परसों सुबह सुबह बहुत खुश थी .....
चारों ओर हरियाली अपने बगीचे में देख कर ....
उड़ी उदासी
पतझड़ की पाती
ठूंठ गुलाबी।
लेकिन दोपहर होते होते ख़ुशी हवा के संग हवा हो गई। …
ढहे मकान
ताश पत्ते बिखरे
भूडोल चीखी।
मौत का खौफ
शोर चीखता जोर
भू डोलती ज्यूँ
या कुछ ऐसा
मौत का खौफ
जीव भोगे यथार्थ
भू कांपती ज्यूँ
सभी भगवान को दोष दे रहे …..
सृष्टि खंजर
क्रूरता का मंजर
खाक गुलिस्ताँ
तो कुछ ….इंसानी पाप का फल समझ रहे हैं ….. मुझे लगा
भूडोल चीखी
स्त्री कुचली सताई
बिफरी मौन
मेरे एक फेसबुक के मित्र को लगा
Tushar Gandhi जी
tremors
even after earthquake-
Parkinson’s
anuvadit rachana Vibha Shrivastava ji ke sahayog se…..
भूडोल चीखें
तामसी थरथरी/थरहरी
पार्किंसनस।