Sunday 29 January 2012

" चौथे कंधे की तलाश पूरी हो गई..... :) :) "



 





 






क्षमा प्राथी हूँ , उन माँ से जिनके बच्चे हैं , मैं उनसे बच्चे छीने नहीं प्यार से पाए है.... :) मैं  उनके लिए कुछ भी नहीं की , न तो दिनों का चैन और न तो रातों का नींद खोई हूँ.... :) मैं , बहुत सालों तक डंक सहे है..... :(

(१) एक आखँ के आखँ न और एक बच्चा के बच्चा  न कहल जाला.... :(

(२) सुबह , सुबह बाँझ के मुहँ देखल ठीक , एकऊँझ के मुहँ देखल ठीक न..... :(

(३) मरबू त , चार कंधा कहाँ से ले अयबू..... :(

अपने नासूर बने जख्मों को भर रही हूँ.... :):)

मुझे इन बच्चों को पाकर लग ही नहीं रहा , कि मुझे एक बेटा है.... :):)
अगर किसी बच्चे को लगे कि ये मेरी गलतफहमी है तो अलग बात है.... :(

" मेरे लिए , चौथे कंधे की तलाश पूरी हो गई..... :) :) "

Thursday 26 January 2012

" जलेबी "




          
                "और "
   










  " ♣ सभी को भारतीय गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ♣ "

"आज सभी ने आजादी - कुरबानी , झंडा - झंडोतोलन , अच्छे - बुरे नेता , अच्छी - बुरी सरकार , लोकपाल इत्यादि अनेको विषयों  पर लिखी - सुनी.... :) मुझे भी अच्छा लगा.... :) लेकिन किसी और को यूँ नजरअंदाज कर देना............ ??????????

अरे वही , जिसके बारे में किसी ने किसी को कहा :- round -  round stop.... :):)
                   बचपन की यादे ताजा हो गई.... :( आज के दिन मेरे पापा दूकान - वाले से अनुरोध कर बहुत बड़ी सी बनवा , मेरे लिए लाते , मुझे बहुत पसंद जो है.... ? मेरे पति और बेटे को भी पता है , और वे भी लाते हैं , लेकिन वो मिठास नहीं मिल पाता , जो पापा लाते थे उसमे रहता था.... :( बहुत कुछ बदल गया , मिलावट का ज़माना है......... !!!!! 
       "और "उसकी तुलना , इंसानों से भी की जाती है , न जाने किसी को उससे इतनी नफरत क्यों है , जो उसकी इतनी तौहीन करते हैं.... ??????? उसका ओर - छोर पता चलता है , उसके रग - रग में मिठास भरी रहती..... जिसे देख , शायद ही कोई होगा जिसके आखों में चमक , होठों  पर मुस्कान और मुहं में पानी न आजाये..... :):) अब तो उसका परिचय आपसभी को मिल गया हो गया होगा.... :) अरे , नहीं समझे , " जलेबी "...........

अंग्रेजों से मिले आजादी और उसके बाद मिले संविधान का जश्न हम मना रहे है , तो आज हिंदी का हक़ बनता है न..... ??  हमारे हिन्दुस्तानवासियों...... !!!!!!!!!!!!!!! आज तो गुलामी का अहसास न दिलाओ...... :):)

                      " ♣ सभी को भारतीय गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ♣ "

Tuesday 10 January 2012

" मन पगलाया.... !!!! "

" बसंत - बसंत - बसंत.... !! "
शोर मचा , क्योंकि मन पगलाया ,
क्यों.... ?  मन पगलाया..... !!!!
" क्योंकि "
आमों के पेड़ पर " मंजर " ,
देख , कोयल की पी-कहाँ ,  पी-कहाँ ,
सुन , मन पगलाया.... !!!!
" क्योंकि "
 लगा , इन्तजार है , बारात आने का ,
धरती बनी दुल्हन , पीली चुनरी  ओढ़ी  ,
देख , हल्दी का रश्म ,सुन शहनाई की धुन ,  मन पगलाया.... !!!!
" क्योंकि "
" सरस्वती " - पूजा है , नजदीक ,                                                                               
करनी है , तैयारी , हो न जाए , कोई ,
गलती , सोच- सोच ,   मन पगलाया.... !!!!
" क्योंकि "
" बसंत - बसंत - बसंत.... !! "
शोर मचा , क्योंकि मन पगलाया.... !!!!

Friday 6 January 2012

" पापा " की पुण्यतिथि.... :(:(

आज  " पापा "  की  पुण्यतिथि  है.... :(:(  मन बहुत ही उदास है.... :(  लेकिन क्यों.... ? उनकी जिन्दगी में मै अपने किसी कर्तव्य को तो नहीं निभाया.... ! केवल ये कोशिश में लगी रही , उन्हे मेरे कारण कभी अपमानित नहीं होना पड़े.... !! बहाना था , (१) पापा अपनी सोच के कारण , अपने पड़ोसियों के बेटी के ससुराल में भी पानी पीना पसंद नहीं करते थे , मेरे ससुराल के दबाब में आकर मेरे घर खाने लगे थे , लेकिन उन्हें अच्छा नहीं लगता था..... !! (२) मेरे कुछ भी करने से , उनकी परेशानी ही बढती थी......... ????????????  (३) मेरे पति का कहना था , कर्तव्य केवल बेटों का होता है , बेटी का नहीं....... ????????????   इस लिए मैं उनकी मुक्ति की कामना करती रहती थी....... :(:(
                                                                                                      २ जनवरी २०१० को अपने पति से बहुत जिद की , लड़ाई भी की , दो दिन की छुट्टी थी , मेरी ईच्छा थी , हमदोनो पापा से मिलने जायें....... पापा बीमार चल रहे थे...... लेकिन , मेरे पति के पास अपने   काम का बहाना था........ मैं अपने पति से बहुत विनती की , पापा से अंतिम बार मिलने के लिए , लेकिन उन्हें नहीं जाना था , वे नहीं गए.... :(:( ७  जनवरी २०१० को मेरा और मेरे पति का भुनेश्वर - पूरी जाने का प्रोग्राम था , मैं सोची वहाँ  से आकर , पापा से मिलने जाउगी , बहुत वर्षों से , महीने - दो महीने पर  अकेले ही मिलने जाती थी..... लेकिन , ६ जनवरी २०१० , सुबह आठ बजे उनकी मौत हो गई..... :( मुझे लगा गावं-देहात है , अंतिम संस्कार जल्द हो जाएगा , पति के साथ कार से जाना ठीक होगा , पति से बोली तो वे साथ गए , वहाँ जाने पर पता चला , अंतिम संस्कार  उस दिन नहीं होगा , मेरा भाई  का  इन्तजार  होगा(जो तीन हुआ)..... मेरे पति , पापा के जिन्दगी में जाने का समय नहीं निकाल पाए , उन्हें पूरी का प्रोग्राम स्थगित कर ,  मुझ पर अहसान  करें , मुझे बर्दाश्त नहीं हूआ , मैं वापस लौट कर पूरी गई..... :(:(

तब क्या , मुझे दर्द नहीं होता था...... ??????????? तो , फिर आज , मन बहुत ही उदास क्यों है...... ????????????

दुर्वह

“पहले सिर्फ झाड़ू-पोछा करती थी तो महीने में दो-चार दिन नागा कर लिया करती थी। अब अधिकतर घरों में खाना बनाने का भी हो गया है तो..” सहायिका ने ...