"क्या यह लघुकथा आपकी लिखी हुई है? पुस्तक में छपी लघुकथा को दिखलाती हुई करुणा ने विम्मी से पूछा।
"हाँ!बस शीर्षक बदला हुआ है, सम्पादक महोदय ने बदल दिया है, क्यों दी आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं..?" विम्मी सहज थी।
"हु-ब-हु ऐसी ही लघुकथा कविता की लिखी फेसबुक समूह में पढ़ी हूँ और आज कविता फेसबुक पर पोस्ट भी बनाई है अपनी लघुकथा चोरी कर छपवा लेने की बात कर रही है...,"
"मैंने रेडियो पर कुछ अंश सुना था, उसी से प्रेरित होकर, अपने शब्द में प्रयास किया था,गलती तो स्पष्ट है, इनका पोस्ट देखकर .. मेरी यही गलती है,,कि कुछ सुनकर , कुछ लिख लिया.. अब क्या निदान है,,??"
" यह तो आप सोचिए कि क्या किया जाए
–भाई गुरु जी को मैं दी.. उन्होंने मुझपर विश्वास किया जो टूट गया..
–भाई गुरु जी पर सम्पादक जी का विश्वास टूट गया..
हथेली से जैसे जल व रेत फिसलता है वैसे विश्वास टूटने के बाद साख भी...!"
"मुझे एक सीख मिली है, वैसे दी! मिलती,जुलती, कभी कुछ नहीं होता है क्या दी ? सर का साख,भी ना धूमिल हो, कोई उपाय करें दी, दी आपहीं इस संकट से निकालिए। बात तो सही कही आपने दी, मुझे खुद बहुत बुरा लग रहा है।"
" मिलती जुलती का अर्थ समझाना होगा क्या आपको ? जो पोस्ट का लिंक मिला है उसके टिप्पणी में क्षमा मांग लीजिये... और पूरे धैर्य से सहन कीजिये... श्री सम्पादक महोदय के नाम ,क्षमा का एक चिट्ठी लिख दीजिये, चिट्ठी लिखने के बाद मुझे दिखा लीजियेगा ... अगले अंक में चर्चा ना करें इसका अनुरोध कीजियेगा.. वैसे उनकी जो मर्जी।"
"नहीं दी, अब सब तो स्पष्ट है, लेकिन मैंने कभी उनका पढ़ा होता, तो ऐसी भयानक गलती,,कभी कोई नहीं करेगा,,फास्ट ,, नेटवर्क के जमाने में.., सबके साख का सवाल है, अपनी अनभिज्ञता पर मैं बेहद पछता रही हूँ जी, सभी कोई अौर कदम ना ले ले ,, गुस्से में...!आपको कितना बुरा लग रहा होगा दी,,मेरे कारण... !"☹🙏
"कभी खुद के लिए कुछ बुरा नहीं लगता है यह आप अच्छे से जानती हैं ! लेकिन मुझसे जुड़े किसी अन्य को कोई कष्ट/परेशानी होती है तो मेरी व्यथा भी आप जानती हैं... सब रिस जाए उसके पहले चेत जाना चाहिए..!"