“हाइकु
की तरह अनुभव के एक क्षण को वर्तमान काल में दर्शाया गया चित्र लघुकथा है।”
यों तो किसी भी विधा को ठीक-ठीक परिभाषित
करना कठिन ही नहीं लगभग असंभव होता है,
कारण साहित्य गणित नहीं है,
जिसकी परिभाषाएं,
सूत्र आदि स्थायी होते हैं। साहित्य की विधाओं को परिभाषा स्वरूप दी गयी टिप्पणियों से विधा के अनुशासन तक पहुँचा जा सकता है किन्तु उसे उसके स्वरूप के अनुसार हू-ब-हू परिभाषित नहीं
किया जा सकता। लघुकथा भी इस तथ्य से भिन्न नहीं है।
इसका कारण यह है कि साहित्य की कोई भी विधा हो समयानुसार उसमें परिवर्त्तन होते रहते हैं,
यह परिवर्तन विधा के प्रत्येक पक्ष के स्तर पर होते हैं। लघुकथा की भी यही स्थिति है। फिर भी लघुकथा के अनुशासन तक पहुँचने हेतु अनेक विद्वानों ने इसे परिभाषित करने का सद्प्रयास किया है जिनमें सर्वप्रथम इसे परिभाषित करने का प्रयास किया वह हैं बुद्धिनाथ झा 'कैरव' जिन्होंने अपनी पुस्तक 'साहित्य
साधना की पृष्ठभूमि'
के पृष्ठ 267 पर न मात्र 'लघुकथा' शब्द का प्रयोग किया
अपितु उसे इस प्रकार परिभाषित भी किया,- "संभवत: लघुकथा शब्द अंग्रेजी के 'शॉट
स्टोरी'
शब्द का अनुवाद है।
'लघुकथा'
और कहानी में कोई तात्विक अंतर नहीं है। यह लम्बी कहानी का संक्षिप्त रूप नहीं है। लघुकथा का विकास दृष्टान्तों के रूप में हुआ। ऐसे दृष्टान्त नैतिक और धार्मिक क्षेत्रों से प्राप्त हुए। 'ईसप
की कहानियों',
'पंचतंत्र की कथाएँ',
'महाभारत',
'बाइबिल'
जातक आदि कथाएं इसी के रूप में हैं।“
आधुनिक कहानी के संदर्भ में 'लघुकथा' का अपना स्वतंत्र महत्त्व एवं अस्तित्व है। जीवन की उत्तरोत्तर द्रुतगामिता और संघर्ष के फलस्वरूप इसकी अभिव्यक्ति की संक्षिप्तता ने आज कहानी के क्षेत्र में लघुकथाओं को अत्यधिक प्रगति दी है। रचना और दृष्टि से लघुकथा में भावनाओं का उतना महत्त्व नहीं है।
1958
ई. में लक्ष्मीनारायण लाल ने बुद्धिनाथ झा 'कैरव' द्वारा दी गई लघुकथा की परिभाषा को ही लगभग हू-ब-हू हिन्दी साहित्य-कोश(भाग-1) पृष्ठ
740 पर उतार दिया था। यहाँ यह बताना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि 'लघुकथा' नाम 'छोटी
कहानी',
'मिनी कहानी',
'लघु कहानी'
आदि नामों के बाद ही रूढ़ हुआ। लघुकथा को यों तो शब्दकोश के अनुसार स्टोरिएट (storiette) एवं उर्दू में 'अफसांचा' कहा जाता है। किन्तु ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी,
लंदन में डॉ. इला ओलेरिया शर्मा द्वारा प्रस्तुत शोध प्रबंध 'द लघुकथा ए हिस्टोरिकल एंड लिटरेरी एनालायसिस ऑफ ए मॉर्डन हिन्दी पोजजेनर'(he
Laghukatha , A Historical and Literary Analysis of a modern Hindi Prose Genre')
में उन्होंने लघुकथा को storiette न लिखकर 'लघुकथा'
(Laghukatha) ही लिखा है। अतः हमें यह मान लेने में अब कोई असुविधा नहीं है कि जिसे हम लघुकथा कहते हैं वह अंग्रेजी में लघुकथा ही है और storiette से मतलब छोटी कहानी आदि हो सकता है। खैर...
