Wednesday, 29 May 2024

.. —वर्जनाएँ

भाँति-भाँति के सूरमा : भाँति-भाँति का खुरमा…
 बड़े और मझले दो भाईयों की शादी छः महीने के अंतराल पर हुई थी। बड़ी बहू को सजने-सँवरने का कोई शौक़ नहीं था। विद्यालय-महाविद्यालय में लिपस्टिक लगाकर जाने का चलन नहीं मिला था और घर में उसके पिता को नापसंद था बेटी-बहू का लिपस्टिक लगाना। लेकिन मझली बहू का साथ मिलने के कारण सजना शुरू की थी। बड़ी बहू छ महीने की पुरानी दुल्हन और मझली बहू दस-पंद्रह दिनों की दुल्हन। एक शाम पूरे परिवार को कहीं जाना था जिसमें दोनों बहुओं को घर पर ही रहना था। शाम के नाश्ते के लिए खुरमा बनाकर रखने का आदेश मिला। ०१. खुरमा बनाने की सामग्री :- 2 कप मैदा 2 चम्मच घी 250 ग्राम चीनी 1/2 नींबू का रस 1/2 चम्मच इलायची पाउडर 200 ग्राम तलने के लिए घी
पकाने का निर्देश :- 1 सबसे पहले एक बड़े बाउल में मैदा डालें और इसमें घी डालकर और अच्छी तरह हथेलियों के बीच में आटे को अच्छी तरह रगड़-रगड़ कर मिलाए.. इससे खुरमा खास्ता बनेगा… 2 फिर इसमें थोड़ा-थोड़ा करके पानी डाल कर मैदा को सान लें गुँथा मैदा न तो ज्यादा सख्त होना चाहिए और नहीं ज्यादा मुलायम… मैदा गूंदने के बाद इसे ढककर 10-15 मिनट के रख दें। 15 मिनट के बाद मैदा को फिर से अच्छे से गूंद लें और दो लोइयों में बांट लें. 3 फिर एक लोई को बेलन से मोटी रोटी के आकार में बेल लीजिए… इस रोटी को चाकू के सहारे मनचाहे शेप के टुकड़े काट लीजिए. (सबसे पहले रोटी पर सीधे-सीधे चाकू चला लें फिर इस पर तिरछा चाकू चला लें… ऐसा करने से आटे के डायमंड शेप के टुकड़े काटे जा सकते हैं.) इसी तरह दूसरी लोई से छोटे-छोटे टुकड़े काट लें… 4 कड़ाही में घी डालकर मध्यम आँच में गरम होने के लिए रख दें… घी गरम हो जाये तो थोड़ा-थोड़ा कर मैदे के टुकड़े डालकर चलाते हुए तलें. ध्यान रखें इस दौरान आँच धीमी रखें और हल्के आँच पर खुरमा को लाल-लाल तल लें। 5 अब पैन में चीनी और 1/4 कप पानी डालकर मध्यम आँच पर चाशनी बनाने के लिए रख दें। चाशनी को बीच-बीच में चलाते रहें. इसमें इलायची पाउडर और नींबू डालें। 8-10मिनट बाद चाशनी की एक बूँदएक चम्मच में लेकर उंगली अंगूठे के बीच रखकर देखें. अगर यह इसमें मोटी तार बन रही है तो समझिए चाशनी तैयार है…। 6 अब चाशनी में खुरमा डाल कर अच्छे से मिलाते जाइए। 1-2 मिनट बाद आँच बंद कर दें और खुरमा और चाशनी को चलाते रहें…। पैन को चूल्हे से हटा लें और इसे अच्छी तरह से चलाते हुए ठंडा कर लें। आप पाएंगे कि एक समय के बाद चाशनी ठंडी हो जाएगी खुरमा पर चीनी की कोटिंग चढ़ जायेगा। खुरमा तैयार हैं, ठंडा होने के बाद खाएं और खिलाएं…
 दोनों बहुओं को बेहद ख़ुशी हुई यह तो बेहद आसान नाश्ता है दोनों मिलकर बना लेंगी। सभी के जाने के बाद आज़ादी से ड्योढ़ी के बाहर निकलने का मौका मिला। (तभी बेहद पर्दे का काल था। खिड़की के पर्दे में काँटी ठोकी जाती थी कि पलंग पर बैठी कमरे में चलती बहू को बाहर के लोग देख ना लें।) सहायक की सहायता से बाहर मेज-कुर्सी लगवाकर, फूल-फल सजवाया गया। लोहे वाले झूला को समीप लाया गया। शीतल पेय (उपलब्ध नहीं था सुरा) के बोतल-गिलास सजे। दोनों बहुएँ जितना सज सकती थी उससे थोड़ा अधिक ही सज लीं। वैसे भी दोनों को हर पल सजे ही रहने का हुक्म था। दिनभर में तीन-चार बार साड़ी बदलना और परत-दर-परत पाउडर-क्रीम-लिपस्टिक चढ़ाते रहना हो रहा था। थोड़ी देर मस्ती करने के बाद ध्यान आया दोनों बहुओं को कि उन्हें खुरमा बनाना है। 
