"वाहः! अद्धभुत जल की स्वच्छता–पारदर्शिता थी। समुंदर के सतह की चीजें स्पष्ट दिख रही थी।" मयूरी ने कहा।
"सूर्यास्त की छवि उस वजह से ही कुछ ज्यादा मनमोहक चुम्बकीय...," मयूर की बातें पूरी होने के पहले ही मानस द्वारा अचानक लिए गए ब्रेक से कार झटके से रुक गई।
"क्या हुआ?" मयूरी और मयूर एक साथ बोल पड़े।
"थोड़ा पीछे देखो, शायद उन्हें हमारी सहायता की आवश्यकता है।" मानस ने कहा।
आज कई महीनों के बाद मित्र मयूर के समझाने पर मानस मित्र के साथ अपनी पत्नी को लेकर बाहर निकला था । घर वापसी में रात हो गई थी। रास्ते में एक कार रुकी हुई थी और उसके पास ही चार-पाँच युवा खड़े थे।
"इस भयावह काल में कई खतरे हो सकते हैं मित्र," मयूर अपने मित्र को सावधान करने की कोशिश किया।
"घर पर माँ रात्रि-भोजन लेकर प्रतिक्षारत होगीं!" मयूरी पत्नी- बहू धर्म निभा , खतरा भांप रही थी।
"बिना सहायता किये घर गया तो माँ कई दिनों तक ठीक से भोजन नहीं कर पायेगी।" मानस अपनी दृढ़ता दिखलाते हुए रुकी हुई कार चालक के पास गया।
"हार्दिक धन्यवाद अनजाने फरिश्ते! दिलों में उज्ज्वलता फैलाने हेतु।" सभी युवा अपनी गाड़ी ठीक हो जाने के कारण अति प्रसन्न थे
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-09-2020) को "निर्दोष से प्रसून भी, डरे हुए हैं आज" (चर्चा अंक-3833) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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वंदन.. हार्दिक आभार आपका
Deleteसच में बड़े नेकी का काम...
ReplyDeleteसुन्दर सीख देता लाजवाब सृजन।
सुन्दर
ReplyDeleteसादर प्रणाम के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व अशेष शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
ReplyDeleteआदरणीया विभा रानी श्रीवास्तव जी, नमस्ते👏! आपकी लघुकथा बहुत अच्छी है। हार्दिक साधुवाद!
ReplyDeleteमैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं।
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ
मानवता जीवन का फूल है जिसे ऐसे ही खिलाना है ।
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