दायित्व में पस्त अधिकारों की होती बेक़रारी।
हाय तौबा मचा लेते हैं खड़ा होकर किनारी।
विगत क्या आगत क्या रंगों की उलझन बड़ी,
जान-ए ली चिलम जिनका पर चढ़े अंगारी।
शून्य कोई होना नहीं चाहता
शून्य कोई पाना नहीं चाहता।
जिन्दगी कल थी उन्नीस–बीस,
कल हो जाएगी इक्कीस-बाइस।
लगे हुए हैं सब कोई बेचने में
एस्किमो को आइस।
गाँठ में जोड़ कर रखें पाई-पाई
नव वर्ष की हार्दिक बधाई।
सारे फ़साद की सोर उम्मीद है।
नमी में आग का कोर उम्मीद है।
सोणी के घड़े सा हैं सहारे सारे,
ग़म की शाम में भोर उम्मीद है।
यथार्थ रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनाएं दी आपको भी।
सादर।
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 01-01-2021) को "नए साल की शुभकामनाएँ!" (चर्चा अंक- 3933) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
हार्दिक आभार आपका
Deleteनव वर्ष मंगलमय हो सभी को सपरिवार। सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 31 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
सारे फ़साद की सोर उम्मीद है।
ReplyDeleteनमी में आग का कोर उम्मीद है।
सोणी के घड़े सा हैं सहारे सारे,
ग़म की शाम में भोर उम्मीद है।
सुंदर संदेश देती सार्थक कृति..नव वर्ष की असीम शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह..।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति..!
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीया।
बहुत सुन्दर रचना | नव वर्ष की बहुत बहुत हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteवाह,
ReplyDeleteसुंदर रचना.. बहुत खूब 🌹🙏🌹
नववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं ⭐🌹🙏🌹⭐
बहुत सुन्दर सृजन - - नूतन वर्ष की असंख्य शुभकामनाएं।
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