बिहार की यह मिठाई नहीं खाई तो कुछ नहीं खाया यूँ तो बिहार में क्षेत्र अनुसार अनेकों मिठाई बनते रहे हैं काफी वर्षों से। जैसे बालूशाही , लाई , अनरसा , खाजा , तिलकुट आदि। जो अपने स्वाद से सबको लुभाते रहे हैं और लोग भी उन्हें बड़े चाव से खाते रहे हैं। मगर उन में से एक मिठाई धीरे धीरे ही सही मगर अपनी पहचान अब देश पटल पर बना लिया और लोग खाए तो काफी पसंद भी करने लगे इस मिठाई को। जी हाँ! हम बात कर रहे हैं उस मिठाई की इसको बिहार में ही कई नामों से पुकारा जाता है। कोई इसे छेना का टिकिया ( बिहार में पनीर को छेना भी कहा जाता है ) तो कोई बेलग्रामी और ०२-खुरमा भी कहता है। मूलतः भोजपुर के उदवंतनगर को इस मिठाई का जन्म स्थल माना जाता है। वहीं से यह मिठाई बनना शुरू हुआ था और फिर देखते ही देखते , जगह , जिला और फिर अब प्रदेश पार कर गया। इसे बनाने में सिर्फ पनीर ही इस्तेमाल किया जाता है जिसके वजह से लोग इसे उपवास के दौरान फलाहार के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। पनीर की टिकिया को शक्कर की चाशनी में एक बराबर मध्यम आंच पर खौलाया जाता है और पनीर टिकिया इस चाशनी में धीरे धीरे ऊपर से लेकर अंदर तक सिंझ कर एक रंग ( हल्का लाल , भूरा ) का हो जाता है। इतना ही नही अंदर के भाग में जाला जैसा बन जाता है ( जिसे आप जब तोड़ कर खाते हैं तब देख सकते हैं )। तब इसे आंच से नीचे उतार कर रख दिया जाता है ठंडा होने के लिए और जब ठंडा हो जाता है तो उसे निकाल कर बाहर रख दिया जाता है। इस मिठाई को आप बिना फ्रिज में रखे हुए भी कई दिनों तक इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि ये जल्दी खराब नही होती है और सूखा जैसा होता है जिसकी वजह से ज्यादा दिनों तक चलता है। अपनी अनोखी स्वाद और शुद्धता ( मिलावट रहित रहने की वजह से ) की वजह से अब इस मिठाई की मांग सालों रहने लगी है। इतना ही नही , जो बिहार से जुड़े लोगों के मित्र गण बाहर रहते हैं वे अपने बिहारी दोस्तों से कहना नही बुलते , बिहार से वापस आना तो मिठाई जरूर लाना भाई क्योंकि उस स्वाद , सोनाहपन को जीभ भूल नही पाती है। बड़ी बहू को खुरमा तो बनाना आता था लेकिन जो अलग तरीक़े का खुरमा उसके ससुराल में बनाया जाता था उसे बनाते कभी देखी नहीं थी! मझली बहू को किसी प्रकार का खुरमा बनाना नहीं आता था। मैदा में मोयन और खाने वाला सोडा और चीनी के घोल से सानकर, मोटा गोल बड़ी रोटी बेलकर खुरमे के आकार में काटकर घी में तल लिया जाता है। सुनी तो कई बार थी। अति आत्मविश्वास था कि बना लेगी और बड़े भैया का कहा शब्द (लड़की वाला एको गुण नईखे, दूसरा के घरे जाये के बा, बसीहें कईसे!) आँचल के खूँटे में बाँधकर आयी थी कि कभी असफल नहीं होना है ताकि बसने-ना-बसने पर प्रश्न उठे! लगभग पंद्रह लोगों के ०३-खुरमा नाश्ते कर लेने के अनुपात में मैदा लिया गया, मोयन में घी डालकर मेहँदी लगे युवा हाथों से मसल-मसल कर खुरमा कुरकुरा बनने योग्य तैयार कर खाने वाला सोडा मिला लिया गया। चीनी को पानी में घोलकर मैदा सानकर तैयार किया गया! पहने गहने और परतदार मेकअप से ज़्यादा चमकीली उनदोनों बहुओं की मुस्कान थी। तभी के अपने क्रियाओं पर अपनी सफलता और शाबासी पाने का अति विश्वास से उपजी। मध्यम आँच पर कड़ाही में घी गरम हो गया। और यह क्या घी में डाले मैदा के टुकड़े जिन्हें कुरकुरे खुरमा के रूप में उपर तैरने से वे तो घी में घुलकर हलुआ बनने के लिए मचल रहे थे! मानों ज़िद्दी बच्चा! घी बदला गया दूसरा खेप डाला गया। फिर से खुरमा घुल गया। दोनों बहुओं के पसीने छूट गए! हाथ-पाँव फूल गए। सहायक को सहायता के लिए पुकारीं। सहायक खुरमा बनाया क्योंकि हमेशा तो वही बनाता था! बहुओं को तब नहीं पता चल पाया था कि उनसे ऐसी कारस्तानी क्यों हुई? और उस दिन किसी रिश्तेदार को पता नहीं चल पाया कि बहुओं द्वारा खुरमा नहीं बनाया गया! मीठा पसंद करने वाले मीठा ही बोलें या व्यंग्य मीठा ही लगे स्वाभाविक तो नहीं! अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप : मैदा में अत्यधिक खाने वाले सोडा का करिश्मा रहा हो शायद…!

