Friday 6 August 2021

सहभागिता

विद्यालय से लौटी बिटिया को सजाने-सँवारने के लिए हरी चूड़ी, हरा रिबन, हरी बिन्दी, हरा फ्रॉक लेकर बैठी लक्ष्मी बार-बार अपनी मुनिया को पुकार रही थी। मुनिया होमवर्क करने में उलझी हुई बार-बार, "आई माँ! आई माँ!" कहती हुई आखिर में आ गयी। 

"यह समान कहाँ से आया माँ?" मुनिया ने कहा।

"आज मुझे मजदूरी ज्यादा देर की मिली मुनिया।" माँ लक्ष्मी ने कहा।

"मेरे पास किताब नहीं होने की वजह से मुझे कक्षा के बाहर धूप-बारिश में खड़ा रहना पड़ा माँ..! सियार के बियाह का आनन्द ली..!"

"आज के बाद कक्षा में केवल पढ़ाई करना मुनिया। ले मैं तेरा किताब लेकर आया हूँ।" मुनिया का पिता ने कहा।

5 comments:

  1. कितना कुछ है ब्लोगिंग में समझ में तभी आता है जब आप ब्लोग विचरण करते हैं। :)

    ReplyDelete
  2. प्रभावी लघु कथा

    ReplyDelete
  3. पिता ही समझ पायेंगे बेटी की पढ़ायी और उसकी जरूरतों को।
    लाजवाब लघुकथा।

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

छतरी का चलनी…

 हाइकु लिखने वालों के लिए ०४ दिसम्बर राष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में महत्त्वपूर्ण है तो १७ अप्रैल अन्तरराष्ट्रीय हाइकु दिवस के रूप में यादगा...