विद्यालय से लौटी बिटिया को सजाने-सँवारने के लिए हरी चूड़ी, हरा रिबन, हरी बिन्दी, हरा फ्रॉक लेकर बैठी लक्ष्मी बार-बार अपनी मुनिया को पुकार रही थी। मुनिया होमवर्क करने में उलझी हुई बार-बार, "आई माँ! आई माँ!" कहती हुई आखिर में आ गयी।
"यह समान कहाँ से आया माँ?" मुनिया ने कहा।
"आज मुझे मजदूरी ज्यादा देर की मिली मुनिया।" माँ लक्ष्मी ने कहा।
"मेरे पास किताब नहीं होने की वजह से मुझे कक्षा के बाहर धूप-बारिश में खड़ा रहना पड़ा माँ..! सियार के बियाह का आनन्द ली..!"
"आज के बाद कक्षा में केवल पढ़ाई करना मुनिया। ले मैं तेरा किताब लेकर आया हूँ।" मुनिया का पिता ने कहा।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteकितना कुछ है ब्लोगिंग में समझ में तभी आता है जब आप ब्लोग विचरण करते हैं। :)
ReplyDelete🙏जी
Deleteप्रभावी लघु कथा
ReplyDeleteपिता ही समझ पायेंगे बेटी की पढ़ायी और उसकी जरूरतों को।
ReplyDeleteलाजवाब लघुकथा।