Wednesday, 29 May 2024
.. —वर्जनाएँ
Monday, 27 May 2024
पड़किया रासाधिक्य
“आपके संग आपकी बेटी रह रही है कि आपकी बहू?” शारदा देवी का निरीक्षण कर रही महिला चिकित्सक ने पूछा।
“क्यों? आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?” शारदा देवी का गर्भाशय निकाला गया था जिसके कारण वो अस्पताल में भर्ती थीं।
“आप, अस्पताल से मिलने वाला भोजन नहीं ले रही हैं। आपके कपड़े नर्स नहीं धो रही है। आपका कमरा हमेशा व्यवस्थित रह रहा है।”
“मेरा बड़ा बेटा मेरे साथ रह रहा है। मेरी बेटी तथा मेरे और दो बेटे अपने पिता के साथ रह रहे हैं। हम अभी जिस शहर में रह रहे हैं वहाँ शल्य चिकित्सा की सुविधा नहीं होने से हम यहाँ आ गए। उसने यहाँ के किसी रिश्तेदारी में भी सूचित करने नहीं दिया।”
“आपका बेटा यह सारा काम कर लेता है?” महिला चिकित्सक की आँखों की पुतलियाँ तितली बन उड़ जाने को बैचेन दिखने लगीं थी तो भौंहें, प्रत्यंचा चढ़े धनुष सी हो रही थी।
यह वह दौर-बीसवीं सदी का काल था जब अधिकतर परिवारों में बेटे युवराज की तरह पलते और बेटियाँ ग़ुलामी के लिए तैयार की जाती थीं! या भ्रूण हत्या के लिए माँ भी तैयार कर दी जाती थीं! महिला शिक्षा पर ज़ोर बहुत था लेकिन माँ स्वाधीन नहीं होती थीं… जिसके परिणाम स्वरूप विदेशी चलन ‘वृद्धाश्रम’ भारत में भी पाँव पसारने लगे थे! कई दिनों में शारदा देवी के निरीक्षण-परीक्षण के दौरान महिला चिकित्सक अनेक बार स्तब्ध-विस्फारित चेहरे, भींगी-भींगी पलकें को सम्भालती रहीं! बाद में पता चला कि महिला चिकित्सक के बच्चे रईस कूल के बिगड़े दीपक थे..!
ख़ैर! उसी स्त्रैण-गुणों वाले बड़े बेटे से पुरुषों वाले गुणों से भरी मेरी (मेरे दादा और बड़े भैया ‘बबुआ’ व्यंग्य से मुझे कहा करते थे : मैं सभी वक्त का भोजन पापा के लिए परोसी थाली में कर लेने वाली : एक भी तिनका नहीं तोड़ने वाली : ज़िद और ग़ुस्से से भरी पड़ी : क्रिकेट, शतरंज, गुल्ली डंडा पसंद करने वाली : उस ज़माने की बिगड़ैल औलाद : समर्थन पाती, पापा की परी और मझले भैया की दुलारी होने के कारण : वे हमेशा समर्थन में पीठ पर हाथ रखे रहते : उनका कहना था कि यहाँ तो सुख-शान्ति से रहने दिया जाए : आज़ादी से उड़ने दिया जाए : दादा और बड़े भैया कहते “बबुआ प्प्प्पल्ल्लात बाड़ी! ई बबुआ के दूसरा के घरे जाये के बा, उहाँ *’बसहिएयें’* कईसे!”) शादी हो गयी। बड़े बेटे की माँ को गुमान था ही, बड़े बेटे में भी अहम् था कि वो सब कुछ कर सकता है बिना स्त्री के सहायता के! माँ अक्सर कहा करती कि मैंने अपने बच्चों को सब कुछ सिखला रखा है! मेरा बेटा कोई व्यंजन बना सकता है साथ ही दूसरे के बनाए व्यंजन में बता सकता है कि किस वजह से बिगड़ गया है! बात-चीत के क्रम में एक दिन मुझसे पूछा गया कि “एक किलो मैदा, एक किलो सूजी में केतना चीनी लागी अउरी क गो पड़किया तईयार जोखी?”
