खुश होना दुःखी होना मन की स्थिति है.. । मानसिक सुख से बड़ा कोई सुख हो ही नहीं सकता है। मेरे एक रिश्तेदार के पास इतना रुपया था कि वो तकिया तोशक में रखते थे और उनकी पत्नी पहरा देती रहती थीं.. ना दिन को चैन ना रात को नींद।
राजेन्द्र पुरोहित भाई ने बताया कि मारवाड़ी में जैन स्थानक को उपासरा (उपाश्रय) कहते हैं। वहाँ सभी भिक्षुक केशविहीन होते हैं। तो, कोई वस्तु जब किसी स्थान विशेष पर मिलने की संभावना ही न हो, तो कहते हैं "अरे यार, उस पढ़ाकू के पास क्रिकेट का बैट कहाँ ढूंढ रहे हो, उपासरे में कंघी का क्या काम?"
और हम चाहते हैं कि गंजे को कंघी बेच लें।
और अपने लिए सुख प्राप्ति का साधन का ढ़ेर लगा लें।
साथ में दुनिया बदल डालने की मृगतृष्णा में जीते हैं।
मन बैचैन है तो सुख की अनुभूति हो ही नहीं सकती।
जब तक जीवन सर्वकल्याण नहीं करने लगेगा तब तक स्थायी सुख की प्राप्ति ही नहीं हो सकती।
जब स्थायी सुख की प्राप्ति होने लगती है तो वो असली सुख मानसिक होता है । मन का सुख तो बैचेन रखे हुए रहता है।
हर किसी में समस्या खोजना मनोविकृति है। इंसान होने का ही अर्थ है गुण-अवगुणों का मिश्रण समाहित होना। मनुष्य और मनुष्यता की हमने अपने-अपने धर्मों का आधार बना कर हत्या कर दी है। पाठ पढ़ रहे हैं कि हमारा धर्म ही दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म है, जबकि हम अपने-अपने धर्म को जानना ही नहीं चाहते हैं। हमारे कान मुल्लाओं और पंडितों की कही बातों से भर रखा है और उसे ही सच मान रहे हैं।
सब मुसलमान हिन्दू धर्म को गहराई से नहीं जानते और सब हिन्दू भी इस्लाम को नहीं जानते। इसी तरह किसी ईसाई या बौद्ध ने हिन्दू धर्म का कभी अध्ययन नहीं किया और वह भी उसी तरह व्यवहार करता है जिस तरह की नफरत करने/फैलाने वाले लोग करते हैं।
जैसे कुछ ईसाई यह समझते होंगे कि ईसाई बने बगैर स्वर्ग नहीं मिल सकता। उसीतरह कुछ मुसलमान भी सोचते होंगे कि सभी गैर मुस्लिम-गफलत और भ्रम की जिन्दगी जी रहे हैं अर्थात वे सभी गुमराह हैं। आम हिन्दू की सोच भी यही है। सभी दूसरे के धर्म को सतही तौर पर जानकर ही यह तय कर लेते हैं कि यह धर्म ऐसा है। अधिकतर लोग जिस तरह धर्म की बुराइयों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं उसी तरह अपने आस-पास के लोगों में भी केवल समस्याओं को ढूँढते रहते हैं।
हम वो मक्खी हैं जो या तो मल पर बैठती है या शरीर के घाव पर बैठकर गहरा करती है और उसे दूसरों तक फैलाकर हानिकारक बनाती है।
अतः दूसरों में हम केवल समस्या खोजते हैं तो हमसे ज्यादा समस्या फैलाने वाला दूसरा कोई नहीं हो सकता है।
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सघन वन–
उल्लू और बादुर
ज्योत्स्ना में भिड़े।
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गी
अंगी
ना रोना
शीत संगी
जोड़े रहना
एक से सौ होना
मूंगफली दोपल्ली
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ली
गरु
ना तरु
दीन मेवा
रोगों का शत्रु
फली मूंगफली
भू को जकड़े वल्ली{20.}
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धर्म की परिभाषा अच्छे से जिसने समझ लिया फिर उसके लिए मानव धर्म से बढ़कर कुछ न होगा
ReplyDeleteइंसान वही जो इंसानियत को समझे और उसका पालन करे
बहुत अच्छी चिंतन प्रस्तुति
सत्य वचन।
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