“बड़े मामा! बड़े मामा! बुआ नानी बता रही थीं कि मझले नाना कुँआ में घुसकर नहाते थे! इस कुँआ को देखकर तो ऐसा नहीं लगता इसमें कभी पानी भी रहा होगा…!”
“तुम्हारी बुआ नानी बिलकुल सही कह रही थीं। उनके पास बढ़ते उम्र के खजाने में वर्षों का अनुभव संजोया हुआ है…। पापा और मझले चाचा का कुँआ के अन्दर जाकर नहाने-झगड़ा करने का किस्सा प्रसिद्ध है। जब तक चापाकल नहीं आया था तब तक कुँआ का ही पानी भोजन बनाने और पीने में प्रयोग होता था।”
“चापाकल की तस्वीर माँ ने दिखलायी! नहाने के दौरान मझले नाना की मौत जिस नहर में डूब कर हुई उसे देखकर अब कोई विश्वास ही नहीं करेगा कि उसमें कभी पानी रहा होगा. . .!”
“मेरी नानी की माँ एक बोली की ज्ञाता थीं! उस बोली को संरक्षित नहीं किए जाने से उनके साथ उनकी बोली लुप्त हो गई…! एक दिन ऐसा न हो कि धरती से पानी भी लुप्त हो जाये. . .! और जलरोधक पात्र में जल भरकर जमीन में दबाना पड़ जाए. . .!”
“नहीं! नहीं! ऐसा नहीं होगा बड़े मामा. . .! आप ही तो अक्सर कहते हैं, ‘जब जागो तभी सवेरा’! कोशिश करते हैं अभी से जागने-जगाने हेतु. . .!”
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पुनः वे जागे
दोपहरी की रात
पूर्ण ग्रहण
सूरज जन्मा तो है :) और उसके 12 भी बजे हुए हैं एक दशक से जियादा हो गया अब तो पानी पानी होना ही होगा
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
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