नूतन वर्ष–
इग्लू में नित्या खेले
आँखमिचौली।
नवल वर्ष–
पहाड़ी भूत खेले
आँखमिचौली।
सूर्य को ढूँढूँ
पहाड़ी की राहों में–
नवल भोर।
हाइकु कार्यशाला 12 दिसम्बर 2020
28 दिसम्बर 2020 के कार्यशाला की रिकॉर्डिंग
शीर्षक = प्रदत्त चित्र पर सृजन
विधा - ''वर्ण पिरामिड''
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रे!
घूरे
घस्मर
धुँध कुआँ
स्मर समर
कथरी में डर
रक्तप चीं-चीं स्वर।{01.}
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हाँ!
कौड़ा
लौ ढाना
लौ हो जाना
लौ से लौ होना
लौ छोड़ सोचना
तख़्ती जली कि सोर?{02.}
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सधन्यवाद
वाह कितनी सुंदर तस्वीरें हैं।
ReplyDeleteहायकू बहुत अच्छे है।
आपके जीवन की हर भोर खुशियों का पैगाम लेकर आये मेरी कामना है।
प्रणाम दी।
सादर।
नव वर्ष मंगलमय हो। सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (03-01-2021) को "हो सबका कल्याण" (चर्चा अंक-3935) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नववर्ष-2021 की मंगल कामनाओं के साथ-
हार्दिक शुभकामनाएँ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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वन्दन संग हार्दिक आभार आपका आदरणीय
Deleteअसीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार पुत्तर जी
ReplyDeleteवाह , बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDelete*इस साल न कोरोना, न कोरोना का रोना,*
*अब तो हमें नई उम्मीदों के नए बीज बोना।*
*उग आएं दरख़्त इंसानियत से फूले-फले,*
*महक उठे हर दर, हर घर का कोना-कोना।।*
*नव-वर्ष मंगलकारी हो, परम उपकारी हो।*
शुभेच्छाओं सहित।
लाजवाब और सशक्त लेखन दी! तस्वीरों के साथ भावाभिव्यक्ति की शोभा द्विगुणित हो गई।
ReplyDeleteअति सुन्दर । हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteवाह! अद्भुत सृजन सुंदर मोहक तस्वीरें।
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो आपको एवं आपके सकल परिवार जनों को।
सस्नेह।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हायकु।
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