आज " पापा " की पुण्यतिथि है.... :(:( मन बहुत ही उदास है.... :( लेकिन क्यों.... ? उनकी जिन्दगी में मै अपने किसी कर्तव्य को तो नहीं निभाया.... ! केवल ये कोशिश में लगी रही , उन्हे मेरे कारण कभी अपमानित नहीं होना पड़े.... !! बहाना था , (१) पापा अपनी सोच के कारण , अपने पड़ोसियों के बेटी के ससुराल में भी पानी पीना पसंद नहीं करते थे , मेरे ससुराल के दबाब में आकर मेरे घर खाने लगे थे , लेकिन उन्हें अच्छा नहीं लगता था..... !! (२) मेरे कुछ भी करने से , उनकी परेशानी ही बढती थी......... ???????????? (३) मेरे पति का कहना था , कर्तव्य केवल बेटों का होता है , बेटी का नहीं....... ???????????? इस लिए मैं उनकी मुक्ति की कामना करती रहती थी....... :(:(
२ जनवरी २०१० को अपने पति से बहुत जिद की , लड़ाई भी की , दो दिन की छुट्टी थी , मेरी ईच्छा थी , हमदोनो पापा से मिलने जायें....... पापा बीमार चल रहे थे...... लेकिन , मेरे पति के पास अपने काम का बहाना था........ मैं अपने पति से बहुत विनती की , पापा से अंतिम बार मिलने के लिए , लेकिन उन्हें नहीं जाना था , वे नहीं गए.... :(:( ७ जनवरी २०१० को मेरा और मेरे पति का भुनेश्वर - पूरी जाने का प्रोग्राम था , मैं सोची वहाँ से आकर , पापा से मिलने जाउगी , बहुत वर्षों से , महीने - दो महीने पर अकेले ही मिलने जाती थी..... लेकिन , ६ जनवरी २०१० , सुबह आठ बजे उनकी मौत हो गई..... :( मुझे लगा गावं-देहात है , अंतिम संस्कार जल्द हो जाएगा , पति के साथ कार से जाना ठीक होगा , पति से बोली तो वे साथ गए , वहाँ जाने पर पता चला , अंतिम संस्कार उस दिन नहीं होगा , मेरा भाई का इन्तजार होगा(जो तीन हुआ)..... मेरे पति , पापा के जिन्दगी में जाने का समय नहीं निकाल पाए , उन्हें पूरी का प्रोग्राम स्थगित कर , मुझ पर अहसान करें , मुझे बर्दाश्त नहीं हूआ , मैं वापस लौट कर पूरी गई..... :(:(
तब क्या , मुझे दर्द नहीं होता था...... ??????????? तो , फिर आज , मन बहुत ही उदास क्यों है...... ????????????
२ जनवरी २०१० को अपने पति से बहुत जिद की , लड़ाई भी की , दो दिन की छुट्टी थी , मेरी ईच्छा थी , हमदोनो पापा से मिलने जायें....... पापा बीमार चल रहे थे...... लेकिन , मेरे पति के पास अपने काम का बहाना था........ मैं अपने पति से बहुत विनती की , पापा से अंतिम बार मिलने के लिए , लेकिन उन्हें नहीं जाना था , वे नहीं गए.... :(:( ७ जनवरी २०१० को मेरा और मेरे पति का भुनेश्वर - पूरी जाने का प्रोग्राम था , मैं सोची वहाँ से आकर , पापा से मिलने जाउगी , बहुत वर्षों से , महीने - दो महीने पर अकेले ही मिलने जाती थी..... लेकिन , ६ जनवरी २०१० , सुबह आठ बजे उनकी मौत हो गई..... :( मुझे लगा गावं-देहात है , अंतिम संस्कार जल्द हो जाएगा , पति के साथ कार से जाना ठीक होगा , पति से बोली तो वे साथ गए , वहाँ जाने पर पता चला , अंतिम संस्कार उस दिन नहीं होगा , मेरा भाई का इन्तजार होगा(जो तीन हुआ)..... मेरे पति , पापा के जिन्दगी में जाने का समय नहीं निकाल पाए , उन्हें पूरी का प्रोग्राम स्थगित कर , मुझ पर अहसान करें , मुझे बर्दाश्त नहीं हूआ , मैं वापस लौट कर पूरी गई..... :(:(
तब क्या , मुझे दर्द नहीं होता था...... ??????????? तो , फिर आज , मन बहुत ही उदास क्यों है...... ????????????
