"मुझे नहीं पता था कि मेरे घर में भी विभीषण पैदा हो गया है..," सलाखों के पीछे से गुर्राता हुआ पिता अपने बेटे का गर्दन पकड़े चिल्ला रहा था।
"बड़े निर्लज्ज पिता हो। जिस पुत्र पर गर्व होना चाहिए उसको तुम मार देना चाहते हो...," पिता के हाथों से पुत्र का गर्दन छुड़ाता हुआ पुलिसकर्मी ने कहा।
"क्या करता मैं .. आप माँ की विनती सुने नहीं उलटा उन्हें कमरे में कैद कर दिया और कांवड़ियों की टोली बनाकर जल उठाने चले गए।"
"सावन में जलाभिषेक करना हम हिन्दुओं का धर्म भी है और अधिकार भी।" पिता पुनः चिल्लाया।
"और इस वैश्विक युद्ध में समाज हित के लिए सरकार द्वारा बनाई गई नीति...? क्या सीमा पर लड़ रहे फौजी का ही दायित्व है...?" पुत्र ने कहा।
"तुम्हें और तुम्हारे साथियों को तो जो सजा होगी सो होगी..., तुम्हारे पोशाक बनाने वालों का बेड़ा गर्क हो गया।" पुलिसकर्मियों के ठहाके गूँजने लगे। □
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०५-०८-२०२१) को
'बेटियों के लिए..'(चर्चा अंक- ४१४७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteसच है।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 05 अगस्त 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteगहन
ReplyDeleteगहरा और प्रेरक सन्देश लिए भावपूर्ण लघुकथा आदरणीय दीदी | सभी जागरूक होंगे तभी समाज सुरक्षित होगा | सीमा के पहरुए सीमा की रखवाली करेंगे तो समाज की भीतरी रक्षा तो जागरूकता से होगी |अच्छा निर्णय लिया बेटे ने निरंकुश पिता के लिए | सादर
ReplyDeleteवैश्विक महामारी को नजरअंदाज करने पर पुत्र ने पिता को जेल भिजवा दिया!!!! सही कहा बिना वर्दी का यौद्धा
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर।