रात के बारह बज रहे थे। मोबाइल की नीली रोशनी में अदिति का चेहरा और भी चौकन्ना हुआ लग रहा था। स्क्रीन पर एक वीडियो चल रहा था—किसी लड़की का, आधा सच, आधी अफ़वाह। नीचे हज़ारों लाइक और सैकड़ों टिप्पणियाँ सैलाब लाने के प्रयास में भीड़ को उकसाती उमड़ रही थीं।
व्हाट्सएप्प ग्रुप में संदेश चमका—“सभी साझा करो, ट्रेंड में है। आपके भी फ़ॉलोअर्स बढ़ जाएँगे।”
अदिति की भी उँगली शेयर बटन पर ठिठक गई। वह बुदबुदा रही थी “यही तो सुनहला मौका है –पहचान बनने का, प्रमुखता से दिखने का। उसने वीडियो दोबारा चलाया। कटे-फटे दृश्य, भड़काऊ कैप्शन, और सच के नाम पर सिर्फ़ सनसनी दिख रहा था-
तभी पीछे से उसकी माँ की आवाज़ आई, “तुम! सोई नहीं अभी तक?”
“बस! एक पोस्ट डालकर सोने ही जा रही हूँ,” अदिति ने कहा।
माँ पास आकर खड़ी हो गईं। स्क्रीन पर नज़र पड़ी तो उन्होंने कुछ नहीं पूछा, बस इतना कहा—“हर रेखा ज़मीन पर नहीं खींची जाती, बेटी। कुछ उँगलियों के अधीन होती हैं।”
अदिति ने चौंककर माँ को देखा। “मतलब?”
“पोस्ट करने से पहले एक सीमा को परख लेना,” माँ ने पुनः कहा कि “इससे किसी की इज़्ज़त, सच या ज़िन्दगी आहत तो नहीं होगी? वरना भीड़ के साथ चलते-चलते हम वही बन जाते हैं, जिससे डरना चाहिए।”
उँगली काँपी। शेयर के बजाय उसने डिलीट दबा दिया। मोबाइल की स्क्रीन काली हो गई।
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