पड़किया : अनेक प्रांतों में गुझिया नाम से जाने जानी वाली मीठी-मीठी मैदा में सूजी/खोआ-चीनी सूखे मेवे सौंफ भर कर विभिन्न आकारों में होली के अवसर पर तथा बिहार में हरतालिका तीज में अवश्य बनायी जाने वाली स्वादिष्ट पकवान है! अच्छी बन गयी तो हरियाली ख़राब बनी तो दाँतों से जंग ठान मन को कसैला करती है।
मैदा में मोयन को (इतना अन्दाज से डाला जाता है कि तलने के बाद कड़ी भी रहे और बिखरे भी नहीं.. ) डालकर (मुट्ठी में मैदा गोला बनने लगे) थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर कड़ा साना जाता है। इतना कड़ा कि पूरी बेलने में परथन का प्रयोग नहीं करना पड़े लेकिन बेलने में किनारे में फटे नहीं : तलने में बिखरे नहीं!
जैसा कि प्रश्न था “एक किलो मैदा और एक किलो सूजी में कितना चीनी लगेगा?” तो उत्तर है एक किलो ही चीनी। जी! तीनों सामग्री बराबर रहती है। उसके अनुपात में घी कम लगता है..!
बिहार का एक शहर गोपालगंज के पास थावे, जहाँ एक तरफ़ माँ दुर्गा की कथा-कहानी-प्रभाव-महिमा के लिए प्रसिद्ध है तो दूसरी तरफ़ चाशनी में डूबी खोये वाली पड़किया/गुझिया सदाबहार तो पर्व-त्योहार के मौके पर अपनों को उपहार में देने का अंदाज ही अलग है। गिफ्ट पैक में थावे की पड़किया की चर्चा न हो तो बात कुछ बेमानी सी लगती है। सूबे की कौन कहे, दूसरे प्रदेशों में भी थावे की मशहूर पड़किया की कुछ अलग शान है। यहाँ दीपावली के मौके पर भी लोग एक दूसरे को यह मिठाई उपहार में देकर खुशियाँ बाँटते हैं। ऐसे में हर बार थावे का पड़किया पहला मीठा उपहार बन रहा है। वैसे तो अन्य शहरों में भी अन्य मिठाइयों की तुलना में पड़किया की माँग लगभग दस गुना होगी ही।
जी तो! सूजी की जगह अब मावे की गुझिया अधिकतर लोग पसंद करते हैं!
सामग्री :— ९-१० पड़किया/गुझिया के लिए गूंथने के लिए
3/4 कप मैदा
1 1/2 बड़े चम्मच देशी घी
3-4 बड़े चम्मच दूध
भरावन बनाने के लिए
2 बड़े चम्मच देशी घी
1/2 कप रवा
1/4 कप सूखे नारियल का बुरादा
1/3 कप पिसी हुई शक्कर
1/4 बड़े चम्मच इलायची पाउडर
2 बड़े चम्मच बारीक कटे हुए बादाम,काजू
1 बड़े चम्मच किशमिश
थोड़ा सौंफ
तलने के लिए घी
पकाने का निर्देश :—
1
मैदे में घी डालकर अच्छे से मिलाए।मुठ्ठी में आटे को बांधकर देखे अगर बंध रहा है तो मोयन बराबर है।फिर जरूरत के हिसाब से थोड़ा-थोड़ा दूध डालकर हल्का मुलायम मैदा गूंथ लें। ढँककर थोड़ी देर के लिए रख दें
2
एक कड़ाई में घी गरम करे।उसमे रवा डाले। गैस की आंच को धीमा/मध्यम रखकर,चलाते हुए, हलका सुनहला होने तक भून लें।
3
फिर उसमे नारियल का बुरादा, इलायची पाउडर, सूखा मेवा और चीनी मिलाकर धीमी आंच पर १ मिनट पकाए।गैस बंध करके भरावन को एकदम ठंडा होने दे।
4
अब तैयार गूँथे मैदे में भरावन को भरकर पड़किया तैयार की जा सके कर उसकी पूरी बेल सके उतनी की एक समान आकार की लोई बनाए।
5
एक लोई से पूरी जितना बेल कर एक से डेढ़ बड़े चम्मच भरावन भरे।फिर किनारों पे दूध लगाकर आधे चाँद के आकार का चिपका दें। और किनारे पर उंगलियों की सहायता से समोसे के आकार काटें या रस्सी के आकार में मोड़कर बना ले।एैसे ही सारी पेडकिया तैयार कर लें।
6
एक कड़ाई में घी को गरम करके धीमी आंच पर हलके हाथों से पलटाते हुए हलका सुनहरा होने तक पड़किया/गुझिया को तल कर तैयार कर लें
अर्द्धचंद्राकार , चंद्रकला , बटलोई विभिन्न आकार में बनाई जा सकने वाली है।
किनारे पर समोसे आकार देने के लिए पैने नाखून होने चाहिए। स्त्रियों के नाखून बाघ जैसे होने भी चाहिए!