लघुकथा को यों तो अनेक लेखकों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित करने का प्रयास किया है किन्तु मैं जिन परिभाषाओं को वर्त्तमान लघुकथा के करीब पाती हूँ उन्हें यहाँ उद्धृत करना चाहती हूँ–
पृथ्वीराज
अरोड़ा के शब्दों में–"प्रामाणिक अनुभूतियों पर आधारित किसी एक क्षण को सुगठित आकार के माध्यम से लिपिबद्ध किया गया प्रारूप लघुकथा है।"डॉ. माहेश्वर के शब्दों में,–"दरअसल कम–से–कम शब्दों में काफी पुरअसर ढंग से जिंदगी का एक तीखा सच कथा में ढाल दिया जाये तो वह लघुकथा कहलाएगी।"
दिनेशचन्द्र
दुबे के शब्दों में,–"जिए हुए क्षण के किसी टुकड़े को उसी प्रकार शब्दों के टुकड़े–भर में प्राण दे–देना लघुकथा है।"विक्रम सोनी के शब्दों में,–"जीवन का सही मूल्य स्थापित करने के लिए व्यक्ति और उसका परिवेश,
युगबोध को लेकर कम-से–कम और स्पष्ट सारगर्भित शब्दों में असरदार ढंग से कहने की विधा का नाम लघुकथा है।"
रामलखन सिंह के शब्दों में,–"अनुभव प्रायः घनीभूत होकर ही आते हैं और बिना पिघलाएं(डाइल्यूट किये) कहना लघुकथा है।"
वेद हिमांशु के शब्दों में,–"एक क्षण की आणविक मनःस्थिति को शाब्दिक सांकेतिकता द्वारा जो अभिव्यक्ति दी जाती है तथा जिंदगी के व्यापक कैनवास को रेखांकित करती है–लघुकथा है।"
डॉ. सतीशराज पुष्करणा के शब्दों में,–"समाज में व्याप्त विसंगतियों में किसी विसंगति को लेकर सांकेतिक भाषा-शैली में चलने वाला सारगर्भित प्रभावशाली एवं सशक्त कथ्य जब झकझोर/छटपटा देने आलू लघु आकारीय कथात्मक रचना का आकार धारण कर लेता है,
तो लघुकथा कहलाता है।" ये सारी परिभाषाएं मेरी दृष्टि से लघुकथा क्या है?
तक पहुँचाने में पर्याप्त सहायक हैं। इन परिभाषाओं के माध्यम से हम लघुकथा को पहचान सकते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि लघुकथा का उद्भव कहाँ से माना जाए?
अबतक हुए शोधों के आधार पर मैं यह कह पाने में स्वयं को सक्षम पाती हूँ कि,–"1874
ई० बिहार के सर्वप्रथम हिन्दी साप्ताहिक पत्र 'बिहार-बन्धु'
में कतिपय उपदेशात्मक लघुकथाओं का प्रकाशन हुआ था। इन लघुकथाओं के लेखक मुंशी हसन अली के जो बिहार के प्रथम हिन्दी पत्रकार थे।"(डॉ. राम निरंजन परिमलेन्दु,
बिहार के स्वतंत्रता–पूर्व हिन्दी–कहानी–साहित्य,
परिषद-पत्रिका,
स्वर्ण जयंती अंक,वर्ष:50, अंक:1–4,
अप्रैल 2010 से
मार्च 2011, बिहार–राष्ट्रभाषा–परिषद,
पटना-4, पृष्ठ
261)
1875
ई० में भारतेंदु हरिश्चंद्र का लघुकथा–संग्रह परिहासिनी प्रकाश में आया इसके पश्चात तो फिर माखनलाल चतुर्वेदी,
माधवराव सेप्ते,
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी,
छबीलेलाल गोस्वामी,
अयोध्या प्रसाद गोयलीय,
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर,
जगदीशचंद्र मिश्र,
आनंदमोहन अवस्थी,
जयशंकर प्रसाद,
प्रेमचंद,
निराला,
