दिवसाद्यन्त सवाल बेधता है
चुप्पी उकबुलाहट सालता है
तू तड़ाक तड़ाग करता नहीं
कोई निदान नहीं मिलता है
मिट्टी ज्यादा सहती है या चाक?
भट्टी में कलश को
होना चाहिए दर्प ज्यादा
रंग दिए जाने का प्रकल्प ज्यादा
नासूर मत पलने तो गहरा इतना
तम गहन होता दर्द सहरा इतना
परस्पर प्यार इश्क मोहब्बत विश्वास
सबमें का कोई-न-कोई आधा वर्ण
एहसास कराता है मुकम्मल नहीं है
क्या पहचान लेना इतना आसान हैहर पल तो सब बदल जाता है
बदल जाती है इच्छाएं परिस्थति बदलते
तब तक साथ कौन निभाता है
जब तक स्वार्थ नहीं सधता है
बस सोच में अटकता है
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-08-2019) को "बने ये दुनिया सबसे प्यारी " (चर्चा अंक- 3425) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हार्दिक आभार बहना
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