दूसरा प्रश्न था “एक किलो मैदा, एक किलो सूजी और एक किलो चीनी में कितने पड़किया बनेंगे तो उत्तर होगा :- सौ(१००) । विश्वास नहीं हो तो बनाकर देख लीजिए!
बड़े बेटे की माँ मुझसे प्रश्न कर रहीं थी तो पिता ध्यान से कान लगाए हुए थे! मेरे उत्तर देने पर उनका प्रश्न पत्नी से हुआ “का हो! बड़को! पास भईली कि ना?”
“एक दम सही उत्तर बा! देखीं ना इनके बनावल पड़किया के किनारा, केतना नीमन बा! समोसा खानी!”
“हाँ हो! अइसन त पहले कबहो देखे के मिलन ना रहल हा!”
कर्मठ माँ की बेटी थी! बब्बुआ थी तो क्या हुआ! आँख-कान खुले ही रहते थे! बसने की ज़िद भी थी! पेडुकिया तलने के पहले उसे तैयार होने का समय देना चाहिए! जैसे किसी रिश्ते को मज़बूत होने में वक्त की माँग रखता है…! तुरन्त भर कर तुरन्त तल देने पर कुरकुरा नहीं होते हैं! पिलपिला-मायूस मसुआया हुआ रिश्ता किस काम के…!
Friday, 24 May 2024
पनीर-दो-प्याजा-तृप्ति
बुचिया— “बहुते परेशान नज़र आ रही हैं अम्मू, का बात हो गयी?”
अम्मू— “एक बेटी को कुम्हार से और एक बेटी को किसान से शादी कर पिता..,”
बुचिया— यह कहानी बहुते बार की पढ़ी-सुनी पुरानी है इससे आपकी आज की परेशानी का क्या सम्बन्ध?”
अम्मू— जिसकी दोनों आँखों से दो बेटों में से एक लेखक और एक प्रकाशक हो जाए… किसके लिये माँगे दुआ -किसके लिए माँगे ख़ैर…!”
बुचिया— “ ठहरिए! ठहरिए! आप विस्तार से पूरी कहानी सुनाइए उसके पहले मुझे पनीर-दो-प्याजा बनाना विस्तार से समझा दीजिए! मैं पनीर दो-प्याजा बनाने के क्रम में आपके आँखों से बेटों की कहानी और आपकी परेशानी समझने का प्रयास करूँगी…! एक पंथ दो काज़!”
अम्मू—“यह भी अच्छा है! हमदोनों के मुँह से, पनीर का नाम सुनते ही पानी टपकने ही वाला है, टपक जाये उसके पहले, चलो पहले कॉपी-कलम निकालो और सामग्री दर्ज कर लो। जैसा कि इसके नाम से ही साफ हो जाता है कि यह भोज्य व्यंजन पनीर और प्याज का संयोजन (कॉम्बिनेशन) होती है। शाकाहारियों को पनीर दो प्याजा की सब्जी बहुत पसन्द आती है।
पनीर दो प्याजा बनाने के लिए सामग्री :— पनीर – 250 ग्राम, प्याज – 2
यहाँ दो (2) प्याज, पनीर के अनुपात में है। तुम्हें एक बात बताऊँ! लगभग पाँच वर्ष पहले तक मेरी उलझन थी कि मुर्ग -दो-प्याजा, आलू -दो-प्याजा, पनीर-दो-प्याजा, मांस-दो-प्याजा जब बड़े परिवार में बनता होगा, जहाँ अधिक संख्या में लोग रहते होंगे तो उनके लिए अधिक मात्रा में बनायी सब्जी, मुर्ग में दो प्याज से कैसे काम चलता होगा!
