"अरे! यह मैं क्या सुन रही हूँ,यूएसए! तुमने घोषणा किया है कि तुम्हारे जो बच्चें विदेशों में बस रहे हैं, वे अभी वापस आ जाएं तो ठीक है, नहीं तो तुम बाद में अपने घर में प्रवेश निषेध करोगे..। अभी तुम ऐसा कैसे कर सकते हो..? तुम अपने घर में लॉकडाउन क्यों नहीं लागू कर लेते?"
"हाँ! हिन्द माते तुमने बिलकुल ठीक सुना है। हमारे घर में सोशल डिस्टेंस मेंटेन किया जा रहा है...। उड़ाने रद्द नहीं है तो अभी आ जाना सबके लिए आसान होगा...।"
"तुम समझ नहीं रहे हो.. बाहर से आने वालों की जितनी भीड़ बढ़ेगी, उतनी..."
"तुम मुझे समझाने चली हो..! तुम! पैंतालीस साल पहले तुम्हारे यहाँ एक फ़िल्म आई थी.. अच्छा-भला तो नाम था उसका,.अरे हाँ! खुशबू! तुम्हारे बच्चों को शायद याद हो...। छोड़ो जाने दो.. कहाँ याद रह जाता है अतीत.. सौ-पचास साल पुरानी बातें...। लगभग पचास साल पहले तो थे भी लगभग पचास करोड़ और आज लगभग एक सौ पचास करोड़ तुम्हारे बच्चें.. अपने घर के एक कमरे से दूसरे कमरे में नहीं जा पा रहे हैं। वैसे भी मुझे तुम्हारे घर से कुछ सीखने की जरूरत नहीं। हमारी संरचना अलग-अलग है तुम नारंगी मैं सेव ठहरा। जब देखो नारंगी के फांके बिखर जाती हैं।"
"तुमने गलत उपमा दिया यूएसए! मैं गेंदा का फूल हूँ। वैसे हमारा जीतना तुम देख ही रहे होंगे, अपने आंकड़ों से मिलान कर के।"
मौत तो मौत है आँकड़ों का खेल नहीं।
ReplyDeleteकीड़े की तरह मरते इंसानोंं की करिह महसूस करके मन रो पड़ता है देश चाहे कोई भी हो।
यह त्रासदी जल्द से जल्द समाप्त हो बस यही प्रार्थना है अब तो है न दी।
बेहतरीन सृजन
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