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री,
रामवृक्ष बेनीपुरी,
यशपाल,
विनोबा भावे,
सुदर्शन,
रामनारायण उपाध्याय,
पाण्डेय बेचन शर्मा,
उपेंद्रनाथ अश्क,
भृंग तुपकरी,
दिगम्बर झा,
रामधारी सिंह 'दिनकर', शरद कुमार मिश्र 'शरद', हजारी प्रसाद द्विवेदी,
हरिशंकर परसाई,
रावी,
श्यामानन्द शास्त्री,
शांति मेहरोत्रा,
शरद जोशी,
विष्णु प्रभाकर,
भवभूति मिश्र,
रामेश्वरनाथ तिवारी,
पूरन मुद्गल इत्यादि ने लघुकथा को अपने–अपने समय के सच को रेखांकित करते हुए लघुकथा को ठोस आधार दिया। इसके पश्चात् सातवें–आठवें दशक में डॉ. सतीश दुबे,
डॉ. कृष्ण कमलेश,
डॉ. शंकर पुणतांबेकर,
भगीरथ,
जगदीश,
कश्यप,
महावीर प्रसाद जैन,
पृथ्वीराज अरोड़ा,
रमेश बत्तरा,
बलराम,
डॉ. सतीशराज पुष्करणा,
बलराम अग्रवाल,
डॉ. कमल चोपड़ा,
डॉ. शकुंतला किरण,
विक्रम सोनी,
सुकेश साहनी,
अंजना अनिल,
नीलम जैन,
सतीश राठी,
मधुदीप,
मधुकांत,
अनिल शूर, चित्रा
मुद्गल,
अशोक वर्मा,
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु,
रूपदेवगुण,
राजकुमार निजात,
रामकुमार घोटड़,
महेंद्र सिंह महलान,
सुभाष नीरव इत्यादि ने इसे आधुनिक स्वरूप देकर साहित्य जगत् में समुचित प्रतिष्ठा दिलाते हुए विधिवत् विधा का स्थान दिलाया।
लघुकथा के लिए आठवां दशक बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहा है। इस दशक में अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया जिनमें सारिका,
तारिका,
शुभ तारिका,
समग्र,
वीणा,
मिनियुग,
प्रगतिशील समाज,
नालंदा दर्पण,
दीपशिखा,
अंतयात्रा,
कहानीकार,
प्रयास,
दीपशिखा लघुकथा,
विवेकानंद बाल सन्देश इत्यादि प्रमुख हैं। इसी काल में 'गुफाओं
से मैदान की ओर'(सं० भगीरथ एवं रमेश जैन), 'श्रेष्ठ
लघुकथाएं'(सं० शंकर पुणतांबेकर’, ‘समान्तर लघुकथाएं'(सं०नरेंद्र मौर्य एवं नर्मदा प्रसाद उपाध्याय),'छोटी–बड़ी बातें'(सं०महावीर प्रसाद जैन एवं जगदीश कश्यप),'आठवें
दशक की लघकथाएँ'(सं० सतीश दूबे), 'बिखरे
संदर्भ'(सं० डॉ. सतीशराज पुष्करणा),'हालात','प्रतिवाद','अपवाद','आयुध','अपरोक्ष'(सं० कमल चोपड़ा),'हस्ताक्षर'(सं०शमीम शर्मा),'आतंक(सं० नन्दल हितैषी एवं धीरेनु शर्मा)','लघुकथा:दशा और दिशा(सं० डॉ. कृष्ण कमलेश एवं अरविंद)' इत्यादि
ने लघुकथा को साहित्य-जगत् विधा के रूप में न मात्र स्थापित कर दिया अपितु इसे पाठकों के मध्य लोकप्रिय बनाने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।इसके पश्चात
'मानचित्र',
'छोटे-छोटे सबूत',
'पत्थर से पत्थर तक',
'लावा(विक्रम सोनी)", 'चीखते स्वर(नरेंद्र प्रसाद'नवीन')',
'लघुकथा : सृजन एवं मूल्यांकन(कृष्णानन्द कृष्ण)', 'काशें', 'अक्स-दर-अक्स',
'आज के प्रतिबिंब',
'प्रत्यक्ष',
'हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ लघुकथाएं',
'तत्पश्चात',
'मंटो और उनकी लघुकथाएं',