गाढ़ा दही – 2 बड़े चम्मच, बेसन/कोर्नफ्लोर/मैदा (जो रुचिकर उपलब्ध हो), – 1 बड़े चम्मच, जीरा – 1 छोटा चम्मच, पिसा हुआ टमाटर (प्यूरी) – 1 कप, लालमिर्च पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच, धनिया पाउडर – 1 छोटा चम्मच, हल्दी – 1/4 छोटा चम्मच, गरम मसाला – 1/2 छोटा चम्मच, कसूरी मेथी – 1 छोटा चम्मच, अदरक-लहसुन पेस्ट – 1 छोटा चम्मच, तेजपत्ता – 1, दालचीनी – 1 टुकड़ा, हरी इलायची – 2, हरी मिर्च – 2, तेल – 3 बड़े चम्मच, नमक – स्वादानुसार
पनीर दो प्याजा बनाने की विधि :— पनीर दो प्याजा बनाने के लिए सबसे पहले एक बाउल लेना और उसमें दही डालकर अच्छे से फेंट लेना। फेंटे दही में लाल मिर्च पाउडर, हल्दी, धनिया पाउडर और गरम मसाला डालकर अच्छे से मिला लेना। इसके बाद उसमें में कसूरी मेथी, बेसन और स्वादानुसार नमक डाल लेना और मिश्रण को अच्छे से मिलाकर फेंट लेना। अब पनीर लेना और उसको छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेना। पनीर के इन टुकड़ों को दही के मिश्रण में डालकर अच्छे से मिलाकर कुछ देर के लिए रखना होगा जिसे मैरिनेट करना कहते हैं। उसके लिए बाउल को 10 मिनट के लिए अलग रख देना होगा...।
अब एक गरम कड़ाही (नॉनस्टिक पैन हो तो बेहतर) में 1 बड़ा चम्मच तेल डालकर मध्यम आँच पर गर्म करना होगा। जब तेल गर्म हो जाए तो इसमें मैरिनेट किया हुआ पनीर डालकर 2 से 3 मिनट तक तलना होगा। अब तले पनीर को एक अलग प्लेट में निकालकर कर रख लेना होगा। (अगर कोई चाहें तो कच्चे पनीर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं...) अब कड़ाही में दोबारा तेल डाल और मध्यम आँच पर गर्म कर, इसमें एक बारीक-बारीक़ कटा प्याज, जीरा, तेज पत्ता, दालचीनी और हरी इलायची डालकर करछी की मदद से मिलाते हुए भूनना होगा। अब इस भूने मसालों में थोड़े बड़े टुकड़े में कटे हुए दूसरा प्याज डालकर इसे 4 से 5 मिनट तक पकने देना। इस तरह बनाए जब प्याज का रंग सुनहरा हो जाए तो उसमें एक चम्मच अदरक-लहसुन का पेस्ट डालकर मिला देना और पकाना। जब प्याज सुनहला भूरा दिखने लगे तो गैस धीमी कर देना और उसमें सूखे मसाले डालकर अच्छे से मिला लेना।. इसके बाद इसमें टमाटर प्यूरी डालकर मध्यम आँच पर 3-4 मिनट तक और पकने देना। अब इसमें स्वादानुसार (कुशल गृहिणी को परिवार के लोगों के स्वादानुसार का अंदाज पता होता है) नमक मिला देना। इसे तबतक पकाना होता है जबतक रस्सा (ग्रेवी) तेल न छोड़ दे। ग्रेवी जब गाढ़ी हो जाए तो उसमें मेरिनेट तला पनीर के टुकड़े (क्यूब्स) डाल देना और एक से दो मिनट तक और पकने देना। अगर कोई चाहें तो इस सब्जी में मटर, शिमला मिर्च के बड़े-बड़े टुकड़े कर भी डाल सकते हैं। इस तरह किसी समय के भोजन के लिए विशेष (स्पेशल-स्पेशल) पनीर-दो-प्याजा बनकर तैयार हो चुका होगा। इसे तंदूरी रोटी या फिर लच्छा पराठा के साथ परोस किसी का दिल जीत लेना... लेकिन इते श्रम करने वाले/वाली का दिल कोई कैसे जीते...! तुम्हारी स्वादिष्ट लजीज़ पनीर दो प्याज़ा की सब्जी बनकर तैयार हो चुकी होगी.... उसके बाद क्या करें...!"
