क्षमा प्राथी हूँ , उन माँ से जिनके बच्चे हैं , मैं उनसे बच्चे छीने नहीं प्यार से पाए है.... :) मैं उनके लिए कुछ भी नहीं की , न तो दिनों का चैन और न तो रातों का नींद खोई हूँ.... :) मैं , बहुत सालों तक डंक सहे है..... :(
(१) एक आखँ के आखँ न और एक बच्चा के बच्चा न कहल जाला.... :(
(२) सुबह , सुबह बाँझ के मुहँ देखल ठीक , एकऊँझ के मुहँ देखल ठीक न..... :(
(३) मरबू त , चार कंधा कहाँ से ले अयबू..... :(
अपने नासूर बने जख्मों को भर रही हूँ.... :):)
अपने नासूर बने जख्मों को भर रही हूँ.... :):)
मुझे इन बच्चों को पाकर लग ही नहीं रहा , कि मुझे एक बेटा है.... :):)
अगर किसी बच्चे को लगे कि ये मेरी गलतफहमी है तो अलग बात है.... :(
" मेरे लिए , चौथे कंधे की तलाश पूरी हो गई..... :) :) "
इतनी उंगलियाँ हुईं थामने के लिए .... चार कांधा अभी नहीं
ReplyDeleteआपकी बातें , आखों में आसूँ ला देते हैं.... :)
DeleteBilkul sahi kaha aaone Rashmi ji!
Deleteआप मुस्कुराती रहें विभा जी:)
ReplyDeleteअभी तो बहुत दूर तक चलना है... कन्धों की बात अभी नहीं... अभी जीवन की धूप छाँव में हम सब पर स्नेह का आँचल बन कर छाना है आपको!
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ReplyDeleteमैं तो अपना भविष्य सुनिश्चित करना चाह रही थी , ताकि खिलखिला के हँस सकूँ.... :):)
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ReplyDeletekya aunty....koi kandhaa nai....haath pakadiye aur bas chaliye saath abhi to aapko bahut saari achiements ka hissa banna hai ...wo achivements jo mehboob ,hum aur baaki saare achieve karenge n aapko uspe proud feel karna hai...abhi to masti tym hai...so no sad sad.... :)
ReplyDeleteMrigank :)
mai ,un tak sandesh pahunchana chahti (jo pahunch bhi gayaa hoga)thi , jinhone mujhe jakhm diye the.... :) Love you ,Mrigank.... :)
Deleteallah na kare ... kandhey ki baat aaye .. may long live...
ReplyDeleteungli ke baad haanth pakdne ki baat hoti hai ... n fir ek dusre ke kandhey me haanth daal ke smile share krne ki...
may lord always keeps us together n reachable ... :) :) :) :)
aamin.... :)thank you bitiyaa.... :)
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ReplyDeleteaunti...sab ka kahna bilkul theek hai...aisi baat kabhi bhi phir nahi kijiyega...aur aapki ungli hamesha hum pakde rahenge...itna pyaar jo mil raha hai :)
ReplyDeleteThank U betu.... :)
DeleteAgree With Khubu... Aainda esi baat nahi plz... Abhi Abhi to Naye Pankh mile hai, Abhi to bahut Aage jana hai... Apna Sneh banaye rakhna... Luv U Aunty Ji
ReplyDeleteSorry..... Sabse..... aisi baate phir kabhi nahi..... Love U too..... :)
DeleteAuntyji... abhi to sirf yahi hain aur naati-pote to aane baki hain... to kandhe ki baat chhoriye aur unke liye stories likhiye abhi se taaki baad mei problem na ho... hehe- nindiya
ReplyDeleteusi ki taiyari kar rahi hoo ,ekdam sachchiwali kahaani........ :):)bitiyaa ji.....
Deleteमाई डीयर, कन्धों की कमी हमें नहीं होगी | फिर कन्धों की तलाश दूसरों को करनी है | हमें तो अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीनी है |
ReplyDeleteधन्यवाद दोस्त ,आपके हौसला बढ़ाने के लिए.... :)
Deleteविभा जी अभी तो बहुत दूर तक चलना है..अभी से कंधो की बात मत करो..
