प्रक्षालित अंगुली पर निशान लगाए भीड़ को निहारती ईवीएम मशीन के पास खड़ी मैं बड़ी उलझन में थी..। वज्जि जातीय समीकरणों के चक्रव्यूह में फँसा अपने शक्ति, शिक्षा और संस्कृति के गौरवशाली इतिहास पर कालिख पुतवा चुका था। आज उस चक्रव्यूह को भेदने के लिए दो शिक्षित युवा में से किसी एक का चयन करना मेरे लिए चुनौती बना हुआ था..,
जवान किसान मोर्चा पार्टी के उम्मीदवार का कहना था,- "मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपका आशीर्वाद और समर्थन मिलगा । आप जानती हैं कि मैं अपने पुस्तक की डेढ़ सौ मूल्य की एक हजार प्रति की विक्री से आयी राशी को अनाथालय में दे चुका हूँ । मेरा लोग साथ दे या ना दे मैं अपने सिद्धांतों पर लड़ लूँगा। और जीत लूँ या हारूँ 101 संस्कारशाला खोलना है तो खोलना है । हार गया तो धीरे-धीरे खुलेगा..! जीत गया तो एक साल के अंदर खोलूँगा पूरे बिहार में..।" पहला संस्कारशाला खुल चुका है। खोलने में पूरे देश के साहित्यकारों से सहायता मिली थी। उनके कथनानुसार विरोधी खबरें फैला रहें हैं कि उस संस्कारशाला में साहित्यिक कार्यक्रम-गोष्ठियाँ व अध्ययन उनके व्यापारिक हानी से उभरने में सहायक है..। भाई के लिए हर पल शुभकामनाओं के संग आशीर्वाद है..।. साहित्यिक-समाजिक कार्यों के लिए हमेशा साथ रहा है और आगे भी अपने सामर्थ्य भर साथ हूँ...। लेकिन राजनीत समझने में बिलकुल असमर्थ हूँ..।
दूसरे निर्दलीय प्रत्याशी हैं की घोषणा,"सरकारी अस्पताल, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों की सुनता ही कौन है ... l 40 साल से रह रहे हैं फिर भी सरकार स्थाई जगह नहीं दिला पायी इन लोगों के पास आधार कार्ड है वोटर आईडी कार्ड है राशन कार्ड है मगर फिर भी स्थाई निवास का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं l कसम खायी है जब तक इस सिस्टम को बंद नहीं कर लूँगा ,तब तक मैं रुकने वाला नहीं l" अपने 'बिंग हेल्पर टीम' में कई मिशन के साथ काम करते हैं जैसे कि उनका एक हाल-फिलहाल मिशन था "कोई भूखा ना सोए" इसके साथ ही उन्होंने पिछले साल पटना में भयानक बाढ़ की स्थिति में भी लोगों की काफी मदद की जो काम बिहार सरकार को करना चाहिए था । सिर्फ यही नहीं गरीब बच्चों को पढ़ाने हेतु कंप्यूटर क्लासेस स्थापना की गयी है जिसमें निःशुल्क पढ़ाई होती है और वह खुद उसमें पढ़ाते हैं। जोरदार बारिश में भीग कोरोना जैसी गंभीर बीमारी में लोगों की सहायता करते और रात्रि में भोजन बाँटने निकलते हैं।
मतदान से जीत के बाद की स्थिति से निपटने के लिए बार-बार नोटा बटन की ओर ध्यान चला जाता है...।
सस्नेहाशीष व अशेष शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteवंदन संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteअच्छा है नोटा ध्यान में बना रहे। सुन्दर ।
ReplyDeleteविचारणीय आलेख,विभा दी।
ReplyDeleteवाह, बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteआदरणीया आपने बहुत ही विचारणीय विषय पर बहुत अच्छा लिखा है ।शुभकामनाएँ
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