*Enjoy the* हमारा सौभाग्य हम साँस ले रहे हैं धन्यवाद वक्त का उस परम शक्ति का
इक्कीस वाँ दिन *21st day of*
इक्कीसवें साल *21st year of*
इक्कीसवीं सदी *21st century.*
21-01-2021
जिसने स्वेद का स्वाद नहीं चखा उसके लिए सफलता सपना ही होगा। समय पर संयम रखे और -साधना का श्रमी हो तो सपना पूरा करने का शिद्दत स्वयं संग जुट जाता है।
लालबहादुर शास्त्री जी ने एक बार कहा था कि "मेहनत तो प्रार्थना करने के समान है।"
निरुद्योगी अपना भाग्य कैसे बदल सकता है, चाहे कितना भी समय व्यतीत होता जाए।
छाँव का स्वाद तब पता चलता है जब स्वेद बहता चले।
अब उद्योग को सफल होने में और स्वेद की नदी बनने में कुछ समय तो जरूर लग जाता है उतने समय के लिए जो धैर्य चाहिए और परिणामस्वरूप पाए फल को भाग्य से पाया मान लिया जाए या श्रमी होने का फल ।
लेकिन हाँ साँसों की डोर, जन्म-मृत्यु, आकस्मिक दुर्घटना के लिए कोई तो एक शक्ति है जो भाग्य रचता है।
अविष्कार से गूंगे-बहरे-अंधे का भी भाग्य बदल दिया गया है । अलग-अलग कर्म पर अलग-अलग भाग्य को आजमाया जा सकता है। प्रयोग होते रहे हैं.. प्रयोग होते रहेंगे।
हमारा वादा झूठा कब निकलता है, जब हम असक्षम होते हैं।
जब हममें असक्षमता है यह हमें विदित है कि हम पूरा नहीं कर सकते तो क्यों वादा करना!
उस स्थिति में विनम्रतापूर्वक किया गया इन्कार झूठे वादे से बहुत अधिक अच्छा होता है।
हमारे इन्कार करने से समय का बचत होने पर आसानी से दूसरा मार्ग ढूँढ़ लिया जा सकता है। और आपस के सम्बन्ध को बिगड़ने से भी बचाया जा सकता है।
01.
माँ गौर करे
ग्वाले का ठिठकना–
पुष्ट सरसों
02.
प्रेम की पाती
माझे कोर से बाँधे–
संक्रांति काल
03.
ज्योत्स्ना के घेरे
सजनी पत्र लिखे–
आम का कल्ला
वाकई।
ReplyDeleteसार्थक सन्देश।
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२३-०१-२०२१) को 'टीस'(चर्चा अंक-३९५५ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteसुंदर सार्थक सृजन।
ReplyDeleteसुंदर हाइकु।
अभिनव शैली।
बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteउम्दा अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर, सार्थक सृजन 🌹🙏🌹
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