का ढ़ेर लगा लें।

साथ में दुनिया बदल डालने की मृगतृष्णा में जीते हैं।

मन बैचैन है तो सुख की अनुभूति हो ही नहीं सकती।

जब तक जीवन सर्वकल्याण नहीं करने लगेगा तब तक स्थायी सुख की प्राप्ति ही नहीं हो सकती।

जब स्थायी सुख की प्राप्ति होने लगती है तो वो असली सुख मानसिक होता है । मन का सुख तो बैचेन रखे हुए रहता है।

हर किसी में समस्या खोजना मनोविकृति है। इंसान होने का ही अर्थ है गुण-अवगुणों का मिश्रण समाहित होना। मनुष्य और मनुष्यता की हमने अपने-अपने धर्मों का आधार बना कर हत्या कर दी है। पाठ पढ़ रहे हैं कि हमारा धर्म ही दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म है, जबकि हम अपने-अपने धर्म को जानना ही नहीं चाहते हैं। हमारे कान मुल्लाओं और पंडितों की कही बातों से भर रखा है और उसे ही सच मान रहे हैं।

 सब मुसलमान हिन्दू धर्म को गहराई से नहीं जानते और सब हिन्दू भी इस्लाम को नहीं जानते। इसी तरह किसी ईसाई या बौद्ध ने हिन्दू धर्म का कभी अध्ययन नहीं किया और वह भी उसी तरह व्यवहार करता है जिस तरह की नफरत करने/फैलाने वाले लोग करते हैं। 

जैसे कुछ ईसाई यह समझते होंगे कि ईसाई बने बगैर स्वर्ग नहीं मिल सकता। उसीतरह कुछ मुसलमान भी सोचते होंगे कि सभी गैर मुस्लिम-गफलत और भ्रम की जिन्दगी जी रहे हैं अर्थात वे सभी गुमराह हैं। आम हिन्दू की सोच भी यही है। सभी दूसरे के धर्म को सतही तौर पर जानकर ही यह तय कर लेते हैं कि यह धर्म ऐसा है। अधिकतर लोग जिस तरह धर्म की बुराइयों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं उसी तरह अपने आस-पास के लोगों में भी केवल समस्याओं को ढूँढते रहते हैं।

हम वो मक्खी हैं जो या तो मल पर बैठती है या शरीर के घाव पर बैठकर गहरा करती है और उसे दूसरों तक फैलाकर हानिकारक बनाती है।

अतः दूसरों में हम केवल समस्या खोजते हैं तो हमसे ज्यादा समस्या फैलाने वाला दूसरा कोई नहीं हो सकता है।

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सघन वन–

उल्लू और बादुर

ज्योत्स्ना में भिड़े।

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जसाला वर्ण पिरामिड

गी

अंगी

ना रोना

शीत संगी

जोड़े रहना

एक से सौ होना

मूंगफली दोपल्ली

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ली

गरु

ना तरु

दीन मेवा

रोगों का शत्रु

फली मूंगफली

भू को जकड़े वल्ली{20.}

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Wednesday 6 January 2021

इंसाफ

"अपना बदला पूरा करो, तोड़ दो इसका गर्दन। कोई साबित नहीं कर पायेगा कि हत्या के इरादे से तुमने इसका गर्दन तोड़ा है। तुम मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट धारी विशेषज्ञ बनी ही इसलिए थी।" मन ने सचेत किया।

