Tuesday 16 August 2016

टूटती शाखें


 …… राखी ......

मेरे लिए भी ..... 4 राखी मंगवा दीजियेगा ….. 3 राखी डाक से .... भाई लोगों को भेज दूंगी ….. एक राखी रह जायेगा …. भैया आयेंगे तो बांध दूंगीं …..

देवर को , सास बाजार भेज रही थीं ..... राखी लाने के लिए ….. सुबह से ही ननद हल्ला मचा रही थी …. माँ राखी मंगवा दो … राखी मंगवा भैया को भेज दो …. देर हो जाने से भैया लोग को .... समय पर नहीं मिलेगा …. बाद में मिलने से ..... क्या फायदा …..

पुष्पा भी कहना चाह रही थी कई दिनों से ….. लेकिन उलझन में थी …. बोले या ना बोले …. शादी होकर आये दो महीना ही तो गुजरा था ससुराल में ….. शादी के बाद पहली राखी थी ….. पति पढ़ाई के लिए ..... दुसरे शहर में रहते थे …. पुष्पा सास ससुर ननद देवर के साथ रहती थी …… जो कहना था ,सास से ही कहना था .....

देवर को बाज़ार जाते देख ….. संकोच त्याग बोल ही दी ….. पुष्पा को राखी के लिए बोलते सुन ….

पुष्पा के ससुर जी बोले :- पहले भी कभी बाँधी हो ..... राखी अपने भाइयों को ..... या ननद की पटदारी कर रही हो …. वो बांधेगी तो तुम भी बांधोगी ...... सास ननद देवर व्यंग से ठिठिहाअ दिए .....

पुष्पा स्तब्ध रह गई ….. कैसा परिवार है .... हर बड़ी छोटी बात व्यंग में करते हैं  ...... क्या अभी अभी ….. मेरे शादी के बाद ..... राखी प्रचलन में आया है …. मेरी माँ भी मामा को राखी बांधना शुरू कर दी थीं .... पुष्पा बोलना चाहती थी .... लेकिन उसकी आवाज घूंट कर रह गई …… कहीं शाखें चरमरा गई …..

मान घटता
संकुचित विचारों
टूटती साखें



Saturday 13 August 2016

तिरंगा



तिरंगा शहीदों का कफन होता है ......
बलात्कार की शिकार हुई ..... बालाओं ..... नारियों का कफन क्या हो ?
बलात्कारियों  के कमी नहीं होने से बेटियों की कमी हो  जायेगी .... पहले बहुओं को जलाये जाने से हो रही थी ..... अपने बेटी से प्यार किये तो कौन सा जग जीत लिए .... शान तब है जब घर में बहुओं का मान है ....


चाहे कोई पार्टी हो ..... आखिर क्या कारण है 

Padmasambhava Shrivastava
अमित शाह जी क्या उत्तर देंगे ?
छात्रा से दुष्कर्म के आरोपी बस्ती से कांग्रेसी विधायक संजय जायसवाल को भाजपा में क्यों शामिल किया है ? 
यह बेटी का सम्मान या अपमान है ?

देश स्वतंत्र हुए 69 वर्ष हो गये ...... स्वतंत्र होने का अर्थ सबने अपने अपने हिसाब से लिया है ... कोई बलात्कारी हो कर कोई बलात्कारी को पनाह देकर ..... देश अपना मर्जी अपनी ..... रिश्तेदारी निभाना तब और भी जरुरी जब कुर्सी बचाए रखना हो ..... बलात्कारी खुद हो या किसी ना किसी का .... मामा .... काका ..... साला .... बेटा हो जाता है ......

स्व
सोर
विहन्ता
स्वाधीनता
कोटि कुर्बानी
भूले मंत्री संत्री
दुष्कर्मी को पोषते {01}

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हो
टोल
ठठोल
कुर्सी झोल
आजादी मोल
बढ़ा बड़-बोल
निहाल चाटु लोल {02}

लिखने कुछ बैठती हूँ .... लिखती कुछ हूँ ..... लिखना चाहती थी तिरंगे के शान में ..... स्वतंत्रता के मान में .... दिमाग तो उलझा है ..... बलात्कार

Friday 12 August 2016

समय



खुद की मान बढ़ाने के चक्कर में दूसरे के मान को ना छेड़ें
समय का बही-खाता ऐसा है कि सबका हिसाब रखता है ढेरे

शारदा जी के खिलाफ विभा को और विभा के खिलाफ शारदा जी को भड़काने का एक भी मौका नहीं गंवाते राजू अंजू .... शारदा जी पुत्र मोह में और देवर देवरानी को हितैषी समझ विभा यकीन करती रही ....नतीजा ये हुआ कि शारदा जी और विभा में पूरी जिन्दगी नहीं बनी ....विभा के पति अरुण को अपनी माँ शारदा जी पर पूरा विश्वास था ....शारदा जी जो कहतीं , अरुण आँख बंद कर विश्वास करते और अपनी पत्नी को कभी सफाई देने का भी मौका नहीं देते .... विभा पूरी जिन्दगी सभी रिश्तों को खोती ही रही .... राजू अंजू को खुद को काबिल समझने का तरीका अच्छा मिला था .... 30-32 साल का समय कैसे कटा विभा का इस कागज़ पर लिख पाना संभव नहीं ... लेकिन शारदा जी के मौत के बाद उनकी डायरी विभा को मिली .....
अब विभा करे भी तो क्या करे ................................... चिड़िया खेत चुग चुकी है

आप में से किसी की स्थति शायद सम्भल जाए

Wednesday 10 August 2016

ड्योढ़ी कब लांघे ?



