Wednesday 25 August 2021
जंग
Tuesday 24 August 2021
उऋण
"कन्यादान कौन करेगा..?" नेहा और नितिन की शादी के समय पण्डित जी ने कहा। दोनों की शादी मन्दिर में हो रही थी..।
"आप अनुमति दें तो मेरा दोस्त दीपेन कन्यादान करना चाहता है और वह अपनी पत्नी के साथ यहाँ उपस्थित भी है..। सामने आ जाओ दीपेन..," वर नितिन ने कहा।
सबके सामने दीपेन के आते ही उपस्थित लोगों में खलबली मच गयी। दबे आवाज में कानाफूसी शुरू हो गयी तथा वधू नेहा और उसकी माँ भौंचक दिख रहे थे। क्योंकि दीपेन और नेहा एक दूसरे के जेरोक्स कॉपी लग रहे थे।
"यह तुम्हारा ही अंश है देवकी... जो हमें तुम्हारे सेरोगेट मदर के रूप से दान में मिल गया था..," दीपेन की माँ यशोदा ने कहा।
स्वसा के आँसू
मौली को गीला करे
श्रावणी पूनो
पहला तारा
कौन जलाने उठे
साझे का चूल्हा!
Friday 20 August 2021
स्वाश्रय का सुख
"इस साल भी मामा दादा की कलाई सूनी रह जायेगी दादी माँ..! पिछले साल नहीं भेज पाने का कारण समझ रहा था, लेकिन इस साल भी...?" पोता सुयश ने पूछ लिया।
"राखी से भाईयों की कलाई कब से सजने लगी होगी क्या तुम मुझे इसका इतिहास बता सकते हो ?" दादी ने कहा।
"जी अवश्य! मार्च 1534 में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चितौड़ के नाराज सामंतो के कहने पर चित्तौड़ के शासक महाराणा विक्रमादित्य को कमजोर समझकर उनके राज्य पर आक्रमण कर दिया था। राजमाता कर्णावती को जब यह पता चला तो वे चिंतित हो गईं। उन्हें पता था कि उनके राज्य की रक्षा केवल हूमायूं कर सकता है। इसलिए मेवाड़ की लाज बचाने के लिए उन्होने मुगल साम्राट हुमायूं को राखी भेजी और सहायाता मांगी।
राज्य पर संकट मुसीबत से निपटने के लिए कर्णावती ने सेठ पद्मशाह के हाथों हुमायूं को राखी भेजी थी। राखी के साथ कर्णावती ने एक संदेश भी भेजा था। उन्होंने सहायता का अनुरोध करते कहा था कि मैं आपको भाई मानकर ये राखी भेज रही हूँ।..,"
"हुन्ह्ह्! मेवाड़ की लाज बचाने के लिए...। आज चार सौ सत्तासी साल के बाद भी कन्याओं की लाज बचाने की गुहार जारी है..।" सुयश की बात पूरी होने के पहले ही दादी ने कहा।
"इससे और आपके राखी नहीं भेजने में क्या सम्बंध है दादी माँ?" सुयश ने कहा
"उन्हें मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त करने का संदेश भेज रही हूँ!मेरी माँ अपने भाई को राखी कभी नहीं बाँधा। पण्डित जी से राखी लेकर अपने सिंहोरा में लपेट दिया करती थीं। सुयश तुम मेरा साथ देना ...!"
"जी अवश्य दादी माँ!" सुयश ने कहा
"जब तक हुमायूं अपनी सेना लेकर मेवाड़ पहुँचे, रानी कर्णावती का जौहर हो चुका था। आज तक कन्याओं का गुहार लगाना जारी है। इस साल से मैं भी भैया को राखी नहीं बाँधूगी...!" पोती सुमन का दृढ़ निश्चयी स्वर गूँजा।
"स्त्रियों को वल्लरी बनने के नसीब को बदलकर बरगद बनना तय करना होगा...।" पोता-पोती को अपने बाँहों में समेटते हुए दादी ने कहा।
Tuesday 17 August 2021
"सुरक्षा कवच"
"तुम मेरे पैंट के पॉकेट से रुपया निकाली हो क्या?" श्यामलाल ने अपनी पत्नी रुक्मिणी से पूछा।
'अन्त भला तो...'
"नमस्ते आँटी जी!"