Monday, 27 May 2024

पड़किया रासाधिक्य


 “आपके संग आपकी बेटी रह रही है कि आपकी बहू?” शारदा देवी का निरीक्षण कर रही महिला चिकित्सक ने पूछा।

“क्यों? आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?” शारदा देवी का गर्भाशय निकाला गया था जिसके कारण वो अस्पताल में भर्ती थीं।

“आप, अस्पताल से मिलने वाला भोजन नहीं ले रही हैं। आपके कपड़े नर्स नहीं धो रही है। आपका कमरा हमेशा व्यवस्थित रह रहा है।”

“मेरा बड़ा बेटा मेरे साथ रह रहा है। मेरी बेटी तथा मेरे और दो बेटे अपने पिता के साथ रह रहे हैं। हम अभी जिस शहर में रह रहे हैं वहाँ शल्य चिकित्सा की सुविधा नहीं होने से हम यहाँ आ गए। उसने यहाँ के किसी रिश्तेदारी में भी सूचित करने नहीं दिया।”

“आपका बेटा यह सारा काम कर लेता है?” महिला चिकित्सक की आँखों की पुतलियाँ तितली बन उड़ जाने को बैचेन दिखने लगीं थी तो भौंहें, प्रत्यंचा चढ़े धनुष सी हो रही थी।

यह वह दौर-बीसवीं सदी का काल था जब अधिकतर परिवारों में बेटे युवराज की तरह पलते और बेटियाँ ग़ुलामी के लिए तैयार की जाती थीं! या भ्रूण हत्या के लिए माँ भी तैयार कर दी जाती थीं! महिला शिक्षा पर ज़ोर बहुत था लेकिन माँ स्वाधीन नहीं होती थीं… जिसके परिणाम स्वरूप विदेशी चलन ‘वृद्धाश्रम’ भारत में भी पाँव पसारने लगे थे! कई दिनों में शारदा देवी के निरीक्षण-परीक्षण के दौरान महिला चिकित्सक अनेक बार स्तब्ध-विस्फारित चेहरे, भींगी-भींगी पलकें को सम्भालती रहीं! बाद में पता चला कि महिला चिकित्सक के बच्चे रईस कूल के बिगड़े दीपक थे..!

