Tuesday, 10 January 2012

" मन पगलाया.... !!!! "

" बसंत - बसंत - बसंत.... !! "
शोर मचा , क्योंकि मन पगलाया ,
क्यों.... ?  मन पगलाया..... !!!!
" क्योंकि "
आमों के पेड़ पर " मंजर " ,
देख , कोयल की पी-कहाँ ,  पी-कहाँ ,
सुन , मन पगलाया.... !!!!
" क्योंकि "
 लगा , इन्तजार है , बारात आने का ,
धरती बनी दुल्हन , पीली चुनरी  ओढ़ी  ,
देख , हल्दी का रश्म ,सुन शहनाई की धुन ,  मन पगलाया.... !!!!
" क्योंकि "
" सरस्वती " - पूजा है , नजदीक ,                                                                               
करनी है , तैयारी , हो न जाए , कोई ,
गलती , सोच- सोच ,   मन पगलाया.... !!!!
" क्योंकि "
" बसंत - बसंत - बसंत.... !! "
शोर मचा , क्योंकि मन पगलाया.... !!!!

12 comments:

  1. शब्द शब्द में बासंती छटा है , और हर्ष है गुलमर्ग सा

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  2. ... प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  3. बहुत ही बढ़िया आंटी!


    सादर

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  4. आपके ब्लॉग पर आ कर बहुत अच्छा लगा |अच्छी रचना बधाई |
    आशा

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  5. शब्दों से खेल कर रची रचना ... अति सुन्दर ...

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  6. बसंत में मन पगलाता ही है.. कविता अच्छी लगी

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  7. वसंत के आगमन और स्वागत करती रचना मन को छु गयी |अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई |
    आशा

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  8. बासंती आवरण की बहुत बहुत शुभकामनायें

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  9. बसंत आया ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  10. bahut sundar prastuti..

    मेरे ब्लॉग में भी पधारें..
    मेरी कविता

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