मैं बुटीक में अपने कपड़े पसन्द कर रही थी कि लगा किसी ने मुझे ही सम्बोधित किया है। आवाज की दिशा में देखा तो एक प्यारी सी युवती मुझे देखकर दोनों हाथ जोड़कर मुस्कुरा रही थी। लेकिन उसकी मुस्कान और आँखें निश्चेत लगीं।
"खुश रहो सुमन! कैसी हो और क्या कर रही हो आजकल?" मैंने पूछा।
"ठीक हूँ आँटी जी। अभी कुछ नहीं कर रही हूँ।" सुमन ने कहा। उसकी आँखें नम हो रही थीं।
"अब अपने माता पिता को रजामंदी दे दो कि वे तुम्हारी शादी कर दें।"
".....!" सुमन की चुप्पी 'कोई रहस्य है' उगल रही थी।
"आपके सिखाये कटाई और सिलाई और बैंक से आपके ही मदद से मिल गए कर्ज से सुमन ने अपना दूकान खोल ली थी...।"
कुछ वर्ष पहले मैं मुफ्त में कढ़ाई, सिलाई , स्टोन से ज्वेलरी बनाना सिखाया करती थी। उसी दौरान अपने कुछ सहेलियों के संग सुमन मेरे पास सीखने आया करती थी... ।
अचानक एक दिन वह मुझसे बोली कि "आँटी जी! मेरी शादी तय हो गयी है। कल से मैं नहीं आऊँगी।"
"शादी! तुम्हारी शादी.. अभी तो तुम सातवीं में पढ़ रही हो। कोई कैसे कर सकता है तुम्हारी शादी? 18 साल से कम उम्र की कन्या की शादी करना गलत है। सबको सज़ा हो जाएगी।"
"आँटी जी! इस राज्य में शराब बन्दी है..। मेरे गाँव में चलकर देखिए हर दूसरे घर में शराब बनता है।" सुमन ने कहा।
दूसरे दिन सुमन नहीं आयी। मैं उसकी सहेली के संग उसके घर जाकर उसके माता-पिता को समझाने की कोशिश की तो पता चला कि उसके दादा अपनी पोती की शादी करना चाहते हैं ।
मैं दादा को समझाने का प्रयास की कि "कच्ची उम्र में विवाह के कारण लड़कियों को हिंसा, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का अधिक सामना करना पड़ता है। लड़के और लड़कियों दोनों पर शारीरिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है...।
वैदिक काल में बाल विवाह का कोई संकेत नहीं मिलता हैं... मध्यकाल के आते-आते जब भारत बाहरी आक्रमणों को झेल रहा था तब बेटियों को विदेशी शासक भोग की वस्तु समझकर अपहरण कर ले जाते तथा उनके साथ सम्बन्ध बना लेते थे... इसी दौर में रोटी-बेटी की कुप्रथा का प्रचलन हो गया..। छोटी उम्र में विवाह हो जाने के कारण दहेज भी कम देना पड़ता था... , आपके साथ तो ऐसी कोई समस्या नहीं। मेरी बात नहीं मानेंगे तो मैं केस दर्ज कर गवाह बनूँगी...।" उस समय शादी टल गयी... ।
"पिछले साल सुमन की शादी हुई और शादी के कुछ दिनों के बाद ही विधवा हो गयी। ससुराल से अपशगुनी बना बेदखल कर दी गयी..," सुमन की सहेली बता रही थी।
मैं अमेरिका छः महीने के लिए गयी थी लेकिन वैश्विक युद्ध के कारण पटना वापिस आने में पन्द्रह महीने गुजर गए ...। यहाँ मेरी जिम्मेदारी प्रतीक्षा कर रही थी। मैं सुमन के साथ उसके घर गयी उसके माता-पिता से मिलने। इस बार दादा की जगह पिता अड़ियल लग रहे थे। मैं उनको समझाने का प्रयास किया कि, "विद्यासागर को ग़रीब और आम विधवाओं की व्यथाओं ने प्रभावित किया और उन्होंने इस कुरीति के खिलाफ़ जंग छेड़ दी। इसके लिए उन्होंने संस्कृत कॉलेज के अपने दफ़्तर में न जाने कितने दिन-रात बिना सोये निकाले ताकि वे शास्त्रों में विधवा-विवाह के समर्थन में कुछ ढूंढ सके।
आख़िरकार उन्हें ‘पराशर संहिता’ में वह तर्क मिला जो कहता था कि ‘विधवा-विवाह धर्मवैधानिक है’! इसी तर्क के आधार पर उन्होंने हिन्दू विधवा-पुनर्विवाह एक्ट की नींव रखी। 19 जुलाई 1856 को यह कानून पास हुआ और 7 दिसंबर 1856 को देश का पहला कानूनन और विधिवत विधवा-विवाह हुआ। कहा जाता है कि जिन भी विधवा लड़कियों की शादी वे करवाते थे, फेरों की साड़ी भी वही उपहार स्वरुप देते थे।