ख़ैर! उसी स्त्रैण-गुणों वाले बड़े बेटे से पुरुषों वाले गुणों से भरी मेरी (मेरे दादा और बड़े भैया ‘बबुआ’ व्यंग्य से मुझे कहा करते थे : मैं सभी वक्त का भोजन पापा के लिए परोसी थाली में कर लेने वाली : एक भी तिनका नहीं तोड़ने वाली : ज़िद और ग़ुस्से से भरी पड़ी : क्रिकेट, शतरंज, गुल्ली डंडा पसंद करने वाली : उस ज़माने की बिगड़ैल औलाद : समर्थन पाती, पापा की परी और मझले भैया की दुलारी होने के कारण : वे हमेशा समर्थन में पीठ पर हाथ रखे रहते : उनका कहना था कि यहाँ तो सुख-शान्ति से रहने दिया जाए : आज़ादी से उड़ने दिया जाए : दादा और बड़े भैया कहते “बबुआ प्प्प्पल्ल्लात बाड़ी! ई बबुआ के दूसरा के घरे जाये के बा, उहाँ *’बसहिएयें’* कईसे!”) शादी हो गयी। बड़े बेटे की माँ को गुमान था ही, बड़े बेटे में भी अहम् था कि वो सब कुछ कर सकता है बिना स्त्री के सहायता के! माँ अक्सर कहा करती कि मैंने अपने बच्चों को सब कुछ सिखला रखा है! मेरा बेटा कोई व्यंजन बना सकता है साथ ही दूसरे के बनाए व्यंजन में बता सकता है कि किस वजह से बिगड़ गया है! बात-चीत के क्रम में एक दिन मुझसे पूछा गया कि “एक किलो मैदा, एक किलो सूजी में केतना चीनी लागी अउरी क गो पड़किया तईयार जोखी?”

पड़किया : अनेक प्रांतों में गुझिया नाम से जाने जानी वाली मीठी-मीठी मैदा में सूजी/खोआ-चीनी सूखे मेवे सौंफ भर कर विभिन्न आकारों में होली के अवसर पर तथा बिहार में हरतालिका तीज में अवश्य बनायी जाने वाली स्वादिष्ट पकवान है! अच्छी बन गयी तो हरियाली ख़राब बनी तो दाँतों से जंग ठान मन को कसैला करती है।

मैदा में मोयन को (इतना अन्दाज से डाला जाता है कि तलने के बाद कड़ी भी रहे और बिखरे भी नहीं.. ) डालकर (मुट्ठी में मैदा गोला बनने लगे) थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर कड़ा साना जाता है। इतना कड़ा कि पूरी बेलने में परथन का प्रयोग नहीं करना पड़े लेकिन बेलने में किनारे में फटे नहीं : तलने में बिखरे नहीं!

जैसा कि प्रश्न था “एक किलो मैदा और एक किलो सूजी में कितना चीनी लगेगा?” तो उत्तर है एक किलो ही चीनी। जी! तीनों सामग्री बराबर रहती है। उसके अनुपात में घी कम लगता है..!

बिहार का एक शहर गोपालगंज के पास थावे, जहाँ एक तरफ़ माँ दुर्गा की कथा-कहानी-प्रभाव-महिमा के लिए प्रसिद्ध है तो दूसरी तरफ़ चाशनी में डूबी खोये वाली पड़किया/गुझिया सदाबहार तो पर्व-त्योहार के मौके पर अपनों को उपहार में देने का अंदाज ही अलग है। गिफ्ट पैक में थावे की पड़किया की चर्चा न हो तो बात कुछ बेमानी सी लगती है। सूबे की कौन कहे, दूसरे प्रदेशों में भी थावे की मशहूर पड़किया की कुछ अलग शान है। यहाँ दीपावली के मौके पर भी लोग एक दूसरे को यह मिठाई उपहार में देकर खुशियाँ बाँटते हैं। ऐसे में हर बार थावे का पड़किया पहला मीठा उपहार बन रहा है। वैसे तो अन्य शहरों में भी अन्य मिठाइयों की तुलना में पड़किया की माँग लगभग दस गुना होगी ही।

जी तो! सूजी की जगह अब मावे की गुझिया अधिकतर लोग पसंद करते हैं!

सामग्री :— ९-१० पड़किया/गुझिया के लिए गूंथने के लिए

3/4 कप मैदा

1 1/2 बड़े चम्मच देशी घी

3-4 बड़े चम्मच दूध

भरावन बनाने के लिए

2 बड़े चम्मच देशी घी

1/2 कप रवा

1/4 कप सूखे नारियल का बुरादा

1/3 कप पिसी हुई शक्कर

1/4 बड़े चम्मच इलायची पाउडर

2 बड़े चम्मच बारीक कटे हुए बादाम,काजू

1 बड़े चम्मच किशमिश

थोड़ा सौंफ

तलने के लिए घी

पकाने का निर्देश :—

1

मैदे में घी डालकर अच्छे से मिलाए।मुठ्ठी में आटे को बांधकर देखे अगर बंध रहा है तो मोयन बराबर है।फिर जरूरत के हिसाब से थोड़ा-थोड़ा दूध डालकर हल्का मुलायम मैदा गूंथ लें। ढँककर थोड़ी देर के लिए रख दें