"तुम इसकी बातों को नजरअंदाज कर दो। यह मत भूलो कि बदला में किये हत्या से तुम्हें सुकून नहीं मिल जाएगा। तुम्हारे साथ जो हुआ वो गलत था तो यह गुनाह हो जाएगा।"आत्मा मन की बातों का पुरजोर विरोध कर रही थी।
"आत्मा की आवाज सही है। इसकी हत्या होने से इसके बच्चे अनाथ हो जाएंगे, जिनसे मित्रता कर इसके विरुद्ध सफल जासूसी हुआ।"समझाती बुद्धि आत्मा की पक्षधर थी।
"इसके बच्चे आज भी बिन बाप के पल रहे हैं। खुद डॉक्टर बना पत्नी डॉक्टर है। खूबसूरत है । घर के कामों में दक्ष है। यह घर के बाहर की औरतों के संग..।" मन बदला ले लेने के ही पक्ष में था।
"ना तो तुम जज हो और ना भगवान/ख़ुदा।"आत्मा-बुद्धि का पलड़ा भारी था।
तब कक्षा प्रथम की विद्यार्थी थी। एक दिन तितलियों का पीछा करती मनीषा लड़कों के शौचालय की तरफ बढ़ गयी थी और वहीं उसके साथ दुर्घटना घट गयी थी। जिसका जिक्र वो किसी से नहीं कर पायी। मगर वह सामान्य बच्ची नहीं रह गयी। आक्रोशित मनीषा आज खुश हो रही थी, जब वर्षों बाद उसे बदला लेने का मौका मिल गया। दिमाग यादों में उलझा हुआ था। मनीषा अपने दुश्मन को जिन्दा छोड़ने का निर्णय ले चुकी थी।
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01. स्टूल का धब्बा

पोता सफाई करे–

*लुवाई आफू

02. कपाट बंद–

युगल ठोके कील

वक्ररेखीय

*लुवाई आफू=कटने के लिए तैयार अफीम

Saturday 2 January 2021

हाइकु व वर्ण पिरामिड

 नूतन वर्ष–

इग्लू में नित्या खेले

आँखमिचौली।

नवल वर्ष–

पहाड़ी भूत खेले

आँखमिचौली।

सूर्य को ढूँढूँ

पहाड़ी की राहों में–

नवल भोर।

हाइकु कार्यशाला 12 दिसम्बर 2020

28 दिसम्बर 2020 के कार्यशाला की रिकॉर्डिंग 

शीर्षक = प्रदत्त चित्र पर सृजन

 विधा - ''वर्ण पिरामिड''

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रे!

घूरे

घस्मर

धुँध कुआँ

स्मर समर

कथरी में डर

रक्तप चीं-चीं स्वर।{01.}

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हाँ!

कौड़ा

लौ ढाना

लौ हो जाना

लौ से लौ होना

लौ छोड़ सोचना

तख़्ती जली कि सोर?{02.}

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सधन्यवाद


Friday 1 January 2021

'पंच परमेश्वर'

चित्राधारित लेखन

"यह क्या है बबलू.. यहाँ पर मंदिर बन रहा है..?" विक्की ने पूछा।
"हाँ! वक्त का न्याय है।" बबलू ने कहा।

"अगर आप घर में से अपना हिस्सा छोड़ दें तो हम खेत में से अपना हिस्सा छोड़ देंगे।" बबलू ने विक्की से कहा था।

     लगभग अस्सी-इक्यासी साल पुराना मिट्टी का घर मिट्टी में मिल रहा था। दो भाइयों के सम्मिलात घर के आँगन में दीवाल उठे भी लगभग सत्तर-बहत्तर साल हो गए होंगे। तभी ज़मीन-ज़ायदाद भी बँटा होगा। ना जाने उस ज़माने में किस हिसाब से बँटवारा हुआ था कि बड़े भाई के हिस्से में दो बड़े-बड़े खेतों के बीचोबीच दस फीट की डगर सी भूमि छोटे भाई के हिस्से में आयी थी। जो अब चौथी पीढ़ी के युवाओं को चिढ़ाती सी लगने लगी थी। बबलू छोटे भाई का परपोता और विक्की बड़े भाई का परपोता थे..। बबलू गाँव में ही रहता था और विक्की महानगर में नौकरी करता था।

'ठीक है तुम्हें जैसा उचित लगे।' विक्की ने कहा था।

घर से मिली भूमि के बराबर खेत के पिछले हिस्से की भूमि बबलू ने विक्की को दिया। आगे से भूमि नहीं मिलने के कारण एक कसक थी विक्की के दिल में , जो आज दूर हो गयी।

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...