चित्राधारित लेखन
"यह क्या है बबलू.. यहाँ पर मंदिर बन रहा है..?" विक्की ने पूछा।
"हाँ! वक्त का न्याय है।" बबलू ने कहा।
"अगर आप घर में से अपना हिस्सा छोड़ दें तो हम खेत में से अपना हिस्सा छोड़ देंगे।" बबलू ने विक्की से कहा था।
लगभग अस्सी-इक्यासी साल पुराना मिट्टी का घर मिट्टी में मिल रहा था। दो भाइयों के सम्मिलात घर के आँगन में दीवाल उठे भी लगभग सत्तर-बहत्तर साल हो गए होंगे। तभी ज़मीन-ज़ायदाद भी बँटा होगा। ना जाने उस ज़माने में किस हिसाब से बँटवारा हुआ था कि बड़े भाई के हिस्से में दो बड़े-बड़े खेतों के बीचोबीच दस फीट की डगर सी भूमि छोटे भाई के हिस्से में आयी थी। जो अब चौथी पीढ़ी के युवाओं को चिढ़ाती सी लगने लगी थी। बबलू छोटे भाई का परपोता और विक्की बड़े भाई का परपोता थे..। बबलू गाँव में ही रहता था और विक्की महानगर में नौकरी करता था।
'ठीक है तुम्हें जैसा उचित लगे।' विक्की ने कहा था।
घर से मिली भूमि के बराबर खेत के पिछले हिस्से की भूमि बबलू ने विक्की को दिया। आगे से भूमि नहीं मिलने के कारण एक कसक थी विक्की के दिल में , जो आज दूर हो गयी।
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअसीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबहुत खूब विभा जी...अतिसुंदर लघुकथा ...नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबेहतरीन लघुकथा दी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सारगर्भित।
ReplyDeleteनव वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएँ।
नववर्ष मंगलमय हो सपरिवार सभी के लिये। सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन - - नूतन वर्ष की असंख्य शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक रचना
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