2

एक कड़ाई में घी गरम करे।उसमे रवा डाले। गैस की आंच को धीमा/मध्यम रखकर,चलाते हुए, हलका सुनहला होने तक भून लें।

3

फिर उसमे नारियल का बुरादा, इलायची पाउडर, सूखा मेवा और चीनी मिलाकर धीमी आंच पर १ मिनट पकाए।गैस बंध करके भरावन को एकदम ठंडा होने दे।

4

अब तैयार गूँथे मैदे में भरावन को भरकर पड़किया तैयार की जा सके कर उसकी पूरी बेल सके उतनी की एक समान आकार की लोई बनाए।

5

एक लोई से पूरी जितना बेल कर एक से डेढ़ बड़े चम्मच भरावन भरे।फिर किनारों पे दूध लगाकर आधे चाँद के आकार का चिपका दें।  और किनारे पर उंगलियों की सहायता से समोसे के आकार काटें या रस्सी के आकार में मोड़कर बना ले।एैसे ही सारी पेडकिया तैयार कर लें।

6

एक कड़ाई में घी को गरम करके धीमी आंच पर हलके हाथों से पलटाते हुए हलका सुनहरा होने तक पड़किया/गुझिया को तल कर तैयार कर लें

अर्द्धचंद्राकार , चंद्रकला , बटलोई विभिन्न आकार में बनाई जा सकने वाली है।

किनारे पर समोसे आकार देने के लिए पैने नाखून होने चाहिए। स्त्रियों के नाखून बाघ जैसे होने भी चाहिए!

दूसरा प्रश्न था “एक किलो मैदा, एक किलो सूजी और एक किलो चीनी में कितने पड़किया बनेंगे तो उत्तर होगा :- सौ(१००) । विश्वास नहीं हो तो बनाकर देख लीजिए!

बड़े बेटे की माँ मुझसे प्रश्न कर रहीं थी तो पिता ध्यान से कान लगाए हुए थे! मेरे उत्तर देने पर उनका प्रश्न पत्नी से हुआ “का हो! बड़को! पास भईली कि ना?”

“एक दम सही उत्तर बा! देखीं ना इनके बनावल पड़किया के किनारा, केतना नीमन बा! समोसा खानी!”

“हाँ हो! अइसन त पहले कबहो देखे के मिलन ना रहल हा!”

कर्मठ माँ की बेटी थी! बब्बुआ थी तो क्या हुआ! आँख-कान खुले ही रहते थे! बसने की ज़िद भी थी! पेडुकिया तलने के पहले उसे तैयार होने का समय देना चाहिए! जैसे किसी रिश्ते को मज़बूत होने में वक्त की माँग रखता है…! तुरन्त भर कर तुरन्त तल देने पर कुरकुरा नहीं होते हैं! पिलपिला-मायूस मसुआया हुआ रिश्ता किस काम के…!

Friday, 24 May 2024

पनीर-दो-प्याजा-तृप्ति

 बुचिया— “बहुते परेशान नज़र आ रही हैं अम्मू, का बात हो गयी?”

अम्मू— “एक बेटी को कुम्हार से और एक बेटी को किसान से शादी कर पिता..,”

बुचिया— यह कहानी बहुते बार की पढ़ी-सुनी पुरानी है इससे आपकी आज की परेशानी का क्या सम्बन्ध?”

अम्मू— जिसकी दोनों आँखों से दो बेटों में से एक लेखक और एक प्रकाशक हो जाए… किसके लिये माँगे दुआ -किसके लिए माँगे ख़ैर…!”

बुचिया— “ ठहरिए! ठहरिए! आप विस्तार से पूरी कहानी सुनाइए उसके पहले मुझे पनीर-दो-प्याजा बनाना विस्तार से समझा दीजिए! मैं पनीर दो-प्याजा बनाने के क्रम में आपके आँखों से बेटों की कहानी और आपकी परेशानी समझने का प्रयास करूँगी…! एक पंथ दो काज़!”