ReplyDeleteदीदी पुन: " जी " का लगाम कहाँ से आ गया ,आपका आशीर्वाद बना रहे.... :)
Deleteक्या बुआ ..... आप भी ..... अभी तो गाना गाइए, थोडा सा मुस्कुरायिए ..... क्यों की
ReplyDeleteज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना , यहाँ कल क्या हो किसने जाना ..... :)
चलो मिल कर गाते है......ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना , यहाँ कल क्या हो हमने जाना .... :) Love U.... :)
ReplyDeleteजिंदगी ज़िंदा दिली का नाम है,....
ReplyDeletemy new post...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
क आखँ के आखँ न और एक बच्चा के बच्चा न कहल जाला.... :(
ReplyDelete(२) सुबह , सुबह बाँझ के मुहँ देखल ठीक , एकुंझ के मुहँ देखल ठीक न..... :(
(३) मरबू त , चार कंधा कहाँ से ले अयबू.....
उफ्फ्फ्फ़.....!!
नमन आपको .....!!
मरबू त , चार कंधा कहाँ से ले अयबू??
ReplyDeleteबिहार के ही एक छोटे से शहर से हूँ, कायस्थ हूँ, भोजपुरी-भाषी हूँ, और इतनी छोटी उम्र में भी समझ सकता हूँ कि कितना मर्म छिपा है आपकी बातों में.
लेकिन जैसा औरों ने भी कहा, लोगों की सुनते रहें तो हम न सिर्फ अपनी ज़िन्दगी गंवाते रहेंगे, बल्कि जो कुछ अच्छा कर सकते हैं, वो भी न कर पाएंगे!
आप महज़ चार की बात कर रही हैं, अरे आपको हज़ार कंधे मिलेंगे, मरने को नहीं, जीने के लिए!! ढेरों शुभकामनाएं! :)
जीवंत बने रहने का नाम जीवन है..... तो फिर ऐसे ख्याल ही क्यों...?
ReplyDeleteजिन्दगी इसी का नाम है ...जिन्दादिल रहो ....!
ReplyDeleteविभा जी एक शेर याद आया
ReplyDeleteनासमझ बन ना , हर और निराशा देखो |
मौज में डुबो ना ऊपर से तमाशा देखो ||
जिंदगी दर्द की पुस्तक इसे पढ़ लेना |
व्याकरण छोड़ कर अनुभूति की भाषा सीखो ||
bahut hi sundar jindagi ki behatar abhivykti ke liye abhar
ये चार कांधे वाली बात अच्छी नहीं लगी ... आप अपना स्नेह यूँ ही लुटाती रहें ..अनंत शुभकामनाएं ।
ReplyDeletebaat kuchh jami nahi.........
ReplyDeleteशरीर के अंदर आत्मा तो सैदेव ही सत्-चित-आनंद स्वरुप है.
ReplyDeleteआत्मा में रमण करने से,शरीर केवल वस्त्र मात्र ही तो लगता है.
आत्म रमण प्रेम और रस से परिपूर्ण बताया जाता है.
चार कंधें हों या एक या एक हजार क्या फर्क पड़ता है,फिर.
मेरे ब्लॉग पर अआप्का हार्दिक स्वागत है,विभा जी.
ReplyDeleteजिंदगी एक सफर है सुहाना...
विभा जी जिस स्त्री की पीड़ा को आपने प्रकाशित किया वह तानों की लपटों में दिन रात झुलसती है पर बच्चों के होते बिन बच्चों वाला दर्द भोग रहे बुजुर्गों की पीड़ा ....जो जानते हैं कि कंधा भी होगा और अंतिम संस्कार के नाम पर वैभव प्रदर्शन भी ....पर आज कोई एक कंधा इतना मजबूत नहीं जो जीवित माँबाप का बोझ उठा सके
ReplyDeleteआज फुरसत से आप का ब्लौग पढ़ रहा हूं....इतनी सत्यता शायद किसी और के ब्लौग पर नहीं मिलती..
ReplyDeleteइतने अनुभव कोई भी एक दूसरे के साथ नहीं बांटता....
आप का ब्लौग तो एक खुली किताब के समान है....
दीदी....समझ नही पा रही क्या कहूं...,बस ढेर सारा प्यार....है आपके लिये आपकी लल्ली के दिल में...। ढेर सारी शुभकामनायें.....:)..
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