Wednesday 12 June 2019

फिक्र

देख गुलमोहर-अमलतास
ठिठक जाती हूँ
ठमका देता है
सरी में दिखता जल।
अनेकानेक स्थलों पर
विलुप्तता संशय में डाले हुए है
बचपन सा छुप जाए
तलाश में हो लुकाछिपी।
है भी तो नहीं
अँचरा के खूँट
कैसे गाँठ बाँध
ढूंढ़ने की कोशिश होगी
जब कभी उन स्थलों पर
वापसी होगी।

1 comment:

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