अम्मू—“यह भी अच्छा है! हमदोनों के मुँह से, पनीर का नाम सुनते ही पानी टपकने ही वाला है, टपक जाये उसके पहले, चलो पहले कॉपी-कलम निकालो और सामग्री दर्ज कर लो। जैसा कि इसके नाम से ही साफ हो जाता है कि यह भोज्य व्यंजन पनीर और प्याज का संयोजन (कॉम्बिनेशन) होती है। शाकाहारियों को पनीर दो प्याजा की सब्जी बहुत पसन्द आती है।

पनीर दो प्याजा बनाने के लिए सामग्री :पनीर – 250 ग्राम, प्याज – 2

यहाँ दो (2) प्याज, पनीर के अनुपात में है तुम्हें एक बात बताऊँ! लगभग पाँच वर्ष पहले तक मेरी उलझन थी कि मुर्ग -दो-प्याजा, आलू -दो-प्याजा, पनीर-दो-प्याजा, मांस-दो-प्याजा जब बड़े परिवार में बनता होगा, जहाँ अधिक संख्या में लोग रहते होंगे तो उनके लिए अधिक मात्रा में बनायी सब्जी, मुर्ग में दो प्याज से कैसे काम चलता होगा!

गाढ़ा दही – 2 बड़े चम्मच, बेसन/कोर्नफ्लोर/मैदा (जो रुचिकर उपलब्ध हो), – 1 बड़े चम्मच, जीरा – 1 छोटा चम्मच, पिसा हुआ टमाटर (प्यूरी) – 1 कप, लालमिर्च पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच, धनिया पाउडर – 1 छोटा चम्मच, हल्दी – 1/4 छोटा चम्मच, गरम मसाला – 1/2 छोटा चम्मच, कसूरी मेथी – 1 छोटा चम्मच, अदरक-लहसुन पेस्ट – 1 छोटा चम्मच, तेजपत्ता – 1, दालचीनी – 1 टुकड़ा, हरी इलायची – 2, हरी मिर्च – 2, तेल – 3 बड़े चम्मच, नमक – स्वादानुसार

पनीर दो प्याजा बनाने की विधि :पनीर दो प्याजा बनाने के लिए सबसे पहले एक बाउल लेना और उसमें दही डालकर अच्छे से फेंट लेना फेंटे दही में लाल मिर्च पाउडर, हल्दी, धनिया पाउडर और गरम मसाला डालकर अच्छे से मिला लेनाइसके बाद उसमें में कसूरी मेथी, बेसन और स्वादानुसार नमक डाल लेना और मिश्रण को अच्छे से मिलाकर फेंट लेना अब पनीर लेना और उसको छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेना पनीर के इन टुकड़ों को दही के मिश्रण में डालकर अच्छे से मिलाकर कुछ देर के लिए रखना होगा जिसे मैरिनेट करना कहते हैं उसके लिए बाउल को 10 मिनट के लिए अलग रख देना होगा...

अब एक गरम कड़ाही (नॉनस्टिक पैन हो तो बेहतर) में 1 बड़ा चम्मच तेल डालकर मध्यम आँच पर गर्म करना होगा जब तेल गर्म हो जाए तो इसमें मैरिनेट किया हुआ पनीर डालकर 2 से 3 मिनट तक तलना होगाअब तले पनीर को एक अलग प्लेट में निकालकर कर रख लेना होगा (अगर कोई चाहें तो कच्चे पनीर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं...) अब कड़ाही में दोबारा तेल डाल और मध्यम आँच पर गर्म कर, इसमें एक बारीक-बारीक़ कटा प्याज, जीरा, तेज पत्ता, दालचीनी और हरी इलायची डालकर करछी की मदद से मिलाते हुए भूनना होगा अब इस भूने मसालों में थोड़े बड़े टुकड़े में कटे हुए दूसरा प्याज डालकर इसे 4 से 5 मिनट तक पकने देना। इस तरह बनाए जब प्याज का रंग सुनहरा हो जाए तो उसमें एक चम्मच अदरक-लहसुन का पेस्ट डालकर मिला देना और पकाना। जब प्याज सुनहला भूरा दिखने लगे तो गैस धीमी कर देना और उसमें सूखे मसाले डालकर अच्छे से मिला लेना. इसके बाद इसमें टमाटर प्यूरी डालकर मध्यम आँच पर 3-4 मिनट तक और पकने देना अब इसमें स्वादानुसार (कुशल गृहिणी को परिवार के लोगों के स्वादानुसार का अंदाज पता होता है) नमक मिला देना इसे तबतक पकाना होता है जबतक रस्सा (ग्रेवी) तेल न छोड़ देग्रेवी जब गाढ़ी हो जाए तो उसमें मेरिनेट तला पनीर के टुकड़े (क्यूब्स) डाल देना और एक से दो मिनट तक और पकने देना। अगर कोई चाहें तो इस सब्जी में मटर, शिमला मिर्च के बड़े-बड़े टुकड़े कर भी डाल सकते हैं इस तरह किसी समय के भोजन के लिए विशेष (स्पेशल-स्पेशल) पनीर-दो-प्याजा बनकर तैयार हो चुका होगा इसे तंदूरी रोटी या फिर लच्छा पराठा के साथ परोस किसी का दिल जीत लेना... लेकिन इते श्रम करने वाले/वाली का दिल कोई कैसे जीते...! तुम्हारी स्वादिष्ट लजीज़ पनीर दो प्याज़ा की सब्जी बनकर तैयार हो चुकी होगी.... उसके बाद क्या करें...!"

