Monday, 30 June 2025

आषाढ़ का एक दिन




“बुधौल लाने के लिए आपको हमारी ही टोली मिली थी, सब की सब गऊ, हमें बुद्धू बनाने की क्या आवश्यकता थी…?”

 “यहाँ आपको क्या पसन्द नहीं आया?”

 “अच्छा प्रश्न है…! दो दिनों पहले ब्याह-बहू भोज वाले स्थल पर हो रहे साहित्यिक कार्यक्रम में हम इसलिए शामिल नहीं हुए कि गरिमामयी अनुभूति नहीं हो पाएगी… और महाविद्यालय के सभागार को सपनों में बसाए हमने यात्रा की! सपनों के शीशमहल की किरचें लहूलुहान कर रही हैं…! यहाँ महाविद्यालय के सभागार के बाहर कैटरर के शामियाना, बन्द पंखे, ढुलमुलाती ये प्लास्टिक की कुर्सियाँ। सोने पर सुहागा ये ग्रामीण श्रोता! क्या इन्हें हमारी रचनाएँ समझ में भी आयेंगी?”

”आपको क्या लगता है भैंस के आगे…,”

थोड़ी देर के बाद कार्यक्रम की शुरुआत हुई और मंच पर बतौर विशिष्ट अतिथियों के रूप में शिकायतें दर्ज करती टोली को बुला लिया गया! भीषण उमस वाली गर्मी का एहसास कम हो चला जब दर्शक-दीर्घा से गम्भीर टिप्पणियाँ तालियों के गूँज के संग आने लगी।

  “तूझे तो इन ग्रामीण श्रोताओं पर शक़ था…? शहर की भीड़ तो सिर्फ अपनी रचना सुनाने आती है। जब मंच से दूसरे रचना पाठ कर रहे हों, तो बग़लगीर की गप्पें सुनती है…!”

वरिष्ठ साहित्यकार के पुण्य स्मृति पर्व पर आयोजित साहित्यिक समारोह की समाप्ति पर विदाई के समय सगुन के लिफ़ाफ़े थामते शिकायती गऊ टोली की आँखें जय/पराजय से परे सावन-भादो सी झर रही थीं…!

Tuesday, 10 June 2025

स्फुरदीप्ति

 क्या शीर्षक : ‘पूत का पाँव पालने में’ या ‘भंवर’

ज़्यादा सटीक होता?



“ज्येष्ठ में शादी के लिए मैं इसलिए तैयार हुआ था कि ‘एक पंथ -दो लक्ष्य’ बेधने का मौक़ा मिल रहा था! हनीमून के लिए रोहतांग पास-स्पीति वैली जाना और पर्यावरण दिवस के लिए होने वाली प्रतियोगिता में तुम्हारा सहयोगी होना चाहता था…!”

“तुमने ख़ूब याद दिलायी! मुझे तुमसे अपनी उत्सुकता के निदान भी जानने थे…।”

“ये हसीन वादियाँ, ये खुला आसमाँ

इन बहारों में दिल की कली खिल गई

मुझको तुम जो मिले, हर ख़ुशी मिल गई 

ऐसे में तुम अभी भी पर्यावरण दिवस में ही उलझी हुई हो? पूछ ही लो -अपनी उलझन दूर कर लोगी तो आनन्द से आगे का पल गुजर सकेगा…!”

“ग्रीष्म शिविर में पर्यावरण दिवस के विषय पर चित्र बनाकर रंग भरने वाली प्रतिभागिता में तुमने सभी को सहभागिता प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया? बहुत ही छोटे-छोटे अबोध विद्यार्थियों को प्रथम-द्वितीय में बाँट कर प्रतियोगिता में बढ़ने वाले द्वेष को बढ़ाने की ओर क्यों प्रेरित करना!”

“तुमने गौर से देखा, एक अबोध बच्चे ने कुँआ के अन्दर के अँधेरे को कितनी बारीकी से उकेरा और श्वेत-श्याम में ही चित्रकारी की थी…! द्वेष नहीं स्पर्धा की ओर प्रेरित करना। होड़ नहीं होगा तो समाज कैसे बदलेगा…!”


स्फुरदीप्ति

अन्तर्कथा

अन्तर्कथा “ख़ुद से ख़ुद को पुनः क़ैद कर लेना कैसा लग रहा है?” “माँ! क्या आप भी जले पर नमक छिड़कने आई हैं?” “तो और क्या करूँ? दोषी होते हुए भ...