Wednesday, 8 May 2024
शांति का शोर
“अब तक प्रकाशित ५० अंकों की चुनिंदा रचनाओं के संकलन को अनेक पाठकों ने पसंद किया है तथा इसकी मुद्रित प्रति को उपलब्ध कराने का अनुरोध भी किया है। इसलिए इसे वार्षिकी २०२४ के रूप में प्रकाशित किया गया है। बड़ी साइज के ८८ रंगीन पृष्ठों का यह आकर्षक संग्रहणीय अपनी लागत मूल्य पर १५०/-₹ रजिस्टर्ड पोस्ट व्यय सहित उपलब्ध है।”
“4 प्रति हेतु 600/-₹ भेज चुकी हूँ। मुझे लगता है इतने में तो पाँच प्रति हो जाने चाहिए…!”
“आपको १० प्रतियाँ भिजवा देंगे, आदरणीया..! मुझपर लक्ष्मी-सरस्वती की अपार कृपा है...”
“अच्छा है! कुछ पुस्तकालयों कुछ -पुरस्कारों में देना अच्छा लगेगा। आभार! वैसे लक्ष्मी-सरस्वती की अपार कृपा पाने वाले अनेक मेरी निगाहों के सामने हैं... जिनको उदहारण बनने में कोई रूचि नहीं है ...।”
व्हाट्सएप्प के संदेशों की बात यहीं समाप्त नहीं हुई! पलक झपकते फोन की घंटी टुनटुना उठी!
“जी प्रणाम! आदरणीय!” पचास अंक निकालने वाले निश्चितरूप से वरिष्ठ होंगे। विश्वास था कि फोन किसी महिला ने नहीं किया।
“…” समुन्दर के गहराई सी शांत स्वर में प्रश्न गूँजा।
“बहुत जल्द बाँट दिए जाएँगे! आप अपने सामर्थ्यवश जितनी पत्रिका भेज सकें। दूसरा रविवार १२ मई को मातृ दिवस पटना के कार्यक्रम में लगभग चालीस से पचास लोग होंगे। रविवार १४ जुलाई को अयोध्या की पद्य गोष्ठी में भी लगभग इतने ही प्रतिभागियों की उपस्थिति की संभावना…”
“…” यक़ीनन पूछते हुए मेघ-विद्युत सी मुस्कुराहट फैली हो।
“जून के पिता दिवस के अवसर पर हमारी अपनी पत्रिका का लोकार्पण होगा। संस्था के सदस्यों के सामने स्पर्द्धा का विकल्प नहीं रखना चाहेंगे।”
“…,”
“एक दिन अवसर मिला सबको
अपने संगी चयन का—
उषा-प्रत्युषा ने सूरज को गले लगाया
चाँद, तारों का साथ माँग लिया
नदियाँ सागर से जा मिली
खारे-खोटे की कि किसने परवाह
हवा, खुशबू के पीछे भाग गई
बरखा ने बादल को चूम लिया
और अंबरारंभ उलझाया हुआ
और साहित्य?
मनुष्य को मौक़ा दिया सब पर इंद्रधनुष बना देने का!”
1. मुबश्शिरा — 2. मुबश्शिरा
01. "क्या दूसरी शादी कर लेने के बारे में नहीं सोच रही हो?" सुई भी गिरती तो शोर गूँज जाता। जैसे आग लगने पर अलार्म बज जाता है। पहली...
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“हाइकु की तरह अनुभव के एक क्षण को वर्तमान काल में दर्शाया गया चित्र लघुकथा है।” यों तो किसी भी विधा को ठीक - ठीक परिभाषित करना ...
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आखिर कहाँ से आया 'लिट्टी-चोखा' और कैसे बन गया बिहार की पहचान.... लिट्टी चोखा का इतिहास रामायण में वर्णित है। ये संतो का भोजन होता था...