"इस साल भी मामा दादा की कलाई सूनी रह जायेगी दादी माँ..! पिछले साल नहीं भेज पाने का कारण समझ रहा था, लेकिन इस साल भी...?" पोता सुयश ने पूछ लिया।
"राखी से भाईयों की कलाई कब से सजने लगी होगी क्या तुम मुझे इसका इतिहास बता सकते हो ?" दादी ने कहा।
"जी अवश्य! मार्च 1534 में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चितौड़ के नाराज सामंतो के कहने पर चित्तौड़ के शासक महाराणा विक्रमादित्य को कमजोर समझकर उनके राज्य पर आक्रमण कर दिया था। राजमाता कर्णावती को जब यह पता चला तो वे चिंतित हो गईं। उन्हें पता था कि उनके राज्य की रक्षा केवल हूमायूं कर सकता है। इसलिए मेवाड़ की लाज बचाने के लिए उन्होने मुगल साम्राट हुमायूं को राखी भेजी और सहायाता मांगी।
राज्य पर संकट मुसीबत से निपटने के लिए कर्णावती ने सेठ पद्मशाह के हाथों हुमायूं को राखी भेजी थी। राखी के साथ कर्णावती ने एक संदेश भी भेजा था। उन्होंने सहायता का अनुरोध करते कहा था कि मैं आपको भाई मानकर ये राखी भेज रही हूँ।..,"
"हुन्ह्ह्! मेवाड़ की लाज बचाने के लिए...। आज चार सौ सत्तासी साल के बाद भी कन्याओं की लाज बचाने की गुहार जारी है..।" सुयश की बात पूरी होने के पहले ही दादी ने कहा।
"इससे और आपके राखी नहीं भेजने में क्या सम्बंध है दादी माँ?" सुयश ने कहा
"उन्हें मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त करने का संदेश भेज रही हूँ!मेरी माँ अपने भाई को राखी कभी नहीं बाँधा। पण्डित जी से राखी लेकर अपने सिंहोरा में लपेट दिया करती थीं। सुयश तुम मेरा साथ देना ...!"
"जी अवश्य दादी माँ!" सुयश ने कहा
"जब तक हुमायूं अपनी सेना लेकर मेवाड़ पहुँचे, रानी कर्णावती का जौहर हो चुका था। आज तक कन्याओं का गुहार लगाना जारी है। इस साल से मैं भी भैया को राखी नहीं बाँधूगी...!" पोती सुमन का दृढ़ निश्चयी स्वर गूँजा।
"स्त्रियों को वल्लरी बनने के नसीब को बदलकर बरगद बनना तय करना होगा...।" पोता-पोती को अपने बाँहों में समेटते हुए दादी ने कहा।
असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteपोता पोती दादा दादी और सम्प्रेषण बना रहे सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसुंदर भावों का अनूठा सृजन ।
ReplyDeleteसच लाजवाब एहसास।
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