"तुम मेरे पैंट के पॉकेट से रुपया निकाली हो क्या?" श्यामलाल ने अपनी पत्नी रुक्मिणी से पूछा।
"नहीं तो ! क्यों कितना निकला हुआ है?" रुक्मणी ने सवाल किया ।
"कुछ खुदरा निकला हुआ है। और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है।" श्यामलाल ने कहा।
"मैंने मना किया था कि बच्चों का नामांकन अंग्रेजी स्कूल में नहीं करवाइए...। उड़ती-उड़ती कई खबरें फैली हुई हैं।" रुक्मणी ने कहा।
"मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और मैकोले का प्रसिद्ध मुहावरा बना, कि 'जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी..।" रुक्मणी ने पुनः कहा।
शाम में जब श्यामलाल अपने दोनों बच्चे जो नौंवी और दसवीं के विद्यार्थी थे को पढ़ाने बैठे तो गाँधी जी का बीड़ी पीने की लत के कारण नौकर की जेब में पड़े दो-चार पैसों में से एकाध पैसा चुरा लेने की आदत और उस लत और आदत के कारण आत्महत्या करने का फैसला करने। पर आत्महत्या कैसे करें? अगर तुरन्त ही मृत्यु न हुई तो क्या होगा? मरने से लाभ क्या? क्यों न ये सब सह ही लिया जाए? ऐसे उलझनों में फँस कर फिर बीड़ी पीना छोड़ देना। यानि नौकर के पैसे चुराकर बीड़ी खरीदने और फूंकने की आदत भूल गए वाले प्रसंग को पढ़ने के लिए कहा।
रात्रि भोजन के बाद श्यामलाल जब सोने गए उन्हें अपने बिस्तर पर एक चिट्ठी मिली..,
पूज्य पिता जी
मैं बेहद शर्मिन्दा हूँ। आज आपको मेरी वजह से लज्जित होना पड़ा। आगे प्रयास करूँगा कि ऐसा मौका दोबारा ना आये। आप आम का वृक्ष लगा रहे हैं , आपको बबूल का काँटा ना मिले। भविष्य में शायद गर्व करने लायक पुत्र बन सकूँ। तब आप मुझे क्षमा कर देंगे न?
आपका अपराधी
उन्होंने चिट्ठी पढ़ी। आँखों से निकली धारा से चिट्ठी भीग गई। उन्होंने क्षणभर के लिए आँखें मूंदी, चिट्ठी फाड़ डाली और देर रात बच्चों के सर को सहलाकर अपने कमरे में आकर चैन से सो गए। अब वे बच्चों के प्रति आश्वस्त लग रहे थे।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअसीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
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