Saturday 31 August 2019

"शमा"


"जब आने वाले पूछते थे - तबीयत खराब है क्या? आप कहते- नहीं। दरख्त अब बीज बन रहा है। एक कविता भी लिखी आपने- कल तक जो एक दरख्त था, महक, फूल और फलों वाला, आज का एक जिक्र है वह, जिंदा जिक्र है, दरख्त जब बीज बन गया है, हवा के साथ उड़ गया है, किस तरफ अब पता नहीं। उसका अहसास है मेरे साथ।
  आज फिर वो दरख्त अब बीज बन रहा है। मुझे भी उस एहसास को संजोते रहना है..., 'वन ट्रैक माइंड' वाले इंसान...," अवसर था अमृता प्रीतम के जन्मशताब्दी समारोह का एकांत दिल की बातें कहने का अवसर दे डाला।
        इमरोज को हद से ज्यादा चाहने लगी थी रौशनी.. रौशनी को लगा कि अभी उसका दायित्व है इमरोज के साथ रहना और अपना कर्तव्य निभाना... इमरोज इसकी अनुमति दे नहीं रहे थे..।
"पागल मत बनो... सरहद रक्षार्थ दिल में लगी गोली सा होता है इश्क...,"

Tuesday 27 August 2019

"खौफ"


"ओह! मुझसे अनजाने में हुई भूल, बहुत विकराल हो गई दीदी, मैं बहुत बहुत शर्मिन्दा हूँ। आप से, और सब से भी, मैं बेटे की कसम खा कर बोल रही हूँ, मैं जानबूझ ऐसी भयानक भूल कभी नहीं करती..। मेरी अज्ञानतावश की गई भूल पर दी आपको विश्वास है कि नहीं ?" प्रतिमा ने शीतल से रोते हुए कहा।
 लेखक के नाम के बिना व्हाट्सएप्प पर घूमती कहानी को अपने नाम से छपवा ली थी प्रतिमा ने। सोशल मीडिया के कारण भेद खुल गया था और असली लेखक व संपादक की नाराजगी की शिकार बन रही थी प्रतिमा।

   "बेटे की कसम खाने से बचिए।  मेरे अविश्वास का कोई कारण नहीं है। आप मुझे नहीं समझ सकी हैं! किसी को गलत मानना या उसे सजा देने की अधिकारी मैं खुद को कभी नहीं समझती हूँ, लेकिन अभी जो गलती हुई है उसका क्षमा मांगना ही उपाय है। अगर वे लोग पुलिस केस कर दिए तो परिवार की प्रतिष्ठा का क्या होगा यह सोचिए।" शीतल ने कहा जो कहानी भेजने में मध्यस्थता की थी। सम्पादक शीतल को ही जान रहे थे और उन्हें लिखित में क्षमा चाहिए थी.. जो भेजी गई।
 "जी! लेखक ने मेरा क्षमा वाला टिप्पणी सही में डिलीट कर दिया है.. जब मैं फेसबुक पर.. असली गुनहगार तो  मैं, उनकी हूँ, उनसे क्षमादान मिल गया, फिर संपादक तो मुझे जीते जी मरने जैसी सजा देने में आमादा हैं!"

 "जो हो गया उसे भूल जाइए.. आप अपनी गलती की कीमत चुका चुकी हैं... नई शुरुआत कीजिये.. इंसा और ईश के न्याय में कितना फर्क होता है... उसकी प्रतीक्षा कीजिये!"

