ऐतिहासिक वृत्तान्त को कविता का रूप देती ,
मैं गुनगुनाती-मतवाली बुलबुल बन जाती ....
इधर डोलती उधर डोलती सबका मन मोह लेती ....
स्तब्ध निगाहें ,नि:शब्द जुबां नहीं देख पाती ,
एक भूखे आदमी के हाथ का कौर ,
चीरती है सारे जहां की ख़ामोशी ....
दिल के भीतर मनोभावों का ,
तहलका मचता ,
हलचल का शोर होता ....
कैसे ढूढ़ें नित - नित ,
नयी - नयी सुगम राहें ....
सुनहला प्रीत की सुनहली सी आहट ,
सदा जीवन को दमकाती रहे ....
सलोना मौसम मेघ के आने से होगा ....
मानसून के आते रुत बदल जायेगी ....
तप्त दिन हसीन मादक चाँदनी रात में ढल जायेगी ....
स्वप्न की स्मृतियाँ श्रृंगार कर लेगीं ....
गुदगुदाती कविता की मृदंग बजेगें ....
मधुर सुहावन अति मनभावन ,
मन मयूर का नृत्य होगा ....
समय की पथरीली पृष्ठभूमि भी खिंचति हैं ,थोड़ी सी चिंता की लकीरें ....
ऐतिहासिक वृतांत
ReplyDeleteवर्तमान जिजीविषा
और ......... अचंभित हूँ , पर विश्वास था
शुभप्रभात .... !!
Deleteपारस भी अचंभित होता है .... ??
स्वप्न की स्मृतियाँ श्रृंगार कर लेगीं,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,, .
बहुत खूब आंटी !
ReplyDeleteसादर
बहुत खूब दीदी ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - बुंदेले हर बोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी ... ब्लॉग बुलेटिन
बहुत सुंदर भाव ...
ReplyDeleteनि:शब्द करती रचना..
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