जो सदैव
नीम का दातुन
उपयोग करते हैं
उनपर विष का
असर नहीं होता है
–फिर क्यों स्वभाव विषैला हो गया
अक्सर सोचती गुम रहती हूँ..
गाँव के हमारे घरों में जेठ-जेठानी, ननद-देवर , जेठ तथा ननद के बच्चों यहाँ तक जो बुजुर्ग सेवक होते थे उनको भी आप कहने की प्रथा थी । बच्चे भी संस्कार में आप-तुम कहने का भेद पाते थे... ।
समय के साथ बदलाव होता गया...। गाँव से शहर , शहर से महानगर की ओर बढ़ते गए कदम..! बुजुर्ग को गाँव में धरोहर छोड़ आये तो संग संस्कार भी तो छूट गया। पलट कर जबाब दे देना ज्यादा आसान होता गया।
नाकारात्मक विचार वालों के लिए सामान्य बातों पर भी क्रोध ही प्रतिक्रिया होती है। प्रत्येक घटना के साथ उनका रोष असन्तोष और बढ़ता ही चलता है।
नकारात्मक विचार वालों के क्रोध की रेखा पत्थरों पर पड़ी गहरी एवं मोटी रेखा सी उत्कीर्ण होती जाती है
–अक्षमता है। अगर क्षमा करने में विफल हैं उन्हें जिनसे गलत व्यवहार मिला हो। ऐसे लोग उद्विग्न और चिड़चिड़े भी रहते हैं।
–अक्सर सबने देखा होगा रेत के घरौंदे और रेत पर लिखे नाम तथा पैरों के उकेरे निशान..., सकारात्मक विचार वाले अपने मन में निराशा व क्रोध को वैसे ही टिकने देते हैं। बदलते पल में अच्छे समय की एक लहर, क्षमा की एक पहल, पश्चाताप की एक झलक जब दोषी की तरफ से दिखने लगती है। वे शीघ्रताशीघ्र ही सबकुछ भूलाकर अपने सामान्य प्रसन्नता की स्थिति में लौट आने में प्रयत्नशील दिखलाई देते हैं। अतः मन का सन्तोष सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है।
–:–
01. बहू चुन्नी से
गुड़ की गन्ध मिले–
उत्तरायण
02. पक्षी बच्चों को
नीड़ से पेड़ कोचे -
स्निग्ध शिरीष
03. स्मित के संग
मित्र हाथ दबाये–
या
एक दूजे को
मित्र केहुनियाएँ–
कुंद की वेणी
सटीक। पता नहीं शिव क्यों नहीं हो लिया जाता ?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और उपयोगी पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteसार्थक और गंभीर चिंतन!!!
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-1-21) को "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि"(चर्चा अंक-3951) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका
Deleteसस्नेहाशीष तथा असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका छोटी बहना
ReplyDeleteएक सुंदर रचना ,संस्कारों को सहेजने का संदेश देती हुई ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर सोचनीय
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावशाली चिंतन - - नमन सह।
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