डायरी शैली में पुन: प्रयास
23-09-2020
”क्या बात है बिटिया आज तुम्हारे चेहरे पर यह उदासी की घनी घटा क्यों अपना प्रभुत्व जमाये हुए है?" सदा खुश रहने वाली अपनी बहू को आज बेहद उदास देखना मेरी सासू माँ से सहन नहीं हो रहा था तो उन्होंने पूछ लिया।
"हाँ माँ! आज कुछ बात ही ऐसी हो गई। मुझे आपसे साझा भी करना है, विस्तार से बताती हूँ।" मैंने कहा।
22-06-2011
चेन्नई कालीकंबल मंदिर में हो रही मेरी सहेली की शादी में मैं अपनी एक अन्य सहेली के साथ उपस्थित थी। सहभागिता करने आये सभी रिश्तेदार परिचित मित्र गण जोड़ी को देखकर अचंभित थे। वर सुदर्शन था धनाढ्य राजकुमार एनआरआई था तो वधू उन्नीस-बीस क्या कहें दस-बारह के तुलना में भी खड़ी नहीं हो पा रही थी।
बहुत खोजबीन के बाद पता चला कि वर यानी अपने घर का छोटा लड़का ही घर चल जाये का आधार है। उसके माता-पिता वृद्ध हो चुके हैं तथा वर के बड़े भाई का शरीर किसी दुर्घटना की वजह से कमजोर हो गया है। हल्का श्रम करता है जिससे कि उसे जीने में शर्म नहीं आये ,लेकिन इतनी आमदनी नहीं कि दिवसाद्यन्त जरूरतों की पूर्ति हो सके। इसी वजह से उसकी पत्नी उसे अंधेरा में कैद समझ कर अपनी ओर से बड़ा ताला जड़ दिया था।
वर से मेरे द्वारा पूछने पर कि,–"आपसे शादी हेतु सर्वांगीण रमणी मिल जाती जो आपके संवृद्धि में सहायक होती। फिर इनसे...?"
"आप तन की जोड़ी लगाना चाह रही हैं। मुझे मन से जुड़ी की चाहत थी। जो हमारे घर की धुरी हो सके।" मेरी सहेली के भाग्य के जंग लगने वाले ताला में वक्त ने बड़ी चतुराई से सही बड़ी वाली ही चाभी लगा दिया था।
12-04-2018
आज मेरी सहेली को पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई। मेरे लिए बेहद हर्ष का पल रहा। पिछले कुछ वर्षों से उसके ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन और असफल होने पर दोबारा ऑपरेशन। मौत को चकमा देकर यमराज के खाते को कुछ वर्षों के लिए लॉकर में रखवा ही दिया था।
23-09-2020
आज पता चला कि मेरी सहेली का पति साँसों के लिए मशीनों के सहारे आई.सी.यू. पड़ा हुआ है। चार महीनों से सारे चिकित्सकों की अक्ल की चाभी गुम हो गई है।
मेरी उदासी मेरी सासु माँ को बिलकुल अच्छी नहीं लगती है। लेकिन आज वे भी मेरी उदासी का कारण जानकर चिंतित दिखीं। शायद कल कोई बड़ी चाभी समय के गुच्छे से निकल सके।
04 अक्टूबर 2020
आज मेरी सहेली के द्वारा दिये व्हाट्सएप्प सन्देश से ही मेरी आँखें खुली..। कल रात उसके पति को मोक्ष मिल गया। एक नवम्बर को मेरी सहेली का जन्मदिन और चार नवम्बर को उसकी शादी की सालगिरह के यादों को संभाले वह अपनी दो साल की बच्ची के संग एक नयी जंग के लिए ना जाने क्या-क्या तैयारी करेगी।
समय के गुच्छे में गुम जरूरत की चाभी सबसे जरूरी समय में कभी नहीं मिलती है बल्कि और उलझा जाती है।
ReplyDeleteप्रणाम दी।
आपकी लिखी लघुकथाएं जीवन की परीक्षाओं पर अनुसंधान होती है।
जीवन भी डायरी के पन्ने सा ही है। सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी लघुकथा।
ReplyDeleteअद्भुत लेखन, मर्मस्पर्शी और सच पर लगता है जंग सा लग गया बस एक ही जगह अटक गई।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई आपकी अलग शैली, अभिनव शैली।
मार्मिक कहानी
ReplyDeleteडायरी शैली में लिखी आपकी यह लघुकथा मन को गहरे तक स्पर्श करती है।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण लेखन !!!