Thursday 19 January 2023

अँधेरे घर का उजाला


"किसे ढूँढ़ रहे हो?" शफ्फाक साड़ी धारण किए, सर पर आँचल को संभालती महिला ने बेहद मृदुल स्वर में पूछा।

तम्बू के शहर में एक नौजवान के आँखों में जिज्ञासा स्पष्ट रूप से छलक रही थी। संगम की रेती पर कल्पवासियों का डेरा जम चुका था। उन्हीं के दल की वो महिला लग रही थी।

"अपने जन्मदात्री को!" नम आँखों को चुराता हुआ नौजवान ने कहा।

"तुम्हारी माँ कब और कैसे बिछुड़ गयी?"

"मैंने जबसे होश संभाला तब से उन्हें ढूँढ़ ही रहा हूँ।"

"तुम्हारे पास तुम्हारी माँ की क्या निशानी है, जिसके आधार पर तुम उन्हें ढूँढ़ सकोगे?"

"मेरी माँ मुझसे छिप रही हैं तो मुझे ढूँढना उन्हें है। मैं उनकी सहायता करने का प्रयास कर रहा हूँ।"

"अर्थात...।" बेहद चौंकते हुए महिला ने पूछा।

”उनकी जब डोर कटी होगी तो उन्हें किसी छत का सहारा नहीं मिला होगा। गर्भनाल कटाते मुझे किसी को सौंप दिया या कुछ महीने अपने पास भी रखा, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन इतना जानता हूँ कि मुझसे मिलने के लिए वो भी अवश्य तड़पती होंगी।"

"कैसे इतना विश्वास करते हो?"

"मुझे जिसने पाला उसने अपनी अंतिम सांस लेते हुए कहा!"

"क्या उसने यह नहीं बताया कि तुम्हारी माँ कहाँ रहती है?"

"बदनाम गलियों का पता नहीं बताया। अपने कार्यालय से मैं छुट्टी लेकर मुंबई वाराणसी मुजफ्फरपुर कलकत्ता की बदनाम गलियों में घूम रहा हूँ।"

"बदनाम गलियों में तुम्हारी माँ मिलेगी तो क्या करोगे? दुनिया उन्हें अपवित्र मानती होगी।"

"उनके साथ रहूँगा। हमारा मकान मंदिर हो जायेगा। माँ कभी अपवित्र नहीं हो सकती।"

 "मेरे मोबाइल से गूगल ड्राइव के गैलरी का निरीक्षण कर लो...।"


Wednesday 4 January 2023

खाई से जुड़ा दो पहाड़

"जरा संभलकर! सम्मान से उठाना इन बुझे दीपों को। इन्होंने बीते रात स्व जलकर सबको प्रकाशित किया है...," बड़े-बड़े शृंगारित दीपों को निहारती मधु ने अपने सहायिका से कहा।

"और आप अपने जीवन के प्रकाश का हाल कब पता करेंगी?" मधु का ध्यान भंग करती हुई रचना ने कहा।

"अरे रचना तुम! तुम कब से खड़ी हो?" रचना को गले लगाते हुए, "तितलियों से घिरे प्रकाश के हाल का क्या पता करना?" कहा।

"अफसोस है कि इतने वर्षों से अलग रहने के बाद भी आपकी गलतफहमी दूर नहीं हुई! माना कि उनके महिला मित्रों से आप अपने रिश्ते को असुरक्षित महसूस करती थीं, लेकिन आज उनकी कोई महिला मित्र उनके साथ रहना या अपने घर ले जाना कहाँ कर रही हैं?"

"सूखे फूल पर कहाँ दिखेंगी तितलियाँ!"

"तितलियाँ नहीं दीमक कहिए, जिन्हें गुनना नहीं बस... सहायिका को जमीन खरीदकर उसपर घर बनवाकर देने के बाद वो कहती है कि क्या ईंट निकालकर खायें!"

"अपने आजीवन किराए के मकान में रहने का निर्णय रहा। जो बचा है मुझे ही संभालना होगा?"

"गाढ़े दिन दूर होंगे..!"

Sunday 1 January 2023

अंधेरा भविष्य



अभी राजा विक्रम शव को कंधे पर लादकर कुछ ही क़दम चले थे कि तभी उस शव में मौजूद बेताल ने अपनी पुरानी शर्त को दोहराते हुए राजा विक्रम को यह नयी कथा सुनाई

एक गुरु जी थे जो हमेशा एक किस्सा सुनाया करते थे कि एक आयोजन में विधा के अनेक जानकार वरिष्ठ सृजक दर्शक दीर्घा में बैठे हुए थे और मंच पर विधा से अनभिज्ञ बैठे हुए थे। विधा के लेखन को विधा से अनभिज्ञ की समीक्षा सुनकर गुरु जी बेहद व्यथित हुए थे और आयोजकों को कहा था कि "यह ठीक नहीं हुआ। विधा के लिए घातक हुआ।"

उसके बाद भी अनेक बार ऐसी परिस्थिति देखी गयी। 

अभी हाल में एक आयोजन में मंच पर छः साल के अनुभव को समेटे सत्र की अध्यक्षता करने वाली के हर रचना पर की गयी टिप्पणी पर दर्शक दीर्घा में बैठे तीस-चालीस के अनुभवी वरिष्ठ रचनाकार की पत्नी पूछ लेती "क्या यह ठीक है, क्या सही समीक्षा हो रही है?"

सत्र खत्म होने के बाद वरिष्ठ रचनाकार की पत्नी ने अनेक प्रतिभागियों से बार-बार कहा,"मेरे पति की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसलिए इन्हें राज्य सरकार की तरफ से सम्मानित किया जा रहा है। बहुत बड़ी राशि मिल रही है।"

"अब आप बताइए राजन कि आयोजक मंडली को खिले फूल की खुशबू क्यों नहीं मिल सकी?"

शर्त को भूलते हुए राजा विक्रम ने तनिक क्रोधित होते हुए कहा, "सुनो बैताल! तुम्हें शौक है मुझे तंग करने का... अनावश्यक सवाल पूछते हो जिसका ज़बाब तुम्हें पता होता..। खैर! सुनो,

 हर क्षेत्र में धंधा मुख्य हो गया है और उस क्षेत्र की मूल आत्मा गौण। इसी कारण जानकार लोग दर्शकों में बैठे मिलते हैं और तथाकथित गणमान्य मंच की शोभा खराब करते हैं।

पुस्तक छपवाना उपलब्धियों में गिना जाता है, लेकिन उसमें क्या छपा है, इसको दरकिनार कर दिया जाता है।

अब आयोजक को भी केवल चमकते हुए चीज से मतलब हो गया है। अब चमकता चीज चौबीस कैरेट का सोना है या गिलट उससे उसको कोई मतलब नहीं।"


काली घटा

“ क्या देशव्यापी ठप हो जाने जाने से निदान मिल जाता है?” रवि ने पूछा! कुछ ही दिनों पहले रवि की माँ बेहद गम्भीररूप से बीमार पड़ी थीं। कुछ दिनो...