यूँ तो लगभग सभी पर्यटन स्थलों पर श्वेत मोती , रंगीन मोती की माला , लकड़ी के समान , चाभी रिंग , मूर्ति पत्थरों पर , चावल पर नाम लिखने वालों की एक सी भीड़ होती है... कांचीपुरम का समुंद्री तट यहाँ बसा पुराना शिव मंदिर सैलानियों के लिए मनमोहक स्थल... पूरे देश से जुटी अभियंताओं (इंजीनियर'स) की पत्नियों को घेर रखी थी छोटी-छोटी बच्चियाँ... सभी बच्चियों के दोनों हाथों गले में दर्जनों तरह-तरह की मालाएँ... मोतियों की ... स्टोन की ... उसी तरह की उनकी बातें... मानों कुशल व्यापारी हों... उनके घेरे के शोर में चलना कठिन हो रखा था....
-दूसरे जगहों पर सौ-सवा सौ से कम में नहीं मिलेगी आँटी जी मैं नब्बे इच में दे रही हूँ...
-सुबे से घूम रही रात हो रही इक भी खरीद लो बहुत तेज़ भूख लगी है...
-दुआओं का असर होगा आपलोग आख़री उम्मीद हो...
दस मिनट के शोर में मोल तोल(बार्गेनिंग) के बाद 10-10₹ में पटा और श्रीमती की मंडली 10-10 माला खरीद कर गाड़ी में बैठीं
एक ने पूछा क्या करेंगी इतनी मालाएँ
-अरे सौ रुपये की ही तो ली है... किसी को देने लेने में काम आ जायेंगे
-दस रुपये की माला पहनेगा कौन
-कन्याओं को पूजन में देने के काम आ जाएंगी..
-काम वाली को देने से बाहर का तौहफा हो जाएगा
-हाँ! उन्हें दाम भी कहाँ पता होगा
-इतना सस्ता मिलता भी कहाँ
-अभी अंधेरा घिर जाने से और समय समाप्त होने से उनकी बिक्री कहाँ होने वाली थी
-लाचारी खरीदी गई?
-मुझे तो सन्तोष है कि मैंने बच्चियों के हौसले को बढ़ावा दिया... भीख तो नहीं मांग रही सब...
-फिर मोल तोल क्यों... यही मालाएँ मॉल में होती तो...
-आपने नहीं एक भी...
-कल शायद बची मालायें सौ में दो बेच लें बच्चियां... मेरे सामने तो मॉल में टँगी मालाओं पर टँगी स्लिप घूम रही थी...