Monday 17 June 2024

भरवा करेला

 करैला ज़्यादा कडुवा या स्त्रियों पर लगी पाबन्दी

कारण पर इल्ज़ाम लगाया जाता है कुंदन को बेकार ही तपाया जाता है परेशानी का कोई आकार नहीं होता.. यानी परेशानी छोटी/बड़ी/मंझली/सझली नहीं होती। परेशानी सिर्फ और सिर्फ परेशानी होती है! 

भतीजे के बारात में भतीजी को नाचते (डान्स करते) देख ; मैं सोच रही थी, समय कितना बदल गया या भैया कितने बदल गए…! मेरी शादी के पहले मेरी कोई सहेली ; हमारे घर मिलने आ जाती थी तो मैं उसके जाते समय, दरवाजे तक छोड़ने नहीं जा पाती थी क्योंकि भैया की नजरें टेढ़ी हो जाती थी….। अभी कुछ साल पहले तक उनका किसी लड़की/औरत का बरात में जाना पसन्द नहीं था क्यों कि लड़की वालों ने अगर इंतजाम बढ़िया नहीं किया हो तो फजीहत हो जायेगी…। बरात में हुड़दंग होता ही है।

 एक तो रूढ़िवादिता का युग और दूसरे भैया की सोच : एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा : करेला से याद आया, जब मेरी माँ-पापा की शादी हुई थी तो माँ को करेला बिलकुल ही पसन्द नहीं था और मेरे पापा को करेला बेहद पसन्द था। मेरी माँ का करेला खाना शुरू करना स्त्री विमर्श का मुद्दा हो सकता था? काश! हम तब स्त्री विमर्श समझने का मादा रखते। मेरा बेटा जब छोटा था तब उसे भी करेला खाना पसंद नहीं था। अरे! उसे तो भिंडी छोड़कर कुछ भी खाना पसंद नहीं था! संयुक्त परिवार था, मीठी से ज़्यादा कड़वी बातें पचानी पड़ती थी! मेरा बेटा थोड़ा बड़ा हुआ तो भरवा करेला खाने लगा…

 सामग्री : मध्यम आकार का गोल-मटोल (गुलाबी शिशु सा जिसे चिकुटी काटने को जी चाहे) करेला -४ बड़ा प्याज -२ बारीक छोटे-छोटे काटा हुआ लहसुन अदरक पीसा हुआ -२ छोटे चम्मच धनिया, काली मिर्च, जीरा बारीक पीसा हुआ -दो छोटा चम्मच हल्दी पाउडर -एक चौथाई छोटी चम्मच धनियाँ पाउडर -एकछोटी चम्मच सोंफ पाउडर — 2 छोटी चम्मच अमचूर पाउडर — 1 छोटी चम्मच (लाल मिर्च पाउडर -आधा छोटी चम्मच या हरी मिर्च एक-दो -स्वादानुसार : मेरे घर में तीखा स्वाद में नहीं पसन्द तो मैं प्रयोग नहीं करती हूँ!) नमक -स्वादानुसार तलने-भूनने के लिए सरसों का तेल

करेलों को अच्छी तरह धो लीजिये। चाकू की सहायता से हल्का खुरच कर छील लीजिये तब करेले में कुछ ज़्यादा मात्रा में नमक डालकर आधा घण्टे के लिये रख दीजिये। आधा घण्टे के बाद पुनः करेले को अच्छे से धोकर उबाल लेना है। थोड़ा ठंढा होने पर करेले को एक तरफ से काटें लेकिन उसका दूसरा साइड जुड़ा रहे। अब चाकू की सहायता से करेले के अन्दर से बीज और गूदा प्लेट में निकाल लें। बीज को हटा देना है (करेले का बीज हो, नीबू का बीज हो पेट के लिए हानिकारक होता है) गूदा को भूनते मसाले में मिला लेना है।

 तेज गरम कढ़ाई में तलने लायक तेल डाल कर गरम करिये और उसने बीज-गूदा निकाला करेला तलकर निकाल लेना है।बचे गरम तेल में हींग (मुझे नहीं पचता) और जीरा डालिये, जीरा भुनने के बाद ,हल्दी पाउडर, धनियाँ पाउडर सोंफ पाउडर इत्यादि संग सभी सामग्री डालिये. 2 - 3 बार चमचे से चलाकर भूनिये, इस मसाले में करेले से निकला हुआ गूदा, अमचूर पाउडर (चाहें तो अमचूर के बदले नींबू का रस प्रयोग किया जा सकता है। मुझे खटापन से परहेज़ है तो मैं नीबू का भी प्रयोग कम करती हूँ) नमक डाल दीजिये। मसाले को चमचे से चलाकर 6-7 मिनिट तक भूनिये। यह भुना हुआ मसाला करेलों में भरने के लिये तैयार है। तले करेले में भरिए और ख़ुद स्वाद लीजिए पहले : अचानक की परिस्थिति में ना मिले तो : खिलखिलाकर रहिए! —चूँकि कुछ तलने के लिए एक बार तेल को गरम कर लिया जाये तो उसे पुनः दोबारा अन्य कुछ तलने के लिए के प्रयोग करना वर्जित है स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है। यूँ भी करेला तले वाले तेल में दोबारा करेला भी नहीं तला जा सकता है। 

सन् 1980 की बात है : बात का रुख़ नहीं बदलने के लिए मुख्य कहानी…

हमारे घर में दूध देने वाले की बेटी की शादी थी। भाभी का मन था जब बरात लगेगा तो हम दूल्हे को देख आयेंगे । पड़ोस की चाची, उनकी बेटी कुमुद, मैं और भाभी दिनभर तैयारी में समय गुजारे। शाम में तैयार होने जा ही रहे थे कि भैया आ गए ; भैया अकेले नौकरी पर रक्सौल रहते थे , माँ की मृत्यु हो जाने से भाभी मेरे साथ पापा की नौकरी पर सीवान में रहती थीं। हमारी तैयारी दूल्हे को देखने की नष्ट होती नजर आई लेकिन मेरी भी जिद हो गई कि हम कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं , हम दूल्हे को देखने जाएंगे ही तो जाएंगे। सही होने का एहसास विरोधी तो बना दिया लेकिन मुझे मुखर कौन बनाता। शाम में पड़ोस की चाची हमारे घर थर्मामीटर मांगने आईं कि कुमुद को बुख़ार हो गया है ; कुमुद को देखने के लिए मैं और भाभी चाची के घर गए। बारात से दूल्हे को देख कर लौटते समय जैसे मुड़े भैया सामने खड़े थे और हमारी योजना पकड़ी गई कि कुमुद को झूठा बुखार था क्यों कि कुमुद हमारे साथ थी ।हमें जो डांट पड़ी उसका बयान क्या करना…! लेकिन भैया को समय के साथ बदलते देख अच्छा लगा.. : सुखद! –बस! समय समझ-समझ का फेर होता है... कर्म, श्रम, शर्म पर आधारित! करेले अपने कड़वेपन के कारण कुछ लोगों को पसन्द नहीं आते, लेकिन भरवा करेले बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। मेरे बड़े भैया हमलोगों के लिये हमेशा हमारे पिता के समान रहे! समाज मजबूर करता रहा कि स्त्रियों पर पाबन्दी लगायी जाये।

6 comments:

  1. फिर भी पाबंदी ठीक से लगा कहाँ पा रहे हैं इधर कोशिश करो उधर से निकल जाती हैं :)

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  2. करेले हमसे नहीं खाये जाते और मेरी वजह से मेरे पतिदेव नहीं लाते जबकि उन्हें बहुत पसंद हैं। मेरी माँ बहुत स्वादिष्ट भरवा करेले बनाती हैं ऐसा सब कहते हैं रेसिपी तो लगभग आप जैसा लिखी हैं न दी वैसी ही है।
    जहाँ तक स्त्रियों पर पाबंदी की बात है तो समय के साथ सब बदल रहा है परिवार के बड़े लोग सामाजिक पशुओं के डर से ओवरप्रोटेटिव.हो जाते हैं जो कभी कभी ज्यादती लगने लगती है और इस विषय पर कुछ फेमिनिस्ट स्त्रियों के विचार के विरोधी तो हैं हम भी हैं।
    प्रणाम दी।
    सादर
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १८ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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    1. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

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  3. बहुत सुंदर

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आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
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