"कआ ईया आज बनी?"
"हाँ ! बाबू बनी.. ! काहे ना बनी... जरूरए बनी।"
ईया यानी मेरी दादी।
बाबू में उनका कोई पोता हो सकता था। पोतियों के लिए कोई गुंजाइश-सम्भावना दूर-दूर नहीं दिखलाई देता था क्यों कि वे पैदाइशी कर्मचारी समझी जाती थी। यह अलग बात थी कि उस ज़माने में भी मैं अपने को पोते से कम नहीं समझती थी। इसलिए दादी से मेरी बनी नहीं कभी। लेकिन दादी की कर्मठता को आज भी नमन/सलाम करते हुए अनुकरण करने की कोशिश करती हूँ।
जब मैं ग्यारवीं की परीक्षा दी तो अनेक भैया-दीदी की शादी हो गयी थी। तब वो ज़माना था कि सास-माँ बहू-बेटी की प्रसव वेदना संग-संग चला करती थी। एक साल में जन्म लिए पाँच-सात बच्चों की टोली होती थी.. उसमें चचरे ममेरे फुफेरे भाई-बहनों के संग चाचा मामा भी होते थे।
दादी के हाथ की बनी कोई सब्जी हो या मछली हो बेहद चटक होती थी यानी हाथ चाटते रह जाओ।
मैं जबतक बड़ी हुई मेरी दादी काफी वृद्ध हो गयी थीं ठीक से उठना-बैठना-चलना नहीं हो सकता था । लेकिन पोता के लिए साग सब्जी मछली बनानी हो तो सिलवट पर खुद मसाला पीसने से छौंकने पकाने का सारा काम वे स्वयं करती थीं। बस धोने काटने चलाने में जो थोड़ा बहुत मदद ले लेतीं।
आज उनकी और पापा(ससुर जी) की याद चटक तीखे खाने पर आ गयी। चर्चा चली।
"प्रसाद जी! अपने घर किसी दिन पुनः बुलाइये मछली खाने।"
"जी सर। जरूर।"
प्रसाद जी यानी श्री पारस प्रसाद जी मेरे ससुर और सर उनके बॉस।
मेरी शादी के कुछ महीनों के बाद ही एक दिन अचानक पापा के बॉस उनके कार्यालय में आ गए। पापा घर में हड़बड़ाए से आये और बोले कि "तहरा मछली बनावे आवेला कआ?"
"जी बना लूँगी।"मैँ बोली
"निमन बन जाई नु?" पापा पूछे।
अब बढ़िया बनेगा कि नहीं बनेगा यह कैसे सुनिश्चित कर पाते। परीक्षा में तो ऐसे ही अनुत्तीर्ण होने की पूरी सम्भावना रहती थी। जब तक परिणाम ना आ जाता हाथ पाँव फूले ही रहते। भैया और दादा के आँखों की किरकिरी थी बबूआ की तरह पलती विभा। माँ की मौत के बाद तीन साल चौका पूरी तरह सम्भालने के बाद शादी हुई थी मेरी। लेकिन शादी के बाद मांसाहार सास ही बनाती थीं या शायद कभी ननद। उस दिन वे दोनों घर में नहीं थीं । किसी रिश्तेदारी में गयी हुई थीं।
पापा मछली ला दिए। मैं पका दी। पापा के बॉस खाना खाने में मछली सधा दिए। और हर कुछ दिनों के बाद पापा से कहते अपनी बहू को कहिए मछली बनाये। हमें भोजन पर बुलाइये भई... ।
रविवार को बेटा ह्यूस्टन गया तो आज दिन के भोजन में चटक सब्जी बनी। माया का कहना कि बिहारी खाने में मुझे सरसों में बनी सब्जी-मछली बेहद पसन्द आती है। पहली बार जब खाई तब से ही फैन हूँ उसकी। सदैव मुझमें युवावस्था बने रहने का कारण कुछ यह यादें हैं।
आज जो बनी सब्जी
6 कच्चा केला
छील कर टुकड़े कर लेते हैं।
बेसन में नमक हल्दी मिलाकर घोल तैयार कर उसमें केला को मिलाकर पकौड़े की तरह तल लेते हैं।
तीन चम्मच सरसों
आधा चम्मच जीरा
आधा चम्मच गोल काली मिर्च
तीखी हरी मिर्च 9
लहसुन एक बड़ा
एक टमाटर
एक संग पीसकर और पंच फोरन के छौंक में भूनने के बाद एक चम्मच किचनकिंग मसाला मिलाकर ग्रेवी के अनुसार तला केले की पकौड़ा मिला लिए और केले को अच्छी तरह गला लिए क्योंकि सब्जी ठंढी होने पर कोई-कोई केला थोड़ा कड़ा हो जाता है.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-01-2021) को "उत्तरायणी-लोहड़ी, देती है सन्देश" (चर्चा अंक-3945) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हर्षोंल्लास के पर्व लोहड़ी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक आभार के संग वन्दन
Deleteस्मृतियाँ सदैव सजीव हो उठती हैं न दी।
ReplyDeleteसुंदर संस्मरण मछली वाली केले की सब्जी खूब झनहर बनती है:)
हाँ छुटकी
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर संस्मरण दी👌
ReplyDeleteसुंदर संस्मरण।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संस्मरण - -
ReplyDeleteसुन्दर संस्मरण के साथ एक बढ़िया एवं स्वादिष्ट रेसिपी शेयर करने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteरोचक संस्मरण केले की एक रेसिपी के साथ
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बधाई