'बिहार की हिन्दी लघुकथाएं',
'बिहार की प्रतिनिधि हिन्दी लघुकथाएं',
'कथादेश',
'दिशाएं',
'आठ कोस की यात्रा',
'तनी हुई मुट्ठियाँ',
'पड़ाव और पड़ताल के 30 खंड(सं० मधुदीप), 'जिंदगी
के आस-पास एवं पतझड़ के बाद(सं० राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु')', 'कल के लिए(सं० मिथलेश कुमारी मिश्र)', 'नई धमक(मधुदीप)', 'नई सदी की लघुकथाएं(अनिल शुर)', 'किरचों
की वीची:वक़्त की उलीची(सं० डॉ. सतीशराज पुष्करणा)', 'अभिव्यक्ति
के स्वर,
खण्ड-खण्ड जिंदगी,
यथार्थ सृजन,
मुट्ठी में आकाश:सृष्टि में प्रकाश(सं० विभा रानी श्रीवास्तव)' इत्यादि
असंख्य संकलनों ने तथा रवि यादव(रेवाड़ी/हरियाणा) द्वारा अन्य लेखकों की लघुकथा का पाठ करना लघुकथा के विकास में सहायक हुआ है। लघुकथा में एकल संग्रह भी असंख्य लोगों के आ चुके हैं इनमें प्रमुख रूप से डॉ. सतीश दुबे,
भगीरथ,
बलराम,
मधुदीप,
डॉ. सतीशराज पुष्करणा,
बलराम अग्रवाल,
कमल चोपड़ा,
जगदीश कश्यप,
विक्रम सोनी,
पारस दासोत,
मधुकांत,
राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु', डॉ. मिथलेश कुमारी मिश्र,
कमलेश भारतीय,
सतीश राठी,
विक्रम सोनी,
डॉ. स्वर्ण किरण,
सिद्धेश्वर,
तारिक असलम 'तस्लीम', अतुल मोहन प्रसाद,
सुकेश साहनी,
रूपदेव गुण,
शील कौशिक,
राजकुमार निजात,
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु,
प्रबोध कुमार गोविल,
डॉ. रामकुमार घोटड़,
अनिल शूर इत्यादि
अन्य अनेक का नाम सगर्व लिया जा सकता है।
इनके अतिरिक्त
लघुकथा कलश,
लघुकथा डॉट कॉम,
संरचना,
दृष्टि,
क्षितिज,
ललकार,
लकीरें,
काशें,
पुनः,
सानुबन्ध,
दिशा,
व्योम,
कथाबिम्ब,
भागीरथी,
अंचल,
भारती,
गंगा,
आगमन,
राही,
साहित्यकार,
क्रांतिमन्यु,
पल-प्रतिपल आदि सैकड़ों पत्रिकाओं ने भी लघुकथा के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।
लघुकथा के विकास हेतु डॉ. शकुंतला किरण,
शमीम शर्मा,
डॉ. मंजू पाठक,
डॉ. ईश्वरचंद्र,
डॉ. अमरनाथ चौधरी 'अब्ज' शंकर लाल,
डॉ. सीताराम प्रसाद आदि ने शोध प्रबंध लिखकर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है।
लघुकथा विकास
में अन्य जिन माध्यमों का योगदान रहा है उनमें सम्मेलनों एवं गोष्ठियों का बहुत महत्त्व है। लघुकथा-सम्मेलनों एवं गोष्ठियों में पटना,
फतुहा,
गया,
धनबाद,
बोकारो,
राँची,
सिरसा,
दिल्ली,
इंदौर,
बरेली,
जलगाँव,
होशंगाबाद,
नारनौल,
हिसार,
जबलपुर इत्यादि के योगदान को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता।
लघुकथा पोस्टर
प्रदर्शनियों के माध्यम से सिद्धेश्वर,
सुरेश जांगिड़ उदय इत्यादि लोगों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनके द्वारा पटना,
धनबाद,
राँची,
लखनऊ,
कैथल इत्यादि नगरों में लघुकथा पोस्टर प्रदर्शनियों लग चुकी हैं। पटना,
राँची,
धनबाद,