बताया जाता है कि शांतिपुर के साड़ी बुनकरों ने विद्यासागर के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने के लिए साड़ियों पर बंगाली में कविता बुनना शुरू किया था,
“बेचे थाको विद्यासागर चिरजीबी होए”
(जीते रहो विद्यासागर, चिरंजीवी हो! )
भले ही, इतिहास इस विधवा-पुनर्विवाह पर मौन रहा लेकिन यह शादी पूरे भारत की महिलाओं के उत्थान के लिए एक क्रांतिकारी कदम था। उन क्रांतिकारी कदम के पदचिन्हों पर आप अपने कदम बढ़ाएं और सुमन की पुर्नविवाह करने का प्रयास करें...।"
"सुमन के किस्मत में विवाह का सुख लिखा होता तो यह विधवा ही नहीं होती...," सुमन के माता-पिता एक ही बात तोता की तरह रट रहे थे...।
मैं भी ठान ली कि सुमन को मुरझाने नहीं देना है...और मैं भी लगातार तरह-तरह की दलीलें देती रही और किरण फूटने के साथ सुमन के पुर्नविवाह का निर्णय नया उजाला फैला गया।
पत्थर भले आखरी चोट से टूटता है... परन्तु पहली चोट कभी व्यर्थ नहीं जाती है...।
Friday 6 August 2021
सहभागिता
विद्यालय से लौटी बिटिया को सजाने-सँवारने के लिए हरी चूड़ी, हरा रिबन, हरी बिन्दी, हरा फ्रॉक लेकर बैठी लक्ष्मी बार-बार अपनी मुनिया को पुकार रही थी। मुनिया होमवर्क करने में उलझी हुई बार-बार, "आई माँ! आई माँ!" कहती हुई आखिर में आ गयी।
"यह समान कहाँ से आया माँ?" मुनिया ने कहा।
"आज मुझे मजदूरी ज्यादा देर की मिली मुनिया।" माँ लक्ष्मी ने कहा।
"मेरे पास किताब नहीं होने की वजह से मुझे कक्षा के बाहर धूप-बारिश में खड़ा रहना पड़ा माँ..! सियार के बियाह का आनन्द ली..!"
"आज के बाद कक्षा में केवल पढ़ाई करना मुनिया। ले मैं तेरा किताब लेकर आया हूँ।" मुनिया का पिता ने कहा।
Wednesday 4 August 2021
बिना_वर्दी_का_योद्धा
"मुझे नहीं पता था कि मेरे घर में भी विभीषण पैदा हो गया है..," सलाखों के पीछे से गुर्राता हुआ पिता अपने बेटे का गर्दन पकड़े चिल्ला रहा था।
"बड़े निर्लज्ज पिता हो। जिस पुत्र पर गर्व होना चाहिए उसको तुम मार देना चाहते हो...," पिता के हाथों से पुत्र का गर्दन छुड़ाता हुआ पुलिसकर्मी ने कहा।
"क्या करता मैं .. आप माँ की विनती सुने नहीं उलटा उन्हें कमरे में कैद कर दिया और कांवड़ियों की टोली बनाकर जल उठाने चले गए।"
"सावन में जलाभिषेक करना हम हिन्दुओं का धर्म भी है और अधिकार भी।" पिता पुनः चिल्लाया।
"और इस वैश्विक युद्ध में समाज हित के लिए सरकार द्वारा बनाई गई नीति...? क्या सीमा पर लड़ रहे फौजी का ही दायित्व है...?" पुत्र ने कहा।
"तुम्हें और तुम्हारे साथियों को तो जो सजा होगी सो होगी..., तुम्हारे पोशाक बनाने वालों का बेड़ा गर्क हो गया।" पुलिसकर्मियों के ठहाके गूँजने लगे। □
काली घटा
“ क्या देशव्यापी ठप हो जाने जाने से निदान मिल जाता है?” रवि ने पूछा! कुछ ही दिनों पहले रवि की माँ बेहद गम्भीररूप से बीमार पड़ी थीं। कुछ दिनो...
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“हाइकु की तरह अनुभव के एक क्षण को वर्तमान काल में दर्शाया गया चित्र लघुकथा है।” यों तो किसी भी विधा को ठीक - ठीक परिभाषित करना ...
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अन्य के कार्य देखकर पीड़ित होना छोड़ दिया... कुछ पल का बचत.. एक वक्त में एक कार्य तो इश्क करना आसान किया लाल घेरे में गूढ़ाक्षरों को करे हिन...