"ऐसा क्यों किया आपने? इतने आदर-मान के साथ आपकी बिटिया को बुलाने आयी को आपने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया?" श्रीमती मैत्रा ने श्रीमती सान्याल से पूछा।
"उनके घर के पुरुषों की चर्चा सम्मानजनक नहीं होते हैं..," श्रीमती सान्याल ने कहा।
"आप भी कानों सुनी बातों पर विश्वास करती हैं?" श्रीमती मैत्रा ने पूछा।
"एक ठग व्यापारी को सज़ा हुई। वह जेल में भी अन्य कैदियों के पैसों-सामानों की चोरी कर लेता था। उसके बारे में शिकायतें सुन-सुन तंग आकर जेलर ने उसे मुक्त कर दिया। साथ में ही दस लोगों को नियुक्त किया कि वे अलग-अलग भाषा में अलग-मोहल्ले में जाकर ठग व्यापारी के बारे में प्रचार करेंगे कि सभी सचेत रहेंगे।
ठग व्यापारी जेल से बाहर आकर कई रिक्शा वाले, ऑटो वाले से पहुँचा देने के लिए बात किया, लेकिन मुनादी के कारण कोई उसे सवारी बनाने के लिए तैयार नहीं हुआ। आखिरकार कुछ दूर पैदल बढ़ने पर उसे एक ऑटो वाला मिल गया जो उसे सवारी बना लिया। पूरा दिन ठग व्यापारी उस ऑटो पर घूमता रहा। जहाँ से गुजरता मुनादी की वजह से उतर नहीं पा रहा था।
देर रात होने पर एक जगह ऑटो वाले ने उसे जबरदस्ती उतार दिया और उससे अपने पैसे को माँगा।
"मुनादी सुनकर भी तुम मुझे सवारी बना घुमाते रहे.. बहरे तो नहीं लगते..,"
"बस! बस श्रीमती सान्याल। आपकी कथा से मेरे भी ज्ञानचक्षु खुल गए.. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका। मैं भी अपनी नतनी को नहीं जाने दूँगी..।" इतना कहते हुए श्रीमती मैत्रा तत्परता से अपने घर जाने के लिए निकल गयीं।
वंदन संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteविजयोत्सव की हार्दिक बधाई
अशेष शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteविजयोत्सव की हार्दिक बधाई
सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDelete"मुनादी सुनकर भी तुम मुझे सवारी बना घुमाते रहे.. बहरे तो नहीं लगते..,"
ReplyDeleteसही बात है बेटियों का कन्या पूजन एक दिन और दूसरी तरफ आये दिन ऐसा बदहाल...
सुन्दर सार्थक एवं लाजवाब सृजन।
"चौकस" लघुकथा आज के सामाजिक परिदृश्य में यक़ीनन अहमियत रखती है, दरअसल आज हर एक को चौकस रहना बहुत ज़रूरी है, सार्थक रचना के लिए साधुवाद - - विभा दी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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