साहित्यिक दो संस्थाओं ने
एक समय में अलग-अलग
दो अलग-अलग
कार्यक्रम आयोजित किया।
कथा पाठ और उस कथा की समीक्षा,
इंद्री समर्थ श्रोताओं की भी थी परीक्षा।
स्व रचित पद्य आधारित अंताक्षरी,
नई चुनौती थी शब्दों के अग्निहोत्री।
कौन करे त्राहिमाम कौन करें माला जपी!
दूसरे दिन अखबार में विज्ञप्ति यूँ छपी,
'महिला कवियों के वर्चुअल कथा पाठ'
उलझन टला आपस में, पड़ी न कोई गांठ।
शिक्षा और शिक्षित का अच्छा नमूना
साहित्यकारों का अति संवेदनशील होना।
सिनेमा कुली का अवलोकन सम्पादक की थी मस्ती,
रविवार को अधिकतम व्यस्त होते हैं बड़े-बड़े हस्ती।
गढ़ दिए महिला को कवि हो जाने का अफ़साना।
आकस्मिक मिला सबको हँसने-हँसाने का बहाना।
'बेटी को बेटा कहने वालों' अब चेत जाने की आवश्यकता नहीं ...
सुन्दर समीक्षा वर्चुअल परीक्षा।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-09-2020) को "गुलो-बुलबुल का हसीं बाग उजड़ता क्यूं है" (चर्चा अंक-3840) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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गढ़ दिए महिला को कवि हो जाने का अफ़साना।
ReplyDeleteआकस्मिक मिला सबको हँसने-हँसाने का बहाना
वाह!!!
क्या बात ...
बहुत ही लाजवाब।