सामाजिकता से परे बेटी की अधूरी चाह उसे गहे बगाहे उदास करती ही है... पापा जी को नमन
ReplyDeleteमन की बेचैनी , पापा का जाना .... एक आवेश में आप पूरी लौट गईं ... पर पापा को न देख पाने का दर्द , वह तो रहेगा न . जिसने भी इस दर्द को झेला है जीवन में , वही महसूस कर सकता है . सबसे पहले रिश्ते तो यही होते हैं न
ReplyDeleteपापा का अंतिम दर्शन तो कर ली... :( :( दाह-संस्कार के समय तक नहीं रही.... :( छ: को गई , सात के सुबह चार बजे लौटी , दोपहर के तीन बजे पूरी की ट्रेन थी.... !!
ReplyDeleteमन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति,स्वभाविक है कि ये कसक जीवन भर बनी रहेगी ......
ReplyDeleteWELCOME to--जिन्दगीं--
पिता के प्रति ऐसी भावना केवल एक बेटी ही रख सकती है। पछतावा तो रहेगा ही मगर अब तों कुछ हो नहीं सकता। क्यूंकि जाने वाले कभी लौटकर तो आ नहीं सकते। इसलिए कोशिश कीजिये की अपने इस पछतावे को भूलकर या अनदेखा कर ज़िंदगी मे आगे बढ्ने का प्रयास कीजिये....
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी...बेटियों की शादियों के बाद बहुत सी मज़बूरियां हो जाती हैं...लेकिन माता पिता इनसे अनजान नहीं होते..उनकी आत्मा इसको महसूस करती होगी..यद्यपि कुछ न कर पाने की कशक तो हमेशा रहती है..आपके पिताजी को विनम्र नमन..
ReplyDeleteपापा जी को नमन
ReplyDeleteविनम्र श्रधांजलि पिता जी को..
ReplyDeleteनमन पिता जी को!
ReplyDeleteमन को छूती हुई यह पोस्ट पापा जी को नमन .. ।
ReplyDeleteविभा जी ,
ReplyDeleteआपकी भावनाओं को पढ़ मन उदास हो गया .. जिसके लिए स्त्रियां सारी उम्र साथ गुजारती हैं न जाने क्यों वही उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं और इसका उनको इल्म तक नहीं होता .. और जब ऐसे नाज़ुक क्षणों में भावनाएं आहत होती हैं तो आक्रोश में ही सही पर ऐसे निर्णय लेने पर बाध्य हो जाता है जैसा कि आपने पुरी जाने का निर्णय ले कर किया ..
आपकी इस पोस्ट से मेरी जिंदगी के किताब के कुछ पन्ने भी फडफडा कर खुल गए .
Bahut achchaa likha hai Vibhaji aap ne.
ReplyDeletevinnie
ऐसा ही मेरे साथ हुआ था ,इसलिए मैं आपकी तकलीफ को बहुत ही अच्छी तरह समझ सकती हूं ,आपकी पोस्ट को पढ़ते हुए मुझे अपने पिता जी की याद आ गई ,और मेरी आँखें भर आईं ,अपनी बेबसी पर मुझे भी अफसोस हुआ ,मैं भी इसी तरह उनके पुण्यतिथि पर उन्हें याद करके बहुत दुखी हो जाती हूँ ,और अपने डायरी में मन की उथलपुथल को लिख डालती हूँ ,मेरी मजबूरी ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि लड़की होना ठीक नहीं ,अच्छा लगा यहाँ पर आकर,शुभ प्रभात ,नमन
ReplyDeleteनारी की विडंबना है यह।
ReplyDeleteहम स्त्रियाँ इतना सहती ही क्यों हैं क्या हमारे माता पिता कुछ नहीं है उनके लिए उनके माता पिता को जरा सी छींक भी आ जाए तो घर सिर पे उठा लेते हैं हम तो भेदभाव नहीं करते उनकी मां को अपनी मां से बढ़कर सेवा करते हैं उनके पिता को अपने पिता से ज्यादा मान देते हैं फिर वो क्यों नहीं करते ऐसा?
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