बुचिया :- जबतक सभी सामग्री जुटाती हूँ और बनाने का प्रयास करती हूँ तबतक आप लेखक-प्रकाशक-प्रकाशन अपने आँखों से बेटों की कहानी सुनाएँ..."
तृप्ति —विभा रानी श्रीवास्तव, पटना
इतिहास अनेक बार बदले जाते हैं : सूर्य-चन्द्र को भी ग्रहण का सामना करना पड़ जाता है : हार को जीत में बदल देने का प्रयास शुरू करना ही जीत है… ऐसी ही प्रयास है कवि प्रभास सिंह की पुस्तक ‘अंतरंगानुभूति’! जी हाँ! प्रभास सिंह के पुस्तक का नाम *’अंतरंगानुभूति’* रखा गया है और लेख्य-मंजूषा से जितनी भी प्रति (पता नहीं है कितनी प्रति) क्रय होगी उसी आधार पर (यानी मुफ़्त : कभी-कभी घोड़ा घास से यारी कर लेता है) राहुल शिवाय प्रकाशित करने का सहयोग कर रहे हैं! ऋग्वेद के पहले मंडल में दो पक्षियों की कथा है। सुपर्ण पक्षी। दोनों एक ही डाल पर बैठे हैं। एक अमृत फल खाता है। दूसरा उसे फल खाते देखता है और प्रसन्न होता है। जितनी तृप्ति पहले पक्षी को फल खाने से मिल रही है, उतनी ही तृप्ति दूसरे को उसे फल खाते देखने से मिल रही है। दोनों के पास तृप्ति है — एक के पास खाने की तृप्ति, दूसरे के पास पहले को खाता देखने की तृप्ति। इसे ‘द्वा सुपर्णा सयुजा सखायौ’ कहा गया है। यही 'सख्य' भाव है- यानी सखा होने का भाव, मित्रता का भाव ! यही जीवन का सख्य है। यही प्रेम का सख्य है। यही साहित्य में लेखक-पाठक का सख्य है। पहले की तृप्ति दूसरे के लिए आनंद का कारण बन जाए। भारतीय दर्शन परंपरा के अंतर्गत यही 'साक्षी भाव' भी है। ©️गीत चतुर्वेदी प्रभास सिंह लेख्य-मंजूषा से कब जुड़े-कैसे जुड़े मुझे याद नहीं पड़ रहा है, लेकिन मैं (लेख्य-मंजूषा की अध्यक्ष) जब सन् २०१९ के दिसंबर में अमेरिका जा रही थी तो उन्हें लेख्य-मंजूषा में सहायक कोषाध्यक्ष बनाकर, कोष की सारी ज़िम्मेदारी उन्हें ही देकर गयी थी। कुछ दिनों के बाद वह नौकरी के सिलसिले में मुम्बई चले गये और लेख्य-मंजूषा संस्था से हट गये। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कोष की ज़िम्मेदारी सचिव को सौंप गए। कोष की आवश्यकता सचिव को ही ज़्यादा थी…! सन् २०२० -२०२१ के काल में काल का तांडव सभी के अनुभव में है और सदैव रहेगा ही…! मैं छ महीने के लिए अमेरिका गई थी कोरोना के कारण चौदह महीने के बाद वापस लौटी! उस बीच में प्रभास सिंह से एक -दो बार बातें हुईं! बाद में पता चला कि वह बहुत बीमार है! बीमार ऐसा है कि सजीला युवा दयनीय स्थिति में जी रहा है। उनके और उनकी पत्नी के धैर्य को नमन करती हूँ कि आज प्रभास सिंह के लिखी कविताओं को प्रकाशित किया जा रहा है! कवि की अंतरंगानुभूति अभिव्यक्ति पाठक के दिल को छू लेने का प्रयासाधिक्य है! खुले दिल से कहा गया है और पूरे मन से सुना जाना, दोनों दुर्लभाधिक्य तो नहीं है! भावाधिक्य के मर्म को सुना और गुना जा सके प्रयास यही रहा है! लेखक और पाठक दोनों को शुक्ल और कृष्ण पक्ष में ज्ञान के साथ सूर्य के आलोक का दर्शन मिलने की संभावनाधिक्य हो इसी शुभकामनाओं के संग प्रभास सिंह और राहुल शिवाय को साधुवाद के संग शुभाशीष देती हूँ!बुचिया —“और मुझे?”
अम्मू—“गले लगाकर ढेर सारा प्यार-दुलार स्नेह। तुमसे ज़्यादा और कहाँ किसी से…”


Wednesday, 8 May 2024

शांति का शोर


“अब तक प्रकाशित ५० अंकों की चुनिंदा रचनाओं के संकलन को अनेक पाठकों ने पसंद किया है तथा इसकी मुद्रित प्रति को उपलब्ध कराने का अनुरोध भी किया है। इसलिए इसे वार्षिकी २०२४ के रूप में प्रकाशित किया गया है। बड़ी साइज के ८८ रंगीन पृष्ठों का यह आकर्षक संग्रहणीय अपनी लागत मूल्य पर १५०/-₹ रजिस्टर्ड पोस्ट व्यय सहित उपलब्ध है।”

“4 प्रति हेतु 600/-₹ भेज चुकी हूँ। मुझे लगता है इतने में तो पाँच प्रति हो जाने चाहिए…!”

“आपको १० प्रतियाँ भिजवा देंगे, आदरणीया..! मुझपर लक्ष्मी-सरस्वती की अपार कृपा है...”

“अच्छा है! कुछ पुस्तकालयों कुछ -पुरस्कारों में देना अच्छा लगेगा। आभार! वैसे लक्ष्मी-सरस्वती की अपार कृपा पाने वाले अनेक मेरी निगाहों के सामने हैं... जिनको उदहारण बनने में कोई रूचि नहीं है ...।”

व्हाट्सएप्प के संदेशों की बात यहीं समाप्त नहीं हुई! पलक झपकते फोन की घंटी टुनटुना उठी!

“जी प्रणाम! आदरणीय!” पचास अंक निकालने वाले निश्चितरूप से वरिष्ठ होंगे। विश्वास था कि फोन किसी महिला ने नहीं किया।

“…” समुन्दर के गहराई सी शांत स्वर में प्रश्न गूँजा।

“बहुत जल्द बाँट दिए जाएँगे! आप अपने सामर्थ्यवश जितनी पत्रिका भेज सकें। दूसरा रविवार १२ मई को मातृ दिवस पटना के कार्यक्रम में लगभग चालीस से पचास लोग होंगे। रविवार १४ जुलाई को अयोध्या की पद्य गोष्ठी में भी लगभग इतने ही प्रतिभागियों की उपस्थिति की संभावना…”

“…” यक़ीनन पूछते हुए मेघ-विद्युत सी मुस्कुराहट फैली हो।

“जून के पिता दिवस के अवसर पर हमारी अपनी पत्रिका का लोकार्पण होगा। संस्था के सदस्यों के सामने स्पर्द्धा का विकल्प नहीं रखना चाहेंगे।”

“…,”

“एक दिन अवसर मिला सबको 

अपने संगी चयन का—

उषा-प्रत्युषा ने सूरज को गले लगाया

चाँद, तारों का साथ माँग लिया 

नदियाँ सागर से जा मिली

खारे-खोटे की कि किसने परवाह

हवा, खुशबू के पीछे भाग गई 

बरखा ने बादल को चूम लिया

और अंबरारंभ उलझाया हुआ

और साहित्य?

मनुष्य को मौक़ा दिया सब पर इंद्रधनुष बना देने का!”


दस की जगह पच्चीस पत्रिका आ गयी…

1. मुबश्शिरा — 2. मुबश्शिरा

 01. "क्या दूसरी शादी कर लेने के बारे में नहीं सोच रही हो?" सुई भी गिरती तो शोर गूँज जाता। जैसे आग लगने पर अलार्म बज जाता है। पहली...