समाज में कई सवाल बिखरे पड़े हैं ..... सहना क्यूँ कब तक बहना ?

जब तक केवल वो बहु थी
कुछ नहीं रही उसकी औकात
न घर की ना घाट की !
जब बने सास तब होती खास
जमीर रहे गर उसकी जिंदा
बहु ले पाती चंद सांस !!

गृह त्याग तब क्यूँ नहीं की ….. जब कर्कशा सास हर आने जाने वाले रिश्तेदार को दहेज में कमी होने का रोना रोती और खुद महान होने का नाटक परोसती …..

गृह त्याग तब क्यूँ नहीं की …. जब बददिमाग मुंहफट ननद …. मझली भाभी के भाई को हरामी बोली …. मझली भाभी के हंगामा करने पर …. बड़ी भाभी के मुंह से निकल गया …. बबुनी को ऐसा नहीं बोलना चाहिए था ….. बड़ी भाभी का बोलना गुनाह इतना बड़ा हुआ कि उसके भाई को बुला कर घर छोड़ देने का आदेश मिला …. {बड़ी भाभी तब तक गर्भवती हो चुकी थी …. पुत्र जन्म देने पर उसके विरोध में उसके बेटे को ही खड़ा करने की जी तोड़ कोशिश की सबने}….. कैसे और कहाँ जाती इस दोखज़ समाज में …… उसके बाद तो सिलसिला शुरू हो गया ….. हर छोटी बड़ी बात पर घर से निकल जाने का आदेश पास हो हाज़िर हो जाता ….. देश का राष्ट्रपति मुंह पे ऊँगली रखे रहता है …. घर में पेटीकोट सरकार हो और कापुरुष हो संग तो ……. घर का सबसे बेगैरत बेरोजगार (काश ! हमेशा रहता ) छोटा बेटा रातो रात बड़ी भाभी के मइके जाता और उस समय जो आ पाता उसे वो साथ लेकर पौ फटते चला आता ….. मइके वाले शायद इसलिए चले आते समाज में प्रतिष्ठा बनी रहे ….. मझला बेटा बहू को सूरत का घमंड था …..काश कुछ सीरत भी मिला होता ….जिसे लूट सकता उससे सटता ….. लूटे माल पे इतराते घूमते ….. बड़ी भाभी का शिकायत करना ….. उनका मनपसंद शगल था ….. जड़ खोदता रहा ……

गृह त्याग तब क्यूँ नहीं की …. जब पति छोटी उम्र की स्त्रियों को साली और बड़ी उम्र के स्त्रियों को भौजाई कहता और उसके सामने ही फ्लर्ट करने की कोशिश करता ….. बिना उसके गलती को जाने समझे पूछे उसे पिट डालता …. कान का कच्चा बेटा पाकर डायन सास लगाती बुझाती रही पूरी जिन्दगी …..

आज अपने पति की बेवफाई सिद्ध होने पर ….. बिना पल गंवाये सिंदूर चुड़ी बिंदी उतार उसी पति को सौंप …. पथ पर भटकते हुए सोच रही है ….. इन्ही बेटों की परवरिश कर अहंकार से कर्कशा शारदा देवी कहती थी ……दीया लेकर खोजने निकलो तो मेरे बेटों जैसे बच्चे दुसरे नहीं मिलेंगे
अच्छा है दुनिया में एक ही परिवार ऐसा है ……

पति या पत्नी का बहकना
उसके पीछे होता
उसे मिले
संस्कार का होना
सहना तभी तक गहना
जब तक मान न गंवाना
हर भाई बहना समझना


Tuesday 9 August 2016

अनुभूति



सारे रिश्ते
स्वार्थी मतलबी
झूठे होते हैं
चाहे जन्म से मिले
चाहे जग में बने
अकेला जन्म
अकेला मृत्यु
सत्य यही
कल भी था
कल भी होगा

Sunita Pushpraj Pandey :- माना जन्म और मृत्यु अकेले पर जीवन मे अपनो का साथ
सबकुछ सहज बना देता है

विभा रानी श्रीवास्तव :- कौन अपना ? किसी अपने को कभी आंक कर देखना सखी

Sunita Pushpraj Pandey :- बाकी का नही पता पर पति मेरा अपना है मेरा कष्ट उनके चेहरे पर नजर आता है जबकि वो कहते हैं मै सिर्फ अपने कर्तव्य निभाता हूँ

विभा रानी श्रीवास्तव :- आप खुशकिस्मत हैं कि पत्नी का दर्द महसूस करने वाला आपको आपके पति मिले
जरा उनसे पूछ कर बताइयेगा कि क्या आपके चिता के संग सती/सता होंगे न वे / अगर आप पहले मुक्त हुई इस जीवन से तो .... या रह भी जायेंगे तो .... सन्यासी हो जायेंगे न ...?