Saturday 24 August 2019

"मोक्ष"


"कितनी शान्ति दिख रही है दादी के चेहरे पर...?" दादी को चीर निंद्रा में देख मनु ने अपने चचेरे भाई रवि से कहा।
"हाँ! भैया हाँ! कल रात ही उनके मायके से चाचा लेकर आये.. और अभी भोरे-भोरे ई..,"
          कई दिनों से मनु की दादी जिनकी उम्र लगभग सौ साल से ऊपर की हो गई थी और उन्हें अब केवल अपने बचपन की कुछ बातें याद रह गई थी ने रट लगा रखी थी कि उन्हें खेतों में अपने पिता-भाई के लिए खाना भेजना है... अच्छी बारिश होने के कारण आज-कल खेतों में बिजड़ा डाला जा रहा है। अतः घर आकर खाने की फुर्सत नहीं मिलती किसी को.. सात बहनों और चार भाइयों में सबसे बड़ी होने के नाते घर-चौके की जिम्मेदारी उन पर रही होगी...।
    उनको लगातार रटते हुए देखकर मनु के पिता अपने ममेरे भाई के लड़के को खबर करते हैं कि एक बार आकर अपनी बुआ दादी को लेकर जाएं क्यों कि यहाँ से किसी के साथ जाने के लिए तैयार नहीं हो रही हैं। भाई का पोता आता है और अपनी बुआ दादी को अपने गाँव ले जाकर घुमाकर वापस फिर पहुँचा देता है..., साथ-साथ मनु के पिता रहते हैं..।

Friday 23 August 2019

यक्ष प्रश्न

*मुरलीधर द्वापर में बड़े-बड़े लीला करने वाले।*
*कमलनाथ हर क्षण कृष्णा का साथ देने वाले।*
*सास-ननद का रूप बदल जाओ या सम्बोधन,*
*निर्गुण तुम्हें ढूंढ रहे अज्ञानी सर्वेश्वर बनने वाले।*

बीते कल गुरुवार 22 अगस्त 2019 देर रात जगी रही कि रात बारह बजे के बाद 23 अगस्त होगा और मुझे कुछ अच्छा लिखना है... (समय व्यतित करने के लिए व्हाट्सएप्प समूह/फेसबुक उत्तम सहारा) लेकिन

[22/08, 11:37 pm] गोपी उवाच :- अभी-अभी मेरी देवरानी का फोन आया , बातों-बातों में वो बता रही थी कि वो राखी में ननद के घर पर थी। कुछ दिनों के बाद भगनी का जन्मदिन था तो ठहर गई थी। उसी बीच किसी दिन शाम के नाश्ते में समोसा आया तो समोसा के साथ सबलोग कच्चा प्याज खाते हैं यह सोचकर देवरानी बारीक छोटा-छोटा प्याज काट कर ले आई.. ननद बोली कि ऐसे थोड़े काटा जाता है मैं फिर से काट कर लाती हूँ पतला ही लम्बाई में.. देवरानी बोली भी कि कट गया है तो ऐसे ही खा लेंगे लोग तो क्या हो जाएगा.. ? तो ननद दाँत पिसते हुए बोली कि आपलोगों को खाना ही बनाने में मन नहीं लगता है और ना घर ठीक रखने में.. देवरानी दुखी हुई कि एक तो ननद छोटी दूसरे उनके घर पर मेहमान थी..
[22/08, 11:42 pm] राधा रानी : ये सास ननद लोग ऐसा क्यों करते हैं समझ नीं आता🤦‍♀🤦‍♀
[22/08, 11:43 pm] गोपी : अरे! इतनी रात तक जगी हो 🤣
[22/08, 11:46 pm] राधा रानी: जी
कल सास-ससुर आ रहे हैं..
[22/08, 11:48 pm] राधा रानी : अभी सामान प्रोपर वे में सेट भी नहीं हुआ..। सोचा था दो छुट्टी में इनके साथ मिलकर मार्केट का सामान और इलेक्ट्रिसिटी वाले के काम और दूसरे कुछ काम निपट जायेंगे..।
[22/08, 11:49 pm] गोपी : "इतनी रात इसी चिंता में जगी हैं क्या... सो जाइये... समय पर सब होता रहेगा..,"
[22/08, 11:50 pm] गोपी : ना कोई अतिथि आ रहे और ना उम्र रहा ये सब सोचने के लिए
[22/08, 11:52 pm] राधा रानी : अरे दीदिया आप नहीं जानती
हर चीज को देखकर कुछ न कुछ बोलना ही होगा... पुराने जमाने वाले सास ससुर न🙊🙊
आजकल वाले सास ससुर तो कुछ न कहते उलटा लाड लड़ाते बहुओं से😊😊
[22/08, 11:55 pm] राधा रानी : एक बार प्रोपर वे में सैट हो जाते न फिर आते तो टेंशन न होती... खैर आने दीजिए घर है उनका बहुओं का तो काम ही है सुनना... दो कान इसिलिए दिये न भगवान ने🤣🤣
[22/08, 11:55 pm] गोपी : केवल पुराने ज़माने के सास-ससुर की बात नहीं है बहुये भी उसी तरह की हैं चिंता करने वाली बातें दिल पर लेने वाली... अरे बेटे के माँ-बाप हैं । बहू को इंसान नहीं समझना है , ना समझें लेकिन  बहू तो खुद को इंसान समझ ले.. ना तो वह रोबट है और ना फरिश्ता
[22/08, 11:57 pm] गोपी : साधु के तोता बन अपनी तबीयत खराब ना कर लेना.. दो कान हैं तो दो कान का पूरे अच्छे से इस्तेमाल हो.. 😜🤭
[22/08, 11:58 pm] राधा रानी: "आपकी अंतिम पंक्ति को काश वो ही लोग समझ लेते तो कितना अच्छा होता... खैर हमही खुदको समझायेंगे ये लाईन बल्कि घोटकर पीने की चेष्टा करेंगे"😄
[22/08, 11:59 pm] राधा रानी : 🤣🤣🤣🤣कोशिश तो यही रहेगी पर फितरत किधर बदलती पर कोशिश शिद्दत से जारी है फितरत बदलने की.. शुभ रात्रि..!"
मैं रात भर सोचती रही कि सच में कब से रात्रि शुभ होने लगेगी...

Monday 19 August 2019

अनाधिकार सीख

आप हजार से लाख लेकर पाठ करने वाले/वाली मंचीय कवि-कवयित्री हैं तो मैं आपको कुछ कह सकूँ इस के काबिल नहीं क्यों कि आपके वश में साहित्य सेवा तो है नहीं क्यों कि मलाई(क्रीम जो छाली से बनती है) पर पलने वालो/वालियों के पास एक-दो रचना बेची जाने योग्य ही होती है... और आयोजनकर्त्ता के पास एक-दो-तीन को बुलाने की ही हैसियत होती है आपके नाम पर उन्हें दान भी मिला होता है.. आपके नाम पर मतवाली भीड़ जुटी है... अपना-अपना दाना-पानी लेकर.. गुलशन नन्दा/रानू/अनेकानेक उपन्यासकार जयंती दिवस/मोक्ष दिवस शुरू नहीं हुआ अभी तक... अतः आप चेत नहीं सकते..

लेकिन
–आप अगर साहित्य-सेवा में रत हैं और आपको दस-बीस के संख्या के साथ सुनने वाली भीड़ जो बिना सुनाये जाएगी तो आयोजनकर्त्ताओं को चार बातें आयोजन स्थल पर ही सुनाएगी के साथ बुलाया गया है तो समय का ख्याल रखते हुए विषयों के विभिन्नताओं का भी ख्याल रखें...
–मंच संचालक महोदय यह ख्याल रखें कि वक्ता और श्रोता की भीड़ केवल आपको सुनने नहीं आई है और ना आज ही यह मौका है कि आप ग़ालिब से गुलज़ार के रचनाओं को तो सुनाए ही अंत में मैं भी महत्त्वपूर्ण साबित करें अपनी लम्बी रचना के साथ.. जबकि आप अन्य रचनाकारों को जगाते रहे हैं कि समय कम है और सुनाने वाले ज्यादा अतः छोटी रचना सुनायें... छोटी रचना सुनायें..

Sunday 18 August 2019

अनुत्तीर्ण

प्रतीक्षारत रहती है
जीवित आँखें
मन सकूँ पाए
मन प्रतीक्षारत रहता है
क्षुधा तृप्त रहे
क्षुधा से सिंधु पनाह मांगे।
तथाकथित अपनों के भरोसे
शव प्रतीक्षारत रहे..
संवेदनशील पशु भी होते हैं
आहत कर देने वाले मनु को
आहत होने वाले मनु का
कसूरवार बनना
 क्यों चयन करना पड़ता है..!
विदाई में
हमें संग यही ले जाना है
और
यही दे जाना है..
सफर अनजाना है
 फिर भी अहम है
सब बटोर लेना है

Wednesday 14 August 2019

रक्षाबंधन


थक गई गौरेया कहते-सुनते।
खिन्न है गुहार लगाते-लगाते।
थोड़ी सी जगह उसकी भी हो।
फुदकना हो सके चहकना हो।
विद्रोही हो रही नोक गड़ा रही।
धर्य रखने वालों की,
 गर्दन अकड़े धर सिकुड़े,
किसी को फर्क नहीं पड़ता है।
तब चिंतनीय विचारणीय फिजूल है।
मत उम्मीद करो
उदासी आंगन ड्योढ़ी की दूर होगी।

         "अरे!इस राग भैरवी का स्पष्ट कारण भी कुछ होगा?" सखी रंभा के काव्य को सुनकर मेनका का सवाल गूँज उठा जो थोड़ी देर पहले ही आकर भी शांति बनाए हुए थी।
"पिछले राखी के दो दिन पहले मेरे पति देव अपनी बहन के घर वापस लौटे... स्वाभाविक है बहन को अच्छा नहीं लगा होगा मुझे बोली भी तो मैं बोली ,"भाई आपके थे, आप रोक क्यों नहीं ली? ऐसा तो था नहीं कि राखी मुझसे बंधवानी थी!"
"अगले साल आप लेकर आइयेगा!"
"ठीक है।"
 "एक ही शहर में या यूँ कहो पड़ोस में मेरे भी दो भाई रहते हैं।यह जानकर कि इसबार मैं राखी में बाहर जा रही हूँ बहुत उदास हुए और पूछने भी लगे कि "ऐसी क्या बात हो गई कि राखी के ठीक दो दिन पहले हमें छोड़ कर जा रही हो?
 खैर! हमलोग रक्षाबंधन के तीन दिन पहले हजारों किलोमीटर दूर अपने बेटे के घर में आ गए, उसी शहर में ननद का भी घर है। रक्षाबंधन के दो दिन पहले मेरी ननद फोन कर बोली कि हमलोग पहाड़ों पर घूमने जा रहे हैं , सुबह ग्यारह बजे जाना है आपलोग एक दिन पहले ही शाम में आ जाइये कि सुबह राखी बाँधना जल्दी हो जाये (दोनों के घर की दूरी 2 ढ़ाई घण्टे का है)... औपचारिक रिश्ता..., मैं आने से इंकार कर दी।"
"यानी स्वाभिमान पर ज्यादा चोट हो तो अभिमानी बना देता है!" मेनका का स्वर दुख प्रकट कर रहा था।
"आप आने से इंकार की तो हम अपना पहाड़ों के सैर को स्थगित कर आपको लेने आये हैं! बिन भाभी कैसे फैले घर में उजियारा...!" दोनों सखियों को अचंभित करता ना जाने कब से आई ननद का स्वर खुशियाँ बिखेर गया।

Sunday 11 August 2019

अनुत्तरित


दिवसाद्यन्त सवाल बेधता है
चुप्पी उकबुलाहट सालता है
तू तड़ाक तड़ाग करता नहीं
कोई निदान नहीं मिलता है
मिट्टी ज्यादा सहती है या चाक?
भट्टी में कलश को
होना चाहिए दर्प ज्यादा
रंग दिए जाने का प्रकल्प ज्यादा
नासूर मत पलने तो गहरा इतना
तम गहन होता दर्द सहरा इतना

परस्पर प्यार इश्क मोहब्बत विश्वास
सबमें का कोई-न-कोई आधा वर्ण
एहसास कराता है मुकम्मल नहीं है

क्या पहचान लेना इतना आसान है
हर पल तो सब बदल जाता है
बदल जाती है इच्छाएं परिस्थति बदलते
तब तक साथ कौन निभाता है
जब तक स्वार्थ नहीं सधता है
बस सोच में अटकता है

Wednesday 7 August 2019

"भूल सुधार"



 दिल्ली निवासी कद्दावर नेता को शेख उल आलम(श्रीनगर) एयरपोर्ट पर पत्रकारों की मंडली घेरकर खड़ी थी.. किसी पत्रकार ने पूछा,-"आप यहाँ जमीन खरीदने आये थे क्या मामला (डील) तय हो गया?"
"जो पड़ोसी होने वाला था वह क्या सोच रहा यह भी तो पता कर लूँ.. इस इरादे से उससे बात करने गया...,"
"फिर क्या हुआ?" सबकी उत्सुकता चरम सीमा पर, सब चौकन्ने हो गए।
"बात-चीत के क्रम में, अपना शहर तो रास नहीं आया... उस समाज के लिए कभी कुछ किया नहीं... जो अपनों के बीच नहीं रहना चाहता, वह अजनबियों के बीच रहेगा..  उनके मुख से सुन और भाषा-बोली, खान-पान, चरित्र- व्यक्तित्व से डरे-सहमे के बगल में रहने का इरादा बदल दिया।" हवाई जहाज के उड़ने की घोषणा हो रही थी नेता जी के घर वापसी  के लिए और सामने न्यूज चैनल पर जन-जन प्रिय प्रत्येक दिलवासी नेत्री के मोक्ष की खबरें आ रही थी..


Thursday 1 August 2019

सजग हम


"आयाम" – साहित्य का स्त्री स्वर
आयाम = अधिकतम सीमा/विस्तीर्णता

"लेख्य-मंजूषा"~लेख्य=लेखन योग्य
ऐसी पेटी जिसमें अनर्थक कुछ भी नहीं

लगभग 145-146 प्रेमचंद की कहानियों में से कुछ न कुछ कहानियाँ सबके_जीवन को प्रभावित करती रही है... हर मौके पर, दैनिक कार्यकलापों पर उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत कर दी जाती है.. बड़े घर की बेटी सच लिख दे–समुन्दर में आग लग जाये

ना यह मुश्किल है ना मुश्किल वह है।
त्यागना अहम-वहम व होना प्रसह है।
गर्दन अपनी सर अपना पूरा हर सपना,
जीना चाहूँ मरने के बाद कर्म का गह है।

प्रसह= नीलकंठ
गह = हथियार

कल 31 जुलाई 2019 कथा-सम्राट प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर साहित्य का स्त्री स्वर 'आयाम' द्वारा 'लेख्य-मंजूषा' के सहयोग से पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान की अध्यक्षता में हुए एक महती आयोजन में लखनऊ से आईं हिंदी की सुप्रसिद्ध उपन्यासकार और कथाकार रजनी गुप्त ने अपनी कहानी 'पगडंडियों पर साथ साथ' का पाठ किया। शहरी, विशेषकर कामकाजी स्त्रियों की स्वातंत्र्यचेतना, उनके सपनों और संघर्षों को बेहतरीन अभिव्यक्ति देने वाली रजनी गुप्त का शुमार स्त्री विमर्श की प्रमुख लेखिकाओं में होता है। कहानी-पाठ के बाद उस पर चर्चा का लंबा सिलसिला चला जिसमें पटना के कई प्रमुख लेखकों और लेखिकाओं ने अपने विचार व्यक्त किए।

पहली बार बिहार आई सम्पादक उपन्यासकार कथाकार रजनी गुप्त जी (गोमतीनगर/लखनऊ) का हार्दिक स्वागत और अभिनंदन !

साहित्य और समाज हित में जो उचित हो, हमारा वो कर्म हो
आवाज दो–हम एक हैं

बलात्कार के खिलाफ कड़ी सजा की मांग करने भी हम कल शाम में जुटे
समाज कब बदलेगा समझ के बाहर

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...