सिरसा,इंदौर में लघुकथा–मंचन भी हुए हैं। लघुकथा प्रतियोगिताओं एवं अनुवाद द्वारा भी सार्थक कार्य हुए हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन भी इस कार्य में पीछे नहीं रहे हैं। साक्षात्कारों–परिचर्चाओं द्वारा भी उल्लेखनीय कार्य हुए हैं।लघुकथा में समीक्षात्मक–आलोचनात्मक कार्य को जिनलोगों ने बल दिया है उनमें मधुदीप,
डॉ. सतीशराज पुष्करणा,
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु,
जितेंद्र जीतू,
डॉ. ध्रुव कुमार,
डॉ. मिथलेश कुमारी मिश्र,
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा,
सुकेश साहनी,
योगराज प्रभाकर,
रवि प्रभाकर,
बलराम अग्रवाल,
सतीश दुबे,
डॉ. शंकर पुणतांबेकर,
रमेश बतरा,
जगदीश कश्यप,
कमल चोपड़ा,
राधिका रमण अभिलाषी,
निशान्तर,
डॉ. वेद प्रकाश जुनेजा,
विक्रम सोनी,
राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु', प्रो. निशांत केतु,
डॉ. स्वर्ण किरण इत्यादि प्रमुख हैं। पड़ाव और पड़ताल के तीस खंडों में अनेक नए आलोचक भी सामने आये हैं। अनेक राज्यों में जिनमें बिहार भी की सरकारों द्वारा लघुकथा के योगदान हेतु सम्मान एवं पुरस्कार भी दिए जाते हैं। इस कार्य में देशभर में सक्रिय अनेक संस्थाएं भी सोत्साह अपने दायित्व का निर्वाह कर रही हैं।
बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश,
गुजरात संग कुछ और राज्यों की पाठ्य-पुस्तकों में भी लघुकथाएं शामिल हैं।
लघुकथा–जगत्
में आयी नयी पीढ़ी जिनमें गणेश जी बागी,
संदीप तोमर, संध्या तिवारी,
कल्पना भट्ट,
सरिता रानी,
रानी कुमारी,
वीरेंद्र भारद्वाज,
आलोक चोपड़ा,
पुष्पा जमुआर,
कांता राय,
कमल कपूर,
अंजू दुआ जैमिनी,
अनिता ललित,
अंतरा करवड़े,
अशोक दर्द,
आकांक्षा यादव,
आरती स्मित,
इंदु गुप्ता,
डॉ. लता अग्रवाल,
उमेश महादोषी,
उषा अग्रवाल 'पारस', ओम प्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश', कपिल शास्त्री,
ज्योत्स्ना कपिल,
कृष्ण कुमार यादव,
चंद्रेश कुमार छतलानी,
जगदीश राय कुलरियाँ,
जितेंद्र जीतू,
ज्योति जैन,
त्रिलोक सिंह ठकुरेला,
दीपक मशाल,
डॉ. नीरज शर्मा सुधांशु,
नीलिमा शर्मा निविया,
पंकज जोशी,
पवित्रा अग्रवाल,
पवन जैन,
पूनम डोगरा,
पूरन सिंह,
मधु जैन,
महावीर रँवाल्टा,
माला वर्मा,
मुन्नू लाल,
राधेश्याम भारतीय,
वीरेंद्र 'वीर' मेहता,
शशि बंसल,
शेख शहज़ाद उस्मानी,
शोभा रस्तोगी,
मृणाल आशुतोष,
कुमार गौरव,
सन्तोष सुपेकर,
सीमा जैन,
सुधीर द्विवेदी,
सीमा सिंह,
स्वाति तिवारी,
पूर्णिमा शर्मा,
मंजू शर्मा,
दिव्या राकेश शर्मा,
विभा रानी श्रीवास्तव इत्यादि प्रमुख हैं। इस पीढ़ी में अनन्त संभावनाएं हैं।
मुझे विश्वास है यह पीढ़ी अपने से पूर्व पीढ़ी के कार्यों को पूरी त्वरा से आगे ले
जाएगी। यह पीढ़ी भी लघुकथा के हर उस पक्ष में कार्य करेगी जिससे लघुकथा का विकास
उत्तरोत्तर पूरी त्वरा से होता जाएगा।