Sunday 18 August 2019

अनुत्तीर्ण

प्रतीक्षारत रहती है
जीवित आँखें
मन सकूँ पाए
मन प्रतीक्षारत रहता है
क्षुधा तृप्त रहे
क्षुधा से सिंधु पनाह मांगे।
तथाकथित अपनों के भरोसे
शव प्रतीक्षारत रहे..
संवेदनशील पशु भी होते हैं
आहत कर देने वाले मनु को
आहत होने वाले मनु का
कसूरवार बनना
 क्यों चयन करना पड़ता है..!
विदाई में
हमें संग यही ले जाना है
और
यही दे जाना है..
सफर अनजाना है
 फिर भी अहम है
सब बटोर लेना है

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 18 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद

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    1. सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना

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  2. बेहतरीन सृजन दी जी
    सादर

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    1. सस्नेहाशीष संग शुक्रिया बहना

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 01 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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मनाजीताभ

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