Sunita Pushpraj Pandey :- हाँ प्रैक्टिकल तो है वो पर परिवार से प्यार करते हैं किसी के विषय में सोच तो सकते हैं पर अपना नही सकते मेरे साथ भी मेरे बाद भी

विभा रानी श्रीवास्तव :- चिता के संग जायेंगे सवाल का जबाब ढुंढियेगा सखी

Sushma Singh :- सहमत पर कूछ अच्छे अौर सच्चे भी होते है

विभा रानी श्रीवास्तव :- पति के साथ सती होती थी स्त्रियां उसे भी रूढ़ी मान बदल दिया गया
उसके आगे पीछे किसी रिश्तेदार को किसी रिश्तेदार के साथ मरते नहीं पाई हूँ  अब तक .....

माता भू शैय्या
लॉकर खंगालते
बेटा बहुयें।

अंकिता कुलश्रेष्ठ :- जीजी ये तो सही है.. हर कोई निज स्वार्थ से रिश्ते बनाता है
चाहे जैसा स्वार्थ हो.. जैसे आप के साथ रिश्ता ... मुझे ऊर्जा प्रेरणा और खुशी देता है..
हुआ न मेरा स्वार्थ

विभा रानी श्रीवास्तव ;- हमारा क्या रिश्ता है इसकी कोई परिभाषा ही नहीं गढ़ सकता है
लेकिन एक दूसरे के वियोग में हम प्राण नहीं त्याग सकते हैं
पैरों में कई बन्धन हो सकते हैं न लिटिल Sis

अंकिता कुलश्रेष्ठ :- पर आप मेरे लिए अनमोल हो ... प्राण तो जिसने दिइए उसका अधिकार

विभा रानी श्रीवास्तव :- बिलकुल सही बात लिटिल Sis ..... जो सहमत नहीं उनकी अनुभूति उनके विचार
जैसे किसी का लेखन उसकी अनुभूति की अभिव्यक्ति होती है वैसे ही उस लेखन से दूसरे की सहमति या असहमति उसके खुद की अनुभूति होती है ... मैं अपनी अनुभूति में अपने कानों को शामिल नहीं करती हूँ

प्रश्न :- किसी के अनुभूति का दायरा कितना होता है ?

उत्तर :- श्री उमेश मौर्य जी :- व्यक्ति की परिस्थिति, पर्यावरण, चिंतन, और उसके पूर्व (अच्छे व बुरे) अनुभव ही उसकी अनभूति का माध्यम बनते है |
एक ही बात अलग अलग परिस्थिति में अलग अनुभव की हो सकती है |
हम किस तरह के परिवेश, माहौल में रहते है जिससे हमारी मनः स्थित प्रभावित होती है |
और हमारे पूर्व अनुभव हमारे सामने आने वाले सभी विचारों का मूल्याकंन कर एक आधार बनाते है |


Sunday 7 August 2016

बेचारी बनी हिंदी




मेघाच्छादित
धारे युवा युवती
जींस धुंधली ।

@जींस धुंधली = यानि faded जींस यानि ब्लू जींस पे सफेद धब्बे .... फैशन

सुझाव मिला

तिर्छी नज़र -
मेरा फीका ब्लू
जीन्स आकर्षे

हाइकु और वर्ण पिरामिड विधा में काव्य लेखन में वर्ण से कमाल होता है
कोई -कोई शब्द बहुत अच्छे लगते हैं
लेकिन
वर्णों के कारण जी मसोस कर रह जाना पड़ता है

वर्ण की सुविधा के लिए
बहुत लोग हिंदी के शब्दों में से वर्ण कम कर रहे हैं
तिरछी = तिर्छी
आकर्षित = आकर्षे
मध्यान = मध्या

परिवर्तन दुनिया का नियम है
चलो मान लेती हूँ
परिवर्तन हिंदी में ही क्यों जबकि वो समृद्ध है
English में ज्यादा जरूरी नहीं है न
Man सरक के go के पास आ जाता है तो
mango हो जाता है
अच्छी बात है मुझे भी नये नये शब्दों को जानने का शौक है
English word में से भी लेटर सरका सकते हैं न
Mango = Mgo लिखते हैं

आंटी से बुआ मौसी चाची मामी
अंकल से फूफा मौसा चाचा मामा
Law लगा दो तो सारे रिश्ते अपने रूप बदल लेते है
परिवर्तन वहाँ क्यों नहीं जरूरी समझ रहे हैं लोग

हिंदी में तो बिंदी का भी महत्व है
शंकर शकर को देख लें

सब समझौता माँ ही करती है न
हिंदी भी क्या करे संस्कृत की बेटी संस्कृत से संस्कार ली
सबके परिवर्तन को अपनाते जाओ
अस्तित्व ही मिटाते जाओ


दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...