Thursday 1 October 2020

'विचार लेखन' : 'मेरा हिन्दी प्रेम'

 


हिन्दी महोत्सव 2020 के अंतर्गत मातृभाषा उन्नयन संस्थान के द्वारा आज 'मेरा हिन्दी प्रेम' आयोजित प्रतियोगिता के अंतर्गत, 'स्वयं के हिन्दी भाषा से प्रेम' के बारे में लिखना है.. कहीं 'छोटा मुँह बड़ी बात करना' या स्वयं को 'अहंकारी साबित करना' ना हो जाए .. फिर भी...



हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। “यू ट्यूब” और “गूगल” ने भी हिन्दी को काफी अहमियत दिया है। लगभग सभी सोशल मीडिया के प्लेटफ़ॉर्म पर हिन्दी का विकल्प अभी भी उपलब्ध है ।
'विश्व आर्थिक मंच' की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। वर्त्तमान समय में, अमेरिका में हिन्दी को द्वितीय भाषा बनायी जाए यह प्रयास किया जा रहा है। और दूसरी तरफ हिन्द में सरकारी दफ्तरों , विद्यालय-महाविद्यालयों, अनेकानेक संस्थाओं में ‘हिन्दी दिवस ‘और ‘हिन्दी दिवस पखवाड़ा’ बड़े धूम-धाम से मनाया जा है। मातृभूमि में साँस लेने वालों को राष्ट्रभाषा की आवश्यकता नहीं है, बल्कि हम सब तो अपने-अपने क्षेत्रिय भाषा के लिए लड़ रहे हैं...। ... राज्यों को भाषा के आधार पर टुकड़े-टुकड़े करने के लिए तैयार हैं।
द्रष्टा और दृष्टि का विलयन होने वाले प्राचीन ग्रीकों ने चार तरह के प्यार को पहचाना है : रिश्तेदारी, दोस्ती, रोमानी इच्छा और दिव्य प्रेम। 'प्यार' ऐसा शब्द है जिसका नाम सुनकर ही सबको अच्छा-अच्छा का अनुभव होने लगता है,प्यार शब्द में वो एहसास है जिसे हम कभी नहीं खोना चाहते हैं।
मैं हिन्दी भाषी क्षेत्र बिहार में जन्म ली हूँ। तो हिन्दी बोलना, जानना व लिखना सीखना नहीं पड़ा और स्वयं का हिन्दी के प्रति प्रेम का पता तब चला जब अहिन्दी भाषी प्रदेशों में जाना हुआ। वहाँ के निवासियों को हिन्दी बोलने के नाम पर अपने चेहरे का इतिहास-भूगोल बदलते दिखा और सोशल मिडिया पर मेरा लेखन
–आप ये ब्लॉग पर फेसबुक टाइमलाइन पर कहाँ से चुन-चुन कर हिन्दी के तो नहीं लगते शब्दों को पोस्ट करती है.. समझना-समझाना कितना कठिन हो जाता है। ..
–आपकी लिखी रचनाओं को पढ़ने के लिए शब्दकोश लेकर बैठना पड़े तो पढ़ने का उत्साह चला जाता है।
–आप क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग ना करें आपकी रचना केवल शब्दों का जमावड़ा लगता है.... इत्यादि पद्म विभूषणों से जब सुशोभित होने लगा तो मुझे लगा कि अरे ! मुझे तो हिन्दी से दिव्यप्रेम है...। अजीब सा नशे के कैद में हूँ..।
देश-विदेश में हिन्दी साहित्य की जितनी संस्था (जो मुझे सदस्य बनाये रख सकती है ) मेरे जानकारी में सहभागिता करने का प्रयास करती हूँ।
हिन्दी के लिए कोई कार्यक्रम हो उसमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में ना तो जेठ की दोपहरी रोक पाती है ना भादो की बरसात। ना तीन-चार बजे रात में वर्चुअल साहित्यिक गोष्ठी में उपस्थिति दर्ज करने की बात...।
कई गोष्ठियों में युवाओं को शुद्ध हिन्दी में रचना पाठ करते देख बेहद हर्ष होता है।
समुन्द्र का जिस तरह ओर-छोर नहीं दिखलाई देता है उसी तरह हिन्दी साहित्य है...। उसमें पड़े हमारा लेखन का अस्तित्व एक बूँद ही है...।

2 comments:

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