*☺️*
""" कोरोनाकाल में
हिन्दी का प्रयोग घटा है।
*' दहशत '* की जगह
*' पैनिक '* शब्द आ डटा है।
*वायरस* देखकर -
हिन्दी शब्दों की ख़पत घटी है।
अब हमारी बातचीत में ,
*विटामिन-सी, जिंक,*
*स्टीम और इम्यूनिटी है*
उधर *'सकारात्मक'* की जगह ,
*'पॉजिटिव'* शब्द ने हथियाई है।
इधर *'नेगेटिव'* होने पर भी ,
*खुशी है ,बधाई हैl*
अब ज़िन्दगी में *'महत्वपूर्ण कार्य'* नहीं
*'इम्पोर्टेन्ट टास्क'* हैं।
हमारे नए आदर्श
*अब हैंडवाश, सेनिटाइजर और मास्क हैंl*
हिन्दी के अनेक शब्द
*सेल्फ क्वारेन्टीन हैं।*
*कुछ आइसोलेशन में हैं ,*
*कुछ बेहद ग़मगीन हैं।*
*मित्रों ,इस कोरोनकाल में ,*
हमारे साथ ,
हिन्दी की शब्दावली भी डगमगाई है।
वो तो सिर्फ *" काढ़ा "* है ,
जिसने हिन्दी की जान बचाई हैl
–फेसबुक/सोशल मीडिया में हिन्दी रचना प्रस्तुत करने के दौर में अनेकानेक दौड़ में जुटे हुए हैं लेकिन उस प्रस्तुति की शुरुआत अंग्रेजी के सेन्टेंस से ही है... स्वरूचि में इतनी स्वतंत्रता तो होनी ही चाहिए..। आखिर सो कॉल्ड स्टेटस का सवाल है..।
–टीशर्ट पर टाई लगाए या शर्ट के साथ धोतीनुमा लोअर पहने कई पुरुष दिख जाएँगे। युवा सलवार-सूट पर स्पोर्ट्स शूज पहने नजर आ सकते हैं और जींस के साथ कोल्हापुरी चप्पलें..।
तो
–महिलाओं के मामले में प्रयोग और भी बड़े पैमाने पर हो रहे हैं। जींस और शॉर्ट टॉप के ऊपर रंग-बिरंगा दुपट्टा ओढ़ना, लहँगा-चोली के साथ लंबा सा ओवरकोटनुमा जैकेट पहन लेना, साड़ी के साथ पगड़ी बाँध लेना, सलवार को टीशर्ट के साथ मैच कर लेना, साड़ी के साथ हाथ में बिलकुल मर्दाना घड़ी पहन लेना, धोतीनुमा लोअर के साथ लंबा कुर्ता पहन लेना।
–शाबास! फ़्यूजन का काल है। अतः हिन्दी के साथ भी फ्यूजन हो के अनेकानेक समर्थक पाए जा रहे हैं.. कोई अचरज की बात नहीं लगती है।
–अंग्रेज तो भारत छोड़कर चले गए लेकिन उनके छाप तो यहीं रह गए..
–भारत में युवा जगत GM, gn, hmmm, k, हर चार हिन्दी शब्द के बाद एक इंग्लिश/आंग्ल वर्ड का प्रयोग करने वाले बर्ड से उम्मीद किया जा रहा है हिन्दी साहित्य में पताका फहराने की।
–मां, वहां, आंगन, आंचल इत्यादि प्रयोग होने वाले ज़माने में...
–वाम पंथ दक्षिण पंथ में बंटा समाज..
तथा
हिन्दू-मुस्लिम जो सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं जिन्हें धर्म मानना असत्य है ..रस्साकस्सी खेलने में व्यस्त हैं...
–वर्तमान में हमने कुछ खोया है तो वह है- रिश्तों की बुनियाद। दरकते रिश्ते, कम होती स्निग्धता, प्रेम और आत्मीयता इतिहास की वस्तु बनते जा रहे हैं।
मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता... अतः अगर हालात जल्द वश में नहीं आये तो हिन्दी साहित्य जगत दरिद्रता की गर्त में धीरे–धीरे धंसता चला जायेगा।
और साहित्यकार पूर्वजों की आत्मा का ठगा सा रह जाना हम देख पायेंगे...।
फेसबुक/सोशल मीडिया ही क्यों हिंदी के समाचार पत्र पढ़ लो, न्यूज़ चैनल देख लो, हिंदी समझ आ जायेगी, सब अपनी -अपनी समझ में जो कुछ मन में आता है खिचड़ी बनाने से बाज नहीं आता है
ReplyDeleteचिंता का विषय है लेकिन हमें ही अपने से शुरुवात करनी होगी
अच्छी चिंतनशील प्रस्तुति
जी बिलकुल सत्य कथन आपका
Deleteपैना व्यंग्य।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
चिन्तनपरक सत्य । बहुत सुन्दर सृजन दी !
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 24 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आनन्द आ गया पढ़कर । समझो तो बहुत कुछ है , न समझो तो ...
ReplyDeleteवाह ! रोचक अंदाज में गहरी बातें
ReplyDeleteसराहनीय चिंतन
ReplyDeleteवाह !लाजवाब दी।
ReplyDeleteसादर